Chhattisgarh Gariaband Naxalgarh 32 youths recruited in police in 8 months: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का मैनपुर कभी नक्सलगढ़ के नाम से जाना जाता था। नक्सली इसे दूसरा बस्तर बनाने की योजना बना रहे थे, लेकिन अब वहां वर्दी का बोलबाला है। जिस इलाके में 16 नक्सली मारे गए, वहां महज 8 महीने में 32 युवाओं ने पुलिस और सेना की वर्दी पहन ली है।इनमें 15 युवाओं का चयन सूबेदार, सब-इंस्पेक्टर और प्लाटून कमांडर के पद पर हुआ है, जबकि कांस्टेबल के पद पर 3, सीआरपीएफ के लिए 3, सीआईएसएफ के लिए 2, आईटीबीपी के लिए 2, अग्निवीर के लिए 5 और नगर सेना के लिए 2 युवाओं की भर्ती हुई है। सभी अभी ट्रेनिंग ले रहे हैं। इसी इलाके से छत्तीसगढ़ की पहली महिला अग्निवीर बनी है।
जाड़ापदर से सबइंस्पेक्टर बनी आदिवासी परिवार की बेटी लीना नागेश के भाई-भाभी भी पुलिस में है
24 साल की लीना नागेश बनी सब-इंस्पेक्टर
मैनपुर मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर स्थित जाड़ापदर गांव में बदलाव की कहानी देखने को मिल रही है। यह वही क्षेत्र है, जहां से 15 किलोमीटर दूर भालूडीगी पहाड़ी में जनवरी में कई नक्सली मारे गए थे। गांव की 24 वर्षीय लीना नागेश ने 2021 में भर्ती परीक्षा दी और अब सब-इंस्पेक्टर बनीं।
उनके परिवार में बड़े भाई मिथलेश आरक्षक हैं और भाभी जमुना नागेश नगर सैनिक में कार्यरत हैं। लीना की सफलता से प्रेरित होकर अब गांव के 20 से अधिक युवा सुरक्षाबलों में भर्ती की तैयारी कर रहे हैं। गांव के दो युवा पहले ही अग्निवीर बन चुके हैं।
युवा बेझिझक होकर भर्ती की तैयारी कर रहे
अग्निवीर प्रमोद नायक बताते हैं कि पहले नक्सली गतिविधियों के कारण शाम को घर से निकलने में डर लगता था, लेकिन अब युवा बेझिझक होकर भर्ती की तैयारी कर रहे हैं। इस बदलाव की एक और मिसाल लीना की मां हैं, जो अब गांव की सरपंच हैं।
मां अहिल्या बाई ने इन सब के लिए जिला पुलिस और जंगल में आमने सामने लड़ने वाले जवानों का आभार जताया है। उन्होंने कहा कि जिनके शौर्य पराक्रम के चलते हम अब निर्भीक होकर अपनी इच्छा के अनुरूप काम कर रहे हैं।
सब इंस्पेक्टर भवानी की मां और बहन मजदूरी करते हुए
बेटी का सपना पूरा करने आधा पेट खाना खाते थे
नहानबीरी निवासी आदिवासी परिवार के मुखिया चंदन नागेश की बड़ी बेटी भवानी भी सब इंस्पेक्टर बन गई है। चन्दन की पत्नी महेद्री बाई बताती हैं कि तीन बेटी में से बड़ी बेटी का वर्दी पहनने का सपना था। रायपुर में पीजी करते हुए उसने भर्ती परीक्षा में हिस्सा लिया।
महेद्री बाई ने बताया कि 3 साल तक रायपुर का खर्च निकालने दो छोटे बेटियों और एक बेटे की जरूरत में कटौती किया। तीन एकड़ जमीन है, पर आमदनी कम थी, इसलिए पूरा परिवार मजदूरी करता है। निजी कर्ज अब भी है। बेटी का सपना पूरा करने आधा पेट खाना खाते थे।
वहीं पिछला किस्सा सुनाते हुए भवानी मां महेद्री की आंखें भर आई। मां ने कहा कि बड़ी बेटी की चिंता दूरी हुई। अब उसकी मदद से उससे छोटी दो बेटियों के भविष्य को संवारना है। नक्सली भय के सवाल पर मां ने कहा कि भय तो था, लेकिन उसे भगा कर हिम्मत दिखाना पड़ी।
257-अविनाश, जो पोस्ट मास्टर राज प्रताप के बेटे हैं।
CRPF कैंप में सीखा गुर, CISF बना पोस्ट मास्टर का बेटा
एक समय में इंदागांव नक्सलियों की पैठ के लिए चर्चा में था, लेकिन 2011 में यहां कैंप खुलने के बाद इस पर लगाम लग गई। यह CRPF 211 बटालियन का कैंप है। इस कैंप में जवानों को देखकर पोस्ट मास्टर राज प्रताप के बेटे अविनाश ने भी वर्दी पहनने का फैसला किया।
लगाव इतना था कि वह कैंप में आकर सुबह शाम दौड़ लगाया करता था। युवा के जुनून को देखकर उसे पदस्थ एक CRPF के अफसर ने गाइड करना शुरू किया। 21 साल के अविनाश 2024 में भर्ती प्रकिया में शामिल हुए। दिसंबर 2024 में परिणाम आया।
14 जनवरी को ज्वाइनिंग करने के बाद अब राजस्थान के कोटा देवली में ट्रेनिंग ली। 9 महीने की ट्रेनिंग इसी सेंटर में पूरी की। दबनई पंचायत के लेडीबहरा का आदिवासी युवक खिलेश ठाकुर भी अविनाश के साथ चयनित हुए। ये दोनों युवक जिले के पहले CISF जवान बने।
लेडीबहार ग्राम पंचायत के दबनई ब्लॉक का मैनपुर निवासी खिलेश ठाकुर
बदलाव के लिए सभी ने कड़ी मेहनत की
बदलाव को लेकर CRPF के सेकेंड इन कमांड रंजन कुमार बहाली ने बताया कि ये बदलाव अचानक से नहीं हुआ। पिछले 10 साल से इसके लिए पुलिस और हर सुरक्षा जवान ने मेहनत की है। नक्सली जवानों को बहला फुसला कर अपने कुनबे में शामिल कर रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
उन्होंने बताया कि अंदरूनी इलाके के गांवों में डर का माहौल था। पहले CRPF कैंप के भीतर हम सिविक एक्शन प्रोग्राम करते थे, क्योंकि गांववाले शामिल होने से डरते थे। अब हम गांव में जाकर सफल जन कल्याण शिविर लगाते हैं। निडर होकर गांव-गांव के युवा पुलिस और सेना में शामिल हो रहे हैं।
SP निखिल राखचे नक्सल प्रभावित इलाके में जाते हैं तो अब गांव के सभी वर्ग के लोग बेखौफ होकर उनके साथ बैठते हैं।
दूसरा बस्तर बनाने के मनसूबे पर पानी फिरा
SP निखिल राखेचा ने बताया कि एक दशक पहले यानी साल 2015 के बाद गरियाबंद जिला नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना बन गया था। भौगोलिक परिस्थितियां अच्छी थी इसलिए, चलपती जैसे बड़े कैडर नक्सल नेताओं की मौजूदगी में इलाके को दूसरा बस्तर बनाने की पूरी तैयारी थी।
SP ने बताया कि जिला नक्सलियों का सुरक्षित कॉरीडोर बना हुआ था, जहां तेलंगाना बस्तर से ओडिशा राज्य को जोड़कर नियंत्रित किया जाता था। शोभा थाना क्षेत्र से 12 से ज्यादा युवक-युवतियों को बहला फुसला कर नक्सलियों ने अपने संगठन में शामिल भी करना शुरू कर दिया था, जिस पर जवानों की मेहनत से ब्रेक लगा।
CRPF के जवान चप्पे चप्पे पर तैनात होकर विशेष अवसरों में सुरक्षा देते हैं।
कैसे ढीली पड़ी पकड़, अब बिखराव की स्थिति ?
SP निखिल राखेचा ने बताया कि जनवरी महीने में चलपति समेत 16 नक्सली मारे गए थे, जिसके बाद संगठन की पकड़ ढीली पड़ गई। 80 घंटे तक चलने वाले इस मुठभेड़ के बाद नक्सलियों के बिछाए कई बम डिफ्यूज किए गए। 8 लाख कैश समेत हथियार और जमीन में गाड़े गए विस्फोटक बरामद हुए। 3 नक्सली सदस्यों ने भी सरेंडर किया।
वहीं जनवरी में हुए बड़ी मुठभेड़ के बाद पंचायत चुनाव में नक्सली बदला ले सकते थे, लेकिन सरेंडर नक्सलियों ने बताया कि घटना के बाद बिखराव की स्थिति बन गई। इसके कारण अब किसी भी वारदात को अंजाम देने के लिए नक्सली भय खा रहे हैं।
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