राजेंद्रग्राम।
पुष्पराजगढ़ के जाने माने नेता और राजनीति के युवा चेहरा हीरा सिंह श्याम के दादा जी करन सिंह श्याम ने 100 की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है. अमगवां के काका अमगवां को छोड़ गए. इससे हीरा सिंह समेत इलाके के लोगों में मातम छा गया है. हीरा सिंह श्याम ने इस दुख की कठिन परिस्थिति में दादा करन सिंह श्याम को नम आंखों से श्रद्धाजलि अर्पित की है. साथ ही परिवार के लोगों को दुख सहने की ईश्वर से शक्ति प्रदान करने की कामना की है. दादा जी अगर किसी के लिए जिंदगी को जिए हैं, तो वो दूसरों के लिए जिए हैं, अक्सर लोगों की मदद करना उनकी फितरत थी, चाहे कोई किसी भी तरह की परेशानी में क्यों न हो. दादा जी लोगों की अक्सर मदद ही करते रहते थे, जिससे उनका प्यार लोगों के दिल में घर कर गया था, लेकिन दादा जी अपने प्यार और दुलार के बीच लोगों की आंखों में आंसू देकर दुनिया को अलविदा कह गए.
हीरा सिंह श्याम को राजनीतिक दुनिया में कदम रखने में दादा करन सिंह का बड़ा योगदान रहा, लेकिन अचानक उनका निधन हो गया, जिससे पूरा परिवार दुख में समाया हुआ है. अमगवां के लिए बहुत ही दुख का दिन है, क्योंकि हीरा के मार्गदर्शक पूज्यनीय दादा करन सिंह श्याम ब्रम्हलीन हो गए. इस दुख को लेकर परिवार के आंखों में आंसू है, लोग इस दुख को सह नहीं पा रहे हैं. हीरा सिंह श्याम इस दुख की घड़ी में परिवार में ढांढस बंधा रहे हैं. परिवार को संत्वना दे रहे हैं.
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हीरा सिंह ने अपने करुण लफजों में कहा कि दादा जी ऐसे व्यक्ति थे, जिनको रामायण.गीता कंठस्थ था. ज्योतिष के बहुत बडे ज्ञाता थे, जिनके पास दूर दूर से लोग मिलने आया करते थे. जिनके माध्यम से पूरे क्षेत्र में धर्म का परचम लहराया था. जनजातीय समाज के गौरव थे. आज उनका हम सब के बीच से जाना पूरे क्षेत्र व समाज के लिए बहुत बड़ी क्षति है, जिसका कभी भरपाई नहीं हो सकता है. परमपिता परमात्मा से आग्रह है कि मृत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे. हमारे समाज के बहुत बड़े मार्गदर्शक रहे हैं.
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हीरा ने कहा कि इन्हीं के वजह से आज हमारा गांव शाकाहारी है, जबकि 90 प्रतिशत गोंड समाज के लोग हैं. ये हमारे दादा जी की पीढ़ी के अंतिम व्यक्ति थे. पूरे क्षेत्र में काका जी के नाम से प्रशिद्ध थे. बहुत बड़े ज्योतषी थे. रामायण गीता कंठस्थ याद था. गीता, रामायण और पुराण के बहोत बड़े जानकर और महन्त थे, जो पूरे गीता रामायण के भावार्थ को समाज को समझाते थे.सभी समाज के लोग इन्हें प्यार से काका ही बोला करते थे.
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हीरा ने कहा कि दादा जी सभी समाज के लोगों के मार्गदरक थे. वे बहोत ही मृदुभाषी थे. हमारे क्षेत्र में हर एकादसी अमावस्या को सत्संग का आयोजन कराया करते थे. हर समाज के व्यक्ति के यहां और इनके पास आते थे और ये उनके यहां जाते थे. इनके अंदर गुस्सा नाम का चीज ही नहीं था. कुल मिलाकर क्रोध को वश में कर रखे थे.हीरा सिंह श्यां ने नम आंखों से कहा कि आज इनके अंत्योष्टि में हजारों लोग आए थे. जो मैंने पहली बार किसी नार्मल व्यक्ति के अंत्योष्टि में इतना भयानक जन सैलाब देखा था, जबकि बहुत ही सहज सरल व्यक्ति थे. पूरे जीवन भर चाहे कोई भी सीजन हो चाहे गर्मी व ठंडी रोज सुबह 4 बजे स्नान कर लिया करते थे. आज दादा जी याद आ रहे हैं, जिनको भुला पाना मेरे लिए किसी तपस्या से कम नहीं है. इनको अपने जीवन में कभी भुला नहीं पाऊंगा. मेरे एक अच्छे मार्ग दर्शक मेरे को छोड़कर चले गए.
https://youtu.be/nX92re-VMuY
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Landmines, Tanks, Ruins: The Afghanistan Taliban Left Behind in 2001
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