गिरीश जगत की रिपोर्ट । गरियाबंद । छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ का गरियाबंद ज़िला आम तौर पर शांत, ग्रामीण जीवन की एक झलक देता है — जहां खेत, परिवार और परंपरा ही जीवन की धुरी होते हैं। लेकिन 25 जुलाई की रात, इसी सन्नाटे में एक हत्या की कहानी रची गई, जिसमें एक पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति को इस बेरहमी से मार डाला कि परिवार वाले भी सच्चाई से अनजान रह गए। ये कहानी सिर्फ एक हत्या की नहीं है — ये विश्वास के टूटने, प्रेम के विकृत रूप, और परिवार के भीतर छिपे एक गहरे षड्यंत्र की कहानी है।
चुम्मन की जिंदगी: एक किसान, एक पिता, एक पति
35 वर्षीय
चुम्मन साहू
, कोपरा नगर पंचायत का एक साधारण ग्रामीण युवक था। खेती-किसानी और मजदूरी ही उसकी आजीविका का जरिया था। परिवार बड़ा नहीं था — पत्नी प्रतिमा साहू और दो छोटे बच्चे। बेटा महज दो साल का, बेटी एक साल की। शादी को चार साल हो चुके थे, लेकिन जीवन में स्थायित्व नहीं था। बेरोजगारी और शराब की लत ने चुम्मन को अंदर से खोखला कर दिया था।
प्रेम की आड़ में षड्यंत्र की शुरुआत
इसी गांव में रहने वाला 30 वर्षीय
दौलत पटेल
, पेशे से एक लोकल मैकेनिक था। बिजली से जुड़े काम करता था और इसी बहाने अक्सर चुम्मन के घर आता-जाता रहता था। यहीं से प्रतिमा और दौलत के बीच नज़दीकियां बढ़ीं।
धीरे-धीरे ये रिश्ता एक
अवैध संबंध
में बदल गया, जो डेढ़ साल तक चलता रहा। गांव के लोग भी कानाफूसी करने लगे। कई बार प्रतिमा और दौलत को साथ देखा गया, लेकिन परिवार की इज्जत के चलते कोई खुलकर कुछ नहीं कहता।
एक बार खुद चुम्मन ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया। इसके बाद
घर में कलह
,
मारपीट
, और
तनाव
रोजमर्रा की बात हो गई।
मौत की प्लानिंग: मोबाइल पर बना खौफनाक ब्लूप्रिंट
पुलिस पूछताछ में जो सामने आया, वो किसी क्राइम थ्रिलर से कम नहीं था। 25 जुलाई की दोपहर, प्रतिमा और दौलत के बीच मोबाइल पर कई बार बात हुई। कॉल डिटेल्स से पता चला कि दोनों ने हत्या की पूरी योजना उसी दिन तैयार की थी।
योजना ये थी —
पहले चुम्मन को शराब पिलाकर बेहोशी की हालत में लाया जाएगा।
उसके बाद घर में तकिए से उसका मुंह दबाकर
धीरे-धीरे दम घोंटा
जाएगा।
घटना को
नेचुरल डेथ
दिखाने की कोशिश की जाएगी।
सुबह पत्नी रोने का नाटक करेगी और शराब से मौत का कारण बताएगी।
रात जो कभी खत्म नहीं हुई
दौलत ने योजना के अनुसार, चुम्मन को खूब शराब पिलाई। जब वह
आउट ऑफ कंट्रोल
हो गया, तब दौलत उसे घर छोड़ने गया। चुम्मन बेसुध हो चुका था। बच्चे सो रहे थे, घर में कोई शक करने वाला नहीं था।
फिर शुरू हुआ
मौत का खेल
।
तकिया चुम्मन के चेहरे पर दबाया गया। वह छटपटाया जरूर, लेकिन बेहोशी की हालत में ज्यादा विरोध नहीं कर पाया।
धीरे-धीरे सांसें बंद हो गईं।
कमरे में सन्नाटा पसर गया।
दौलत भाग गया, लेकिन प्रतिमा वही रही —
रात भर उसी बिस्तर पर
, पति की लाश के साथ सोती रही।
सुबह का नाटक, आंसुओं में छुपी साज़िश
सुबह होते ही प्रतिमा चिल्लाते हुए घरवालों के पास पहुंची, “उठ नहीं रहे, शायद ज़्यादा पी ली थी।”
घरवालों ने देखा, चुम्मन बेसुध पड़ा है। शरीर ठंडा हो चुका था।
गांव के बुजुर्गों ने मौत का कारण
अत्यधिक शराब सेवन
माना और तत्काल अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू हो गई।
मौत को स्वाभाविक मान लिया गया।
पोस्टमार्टम नहीं कराया गया।
चुपचाप चुम्मन का दाह संस्कार कर दिया गया।
एक ससुर की शंका ने खोला राज
चुम्मन के पिता
बिसेलाल साहू
को यह कहानी हज़म नहीं हुई। उन्हें अपने बेटे की आदतों की जानकारी थी — इतना भी नहीं पीता था कि जान चली जाए।
उन्हें दौलत और बहू की नज़दीकियां पहले से खटकती थीं।
और जब उन्होंने देखा कि दशगात्र के दौरान भी प्रतिमा के हावभाव सामान्य हैं, तो शक और पुख्ता हो गया।
दशगात्र पूरा होते ही वे
पाण्डुका थाने पहुंचे
और हत्या की आशंका जताई।
पुलिस की जांच: कबूलनामे से हिला गांव
पुलिस ने जब प्रतिमा और दौलत को हिरासत में लिया, तो दोनों ने पहले साफ इनकार किया।
लेकिन जैसे ही
फोन रिकॉर्ड
,
CCTV फुटेज
, और
मोबाइल लोकेशन
सामने रखे गए — सच सामने आने लगा।
दोनों को
अलग-अलग पूछताछ
में रखा गया और कुछ घंटों के अंदर ही
गुनाह कबूल
कर लिया गया।
प्रतिमा ने कहा, “वो मुझे मारता था, गालियां देता था... दौलत के साथ रहना चाहती थी।”
दौलत ने भी कहा, “हम दोनों साथ रहना चाहते थे, इसलिए उसे रास्ते से हटाना जरूरी था।”
कानून का शिकंजा: सबूत नहीं, फिर भी सजा
इस केस की सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि
पोस्टमार्टम नहीं हुआ था।
कोई फिजिकल एविडेंस नहीं था, जिससे हत्या साबित हो सके।
SDOP नेहा सिन्हा
के अनुसार, “इस केस में हमे पूरी तरह से
परिस्थिति जन्य साक्ष्यों
पर निर्भर रहना पड़ा।
फोन कॉल, घर की चुप्पी, रिश्तों का अतीत — इन सबने मिलकर हत्या का सच उजागर किया।”
पुलिस ने धारा 302 और 120B (हत्या और आपराधिक साजिश) के तहत केस दर्ज किया और दोनों को जेल भेज दिया।
कौन जिम्मेदार है इस हत्याकांड का?
इस क्रूर हत्या ने पूरे गांव को हिला दिया है। लोग अब सिर्फ आरोपी को नहीं, बल्कि
परिवार, संस्कार और समाज
को भी दोषी मान रहे हैं।
क्या चुम्मन की शराब की लत ही उसकी मौत का कारण बनी?
क्या प्रतिमा को किसी और रास्ते से अपना जीवन सुधारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी?
क्या दौलत को अपने दोस्त के घर में इस तरह घुसना शोभा देता है?
कई सवाल हैं — जिनके जवाब शायद कानून नहीं, समाज को देने हैं।
विश्वास की हत्या सबसे बड़ा अपराध
चुम्मन साहू की मौत केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं है — यह
एक परिवार की बर्बादी
,
दो बच्चों के अनाथ होने
, और
एक समाज की चुप्पी का दुष्परिणाम
है।
यह घटना बताती है कि
क्राइम केवल गुस्से या लालच से नहीं होता
, कभी-कभी वह
एक अधूरी चाहत, टूटी उम्मीद और गलत रास्ते
से भी जन्म लेता है।
इस केस ने ये सिखाया कि रिश्तों में जब संवाद खत्म हो जाए, और अपराध सोच में उतर आए — तो हत्या सिर्फ एक विकल्प नहीं, एक बहाना बन जाता है।
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