छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसे अबूझमाड़ इलाके से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जिसने न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह कहानी है 14 साल की आदिवासी बच्ची राजेश्वरी की, जिसका शरीर धीरे-धीरे पत्थर जैसा कठोर (Stone-like skin condition) होता जा रहा है। एक ऐसी बीमारी, जो न तो आम है, न ही आसानी से समझ में आने वाली—लेकिन अगर समय पर इलाज होता, तो शायद आज उसकी हालत इतनी भयावह नहीं होती।
राजेश्वरी का वीडियो एक बार फिर
December 2025
में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। वीडियो में उसके हाथ-पैर, गर्दन और शरीर के अन्य हिस्से इतने सख्त और खुरदरे दिखाई दे रहे हैं कि वे
tree bark
या
rock surface
जैसे प्रतीत होते हैं। उसके अंगों पर गहरी दरारें, मोटी परतें और स्केल्स (scales) साफ नजर आती हैं, जो हर हरकत को पीड़ा से भर देती हैं।
2020 से 2025 तक: एक बच्ची, एक बीमारी और पांच साल की अनदेखी
राजेश्वरी का मामला नया नहीं है।
2020 में
, जब वह सिर्फ 9 साल की थी, तब पहली बार उसका वीडियो सामने आया था। तब उसकी त्वचा पर छोटे-छोटे
blisters
,
hard patches
और
thickened skin layers
दिखे थे। परिवार ने तब भी मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन मामला कुछ दिनों की चर्चा के बाद ठंडे बस्ते में चला गया।
परिवार के अनुसार, बीमारी की शुरुआत तब हुई जब राजेश्वरी
चार साल
की थी। पहले हाथों और पैरों पर छोटे फफोले निकले। गांव के स्तर पर इसे सामान्य स्किन एलर्जी या
fungal infection
समझकर घरेलू इलाज किया गया। लेकिन समय के साथ फफोले सख्त होते गए, त्वचा मोटी होने लगी और शरीर के जोड़ जकड़ने लगे।
आज स्थिति यह है कि राजेश्वरी:
ठीक से चल नहीं पाती
ज्यादा देर बैठ या लेट नहीं सकती
हाथ पूरी तरह मोड़ नहीं पाती
दर्द के कारण रात में सो नहीं पाती
यह सब सिर्फ बीमारी की वजह से नहीं, बल्कि
Medical Delay
और
Healthcare Access Failure
की वजह से हुआ।
कौन-सी है यह बीमारी?
Harlequin Ichthyosis या Severe Ichthyosis का शक
डॉक्टर्स और मेडिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार, राजेश्वरी के लक्षण
Ichthyosis (इक्थियोसिस)
नामक दुर्लभ त्वचा रोग से मेल खाते हैं। यह एक
Rare Genetic Skin Disorder
है, जिसमें त्वचा सामान्य तरीके से झड़ नहीं पाती और मोटी, सख्त परतों में बदल जाती है।
Ichthyosis क्या है? (What is Ichthyosis?)
Ichthyosis कोई एक बीमारी नहीं, बल्कि
genetic skin disorders
का एक समूह है। इसमें सबसे गंभीर रूप:
Harlequin Ichthyosis
Lamellar Ichthyosis
Congenital Ichthyosiform Erythroderma
इन बीमारियों में त्वचा:
असामान्य रूप से मोटी हो जाती है
बार-बार फटती है
संक्रमण (infection) का खतरा बढ़ जाता है
शरीर का तापमान नियंत्रित नहीं कर पाती
Harlequin Ichthyosis जैसे मामलों में त्वचा इतनी सख्त हो जाती है कि बच्चे को सांस लेने, आंखें बंद करने और जोड़ों को हिलाने में भी दिक्कत होती है।
बीमारी फैलती कैसे है? (How does it spread?)
यह बीमारी
संक्रामक (contagious)
नहीं है। यानी:
छूने से नहीं फैलती
हवा या पानी से नहीं फैलती
किसी संक्रमण से नहीं होती
Ichthyosis एक
Genetic Mutation
की वजह से होती है, जो माता-पिता से बच्चे में
autosomal recessive inheritance
के जरिए जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि:
माता और पिता दोनों में defective gene होता है
लेकिन उन्हें खुद बीमारी नहीं होती
बच्चा जब दोनों genes पाता है, तब बीमारी प्रकट होती है
आदिवासी और दूरदराज इलाकों में
consanguineous marriage (रिश्तेदारी में शादी)
होने की वजह से ऐसे genetic disorders का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है।
लक्षण (Symptoms): सिर्फ त्वचा की बीमारी नहीं
राजेश्वरी के शरीर पर दिख रहे लक्षण केवल बाहरी नहीं हैं। Ichthyosis जैसे रोग पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं:
प्रमुख लक्षण:
Extremely thick skin (बहुत मोटी त्वचा)
Deep cracks and fissures
Limited joint movement
Chronic pain
Recurrent skin infections
Dehydration risk
Heat intolerance (गर्मी सहन न कर पाना)
इन बच्चों में
immune system कमजोर
हो सकता है, जिससे मामूली संक्रमण भी जानलेवा बन सकता है।
इलाज संभव है या नहीं? (Is treatment possible?)
यह बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं हो सकती, लेकिन
proper medical management
से मरीज की जिंदगी काफी बेहतर बनाई जा सकती है।
Treatment options में शामिल हैं:
Retinoids (Acitretin)
– त्वचा की मोटी परत को पतला करने में मदद
Moisturizers with Urea & Lactic Acid
Physiotherapy
– जोड़ों की जकड़न कम करने के लिए
Antibiotics
– संक्रमण रोकने के लिए
Regular Dermatologist follow-up
लेकिन समस्या यह है कि ये इलाज:
महंगे हैं
लगातार निगरानी मांगते हैं
जिला अस्पताल स्तर पर उपलब्ध नहीं होते
अबूझमाड़ जैसे इलाके में, जहां आज भी एंबुलेंस पहुंचना चुनौती है, वहां ऐसे इलाज की कल्पना भी मुश्किल है।
सिस्टम की सबसे बड़ी चूक: Early Diagnosis नहीं हुआ
मेडिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर राजेश्वरी का:
4–5 साल की उम्र में सही diagnosis होता
उसे AIIMS या Medical College रेफर किया जाता
Regular dermatological care मिलती
तो आज उसकी हालत इतनी गंभीर नहीं होती।
यह मामला सिर्फ एक बीमारी का नहीं, बल्कि
Rural Healthcare Failure
,
Tribal Neglect
और
Policy Gaps
का भी है।
सोशल मीडिया बनाम सरकारी सिस्टम
राजेश्वरी को पहचान
सरकारी फाइलों
से नहीं, बल्कि
viral video
से मिली। यह सवाल खड़ा करता है:
क्या आदिवासी इलाकों के बच्चों को इलाज पाने के लिए वायरल होना जरूरी है?
क्या Rare Diseases सिर्फ शहरी मरीजों के लिए हैं?
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से परिवार ने मदद की अपील की है। अब देखना यह है कि यह मामला भी सिर्फ आश्वासन बनकर रह जाएगा या सच में इलाज तक पहुंचेगा।