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: गरियाबंद में दरिंदगी और मासूम की चीखें: बच्ची से दर्द से कराह रही थी, कुर्सी पर बैठा दरिंदा बोला- चुप रहो, रोने की आवाज सुनकर निकले परिजन


गिरीश जगत की रिपोर्ट । गरियाबंद

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले के छुरा थाना क्षेत्र से आई ये घटना सिर्फ एक पुलिस केस नहीं है। यह उस टूटे भरोसे की कहानी है, जो एक चार साल की बच्ची ने इस समाज पर किया था। एक बच्ची जो न समझती थी हवस, न जानती थी ‘दरिंदा’ शब्द का मतलब... लेकिन फिर भी शिकार बन गई—एक ऐसे शख्स की दरिंदगी का, जिसे पहले भी समाज सुधारने का मौका दे चुका था।

दरिंदगी का दिन, दोपहर का सन्नाटा

बुधवार की दोपहर आम दिनों जैसी थी। लेकिन उस बच्ची के लिए यह दिन ज़िंदगी के सबसे भयावह अध्याय की शुरुआत बन गया। वो अपने बुआ के घर आई थी। घर के बाहर खेल रही थी—बिल्कुल वैसे ही जैसे हर मासूम खेलते हैं। तभी पड़ोस में रहने वाला वेदप्रकाश ध्रुव आया। चेहरा परिचित था, इसलिए बच्ची को कोई डर नहीं हुआ। वह उसे बहला-फुसलाकर अपने घर ले गया।

जो कुछ हुआ उसके बाद, वह शब्दों से परे है। उसने मासूमियत को रौंद दिया। उसकी सिसकियां दीवारों में गूंजती रहीं—और तभी एक करुण पुकार परिजनों के कानों में पड़ी। जब वे आरोपी के घर पहुंचे, तो दरवाजा खोलते ही जो दृश्य उन्होंने देखा, वह किसी माता-पिता के लिए सबसे बड़ा दुःस्वप्न होता है।

कुर्सी पर बैठा वह राक्षस, जो कह रहा था—'चुप रहो'

बच्ची दर्द से तड़प रही थी। सामने कुर्सी पर बैठा युवक—उसकी आंखों में न पश्चाताप था, न शर्म। केवल एक चेतावनी थी—"चुप रहो।" कैसे कोई इंसान इतना निर्दयी हो सकता है? सवाल परिजनों के ही नहीं, पूरे मोहल्ले के हैं। बच्ची को उठाकर अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां भी उसे तसल्ली नहीं मिली।

महिला डॉक्टर नहीं थी… फिर रेफर, फिर और दूर…

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, छुरा। वहां एक महिला डॉक्टर तक नहीं थी। मजबूरी में उसे जिला अस्पताल, गरियाबंद ले जाया गया। वहां से उसकी गंभीर हालत को देखते हुए रायपुर रेफर कर दिया गया।

एक बच्ची जो ठीक से चल भी नहीं पाती, वह अब जिंदगी और मानसिक त्रासदी के बीच संघर्ष कर रही है। और हम? हम उसे एक नाकारा सिस्टम के हवाले कर चुके हैं।

वेदप्रकाश ध्रुव: नाम नहीं, समाज का कलंक

जिस शख्स ने यह घिनौना अपराध किया, उसका नाम है वेदप्रकाश ध्रुव, उम्र 27 साल। लेकिन यह उसका पहला अपराध नहीं है। वह पहले भी एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म के मामले में POCSO एक्ट के तहत जेल जा चुका है।

जेल से छूटे 15 दिन भी नहीं हुए थे, कि उसने चोरी की वारदात को अंजाम दिया। 6 मार्च 2025 को वह फिर जेल गया और अब जब वापस लौटा—एक बार फिर उसी शैतानी राह पर चल पड़ा।

सवाल यही है—कब तक मिलेगा अपराधियों को दूसरा मौका?

वेदप्रकाश जैसे लोग हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी विफलता हैं। जिन्हें सुधार गृह में भेजा जाता है, वो दोबारा समाज में लौटकर पहले से भी खतरनाक बनकर सामने आते हैं।

क्या बच्ची की जिंदगी का दर्द किसी सुधार कार्यक्रम का परिणाम है? क्या अब वक्त नहीं कि ऐसे अपराधों में सख्त से सख्त सजा दी जाए, जिसमें "एक और मौका" जैसा शब्द ही न बचे?

पुलिस ने किया गिरफ्तार, लेकिन क्या अब उस बच्ची का बचपन लौटेगा?

छुरा पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। उस पर 64, 65(2), 115(2), 4(2), 6 BNS और POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है।

लेकिन क्या कोई कानून उस बच्ची की मासूमियत लौटा सकता है? क्या कोई गिरफ्तारी उसके डर को मिटा सकती है?


यह सिर्फ एक केस नहीं, समाज का आइना है

ये घटना हमें बताती है कि हम अभी भी बच्चों को एक सुरक्षित समाज नहीं दे सके। जहां एक बच्ची खुले में खेलने से पहले अपने रिश्तेदार तक पर भरोसा न कर सके—वह समाज अपराधियों से नहीं, चुप्पी से हारता है।


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