जेल में रहेगा रेपिस्ट BJP नेता Kuldeep Singh Sengar : Unnao Rape Case में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर लगाई रोक, कुलदीप से 2 हफ्ते में जवाब मांगा
MP CG Times / Mon, Dec 29, 2025
Kuldeep Singh Sengar Unnao Rape Case LIVE Update; Supreme Court | BJP: उन्नाव रेप केस में रेपिस्ट पूर्व BJP विधायक कुलदीप सेंगर की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। कोर्ट ने सेंगर को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा। मामले में 4 हफ्ते बाद सुनवाई होगी। सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को जमानत दी थी।
जमानत के खिलाफ CBI ने सुप्रीम कोर्ट में 3 दिन पहले याचिका लगाई थी। सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच में सुनवाई हुई। बेंच ने दोनों पक्षों की करीब 40 मिनट तक दलीलें सुनीं।
चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट को लगता है कि मामले में अहम सवालों पर विस्तार से विचार जरूरी है। आमतौर पर कोर्ट का सिद्धांत है कि किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को रिहा कर दिया गया हो, तो बिना उसे सुने ऐसे आदेशों पर रोक नहीं लगाई जाती, लेकिन इस मामले में परिस्थितियां अलग हैं। क्योंकि आरोपी दूसरे मामले में पहले से दोषी ठहराया जा चुका है। ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश पर रोक लगाई जाती है।
इससे पहले, कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- ये भयावह मामला है। धारा-376 और पॉक्सो के तहत आरोप तय हुए थे। ऐसे मामलों में न्यूनतम सजा 20 साल की कैद हो सकती है, जो पूरी उम्र की जेल तक बढ़ाई जा सकती है।
सुनवाई से पहले पीड़ित के समर्थन में प्रदर्शन कर रहीं महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं की पुलिस से झड़प हो गई। पुलिस उन्हें जीप में बैठाकर ले गई।
पीड़ित के वकील ने कहा- आरोपी किसी भी हाल में जेल से रिहा नहीं होगा
पीड़ित पक्ष के वकील हेमंत कुमार मौर्य ने कहा- सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को एक सख्त आदेश जारी किया है कि आरोपी को किसी भी हालत में जेल से रिहा नहीं किया जाएगा। राहत देने वाले आदेश पर रोक लगा दी गई है।
विपक्ष को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय दिया गया है, और तब तक, उसे किसी भी हालत में जेल से रिहा नहीं किया जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, और हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हाईकोर्ट के 23 दिसंबर के आदेश पर रोक लगाई जाती है
CJI ने कहा कि कोर्ट को लगता है कि मामले में महत्वपूर्ण सवालों पर विस्तार से विचार जरूरी है। आम तौर पर कोर्ट का सिद्धांत है कि किसी दोषी या विचाराधीन कैदी को रिहा कर दिया गया हो, तो बिना उसे सुने ऐसे आदेशों पर रोक नहीं लगाई जाती।
मगर इस मामले में परिस्थितियां अलग हैं। क्योंकि आरोपी दूसरे मामले में पहले से दोषी ठहराया जा चुका है। ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश पर रोक लगाई जाती है।
पीड़ित के वकील ने चिंता जताई कि परिवार अभी भी खतरे में है। इस पर CJI ने कहा- उन्हें अपील दायर करने का अधिकार है। कानून के तहत उपाय उपलब्ध हैं। सेंगर के वकील ने दावा किया कि आरोपी के साथ अन्याय हो रहा है।
CJI बोले- गलती किसी भी जज से हो सकती है
CJI ने कहा कि इस मामले में एक गंभीर कानूनी सवाल है, जिस पर विचार जरूरी है। हाईकोर्ट का आदेश जिन जजों ने दिया है, वे देश के बेहतरीन जजों में गिने जाते हैं, लेकिन गलती किसी से भी हो सकती है। पॉक्सो कानून में ‘लोक सेवक’ की परिभाषा को लेकर अदालत चिंतित है।
ऐसा कैसे हो सकता है कि इस कानून के तहत एक पुलिस कांस्टेबल को लोक सेवक माना जाए, लेकिन किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि, जैसे विधायक या सांसद, को इस दायरे से बाहर कर दिया जाए। अदालत को यह असमानता परेशान कर रही है।
वकील हरीहरन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि क्या यह एक तरह का मीडिया ट्रायल नहीं बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में सत्ता के पृथक्करण (सेपरेशन ऑफ पावर्स) का सिद्धांत लागू होता है और अदालत को उसकी सीमाओं में रहना चाहिए। वकील डेव ने भी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में जजों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर घूम रही हैं, जो एक चिंताजनक स्थिति है।
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश पर कड़ी टिप्पणी
न्यायमूर्ति जेके महेश्वरी ने सवाल उठाया कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह साफ तौर पर कहा भी है या नहीं कि अभियुक्त धारा 376(2)(i) के तहत दोषी है या नहीं।
इस पर वकील हरीहरन ने दलील दी कि किसी दंडात्मक कानून (पीनल स्टैच्यूट) में दूसरे कानून से परिभाषा उधार लेकर लागू नहीं की जा सकती। लेकिन न्यायमूर्ति महेश्वरी ने स्पष्ट किया कि अदालत फिलहाल केवल एक ही बात देख रही है।
उन्होंने कहा- ट्रायल कोर्ट के आदेश को देखिए। उसके पैरा 14 में इस सवाल का जवाब मौजूद है। वहां साफ तौर पर धारा 376(2)(i) के तहत दोष सिद्ध किया गया है।
न्यायमूर्ति ने आगे पूछा कि हाईकोर्ट के सजा निलंबन (सस्पेंशन) के आदेश में इस बिंदु पर कहां विचार किया गया है। बस यही दिखाइए कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में धारा 376(2)(i) के इस पहलू को कहां और कैसे देखा है।
CJI बोले- हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के पक्ष में
CJI ने कहा- फिलहाल अदालत हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के पक्ष में है। आमतौर पर सिद्धांत यह होता है कि अगर कोई व्यक्ति अदालत के आदेश से बाहर आ चुका है, तो उसकी आजादी छीनी नहीं जाती। लेकिन इस मामले में स्थिति अलग है, क्योंकि आरोपी एक दूसरे मामले में पहले से ही जेल में बंद है।
अंतरात्मा की आवाज सुनकर HC के आदेश पर रोक लगाए SC- सॉलिसिटर जनरल
सॉलिसिटर जनरल : पॉक्सो अधिनियम की धारा 42A पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इस धारा में साफ लिखा है कि अगर पॉक्सो कानून और किसी दूसरे कानून के बीच टकराव हो, तो पॉक्सो कानून को प्राथमिकता दी जाएगी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस पहलू पर विचार ही नहीं किया।
SG ने आगे अदालत को यह भी बताया कि इस मामले में आरोपी को पीड़ित के पिता की हत्या के अपराध में भी दोषी ठहराया जा चुका है। वह उस मामले में अभी भी जेल में है। वह अदालत की अंतरात्मा से अनुरोध करते हैं कि पीड़ित बच्ची के हित में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई
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