Mohammed Rafi Untold Story : जानिए मोहम्मद रफी की जिंदगी के अनसुने किस्से, नाई की दुकान से बॉलीवुड तक का सफर
MP CG Times / Wed, Dec 24, 2025
Mohammed Rafi Untold Story: आज से 101 साल पहले, 24 दिसंबर 1924 को हिंदी सिनेमा के महान प्लेबैक सिंगर मोहम्मद रफी साहब का जन्म हुआ था। अगर वे आज जीवित होते, तो 101 वर्ष के होते। हालांकि, साल 1980 में 56 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज और उनके गाए गीत आज भी करोड़ों दिलों में जिंदा हैं।
करीब 40 साल लंबे करियर में मोहम्मद रफी ने 25 हजार से ज्यादा गाने गाए, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। 50 से 70 के दशक तक बॉलीवुड पर राज करने वाले रफी साहब की आवाज में ऐसी जादुई मिठास थी, जो हर तरह के गीतों में जान डाल देती थी—चाहे वह रोमांटिक हों, दर्द भरे गीत हों, भजन हों या देशभक्ति गीत।

बचपन से जुड़ी अनसुनी कहानी
मोहम्मद रफी का जन्म अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई भी वहीं हुई। जब रफी करीब 7 साल के थे, तब उनका परिवार रोजगार की तलाश में लाहौर चला गया। उनके परिवार का संगीत से कोई सीधा संबंध नहीं था।
रफी के बड़े भाई की नाई की दुकान थी, जहां रफी अक्सर वक्त बिताते थे। कहा जाता है कि उसी दौरान रफी एक फकीर के पीछे-पीछे जाया करते थे, जो गाते हुए वहां से गुजरता था। उसकी आवाज की नकल करते-करते रफी की गायकी लोगों को पसंद आने लगी। नाई की दुकान पर आने वाले लोग उनकी आवाज की तारीफ करने लगे।
रफी की इस प्रतिभा को उनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने पहचाना और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत सीखने भेजा।
13 साल की उम्र में पहला मंच
एक बार ऑल इंडिया रेडियो, लाहौर में मशहूर गायक-अभिनेता कुंदन लाल सहगल का कार्यक्रम था। रफी और उनके भाई भी वहां पहुंचे थे। कार्यक्रम के दौरान बिजली गुल हो गई, जिसके चलते सहगल ने गाने से मना कर दिया।
तब रफी के भाई के अनुरोध पर आयोजकों ने 13 साल के मोहम्मद रफी को मंच पर गाने का मौका दिया। यही वह क्षण था, जिसने इतिहास बदल दिया। उस कार्यक्रम में संगीतकार श्याम सुंदर भी मौजूद थे, जो रफी की आवाज से बेहद प्रभावित हुए और उन्हें अपने लिए गाने का न्योता दिया।
फिल्मों में एंट्री और पहली पहचान
मोहम्मद रफी ने 1944 में पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ से अपने करियर की शुरुआत की। 1946 में वे बंबई (अब मुंबई) आए, जहां उन्हें संगीतकार नौशाद ने फिल्म ‘पहले आप’ में गाने का मौका दिया।
उसी साल फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ का गीत ‘तेरा खिलौना टूटा’ रफी की पहचान बन गया। इसके बाद ‘शहीद’, ‘मेला’ और ‘दुलारी’ जैसी फिल्मों में उनके गाने सुपरहिट साबित हुए।
‘बैजू बावरा’ से मिली अपार लोकप्रियता
साल 1951 में फिल्म ‘बैजू बावरा’ के गीतों ने मोहम्मद रफी को रातोंरात स्टार बना दिया। शुरुआत में नौशाद इन गीतों को तलत महमूद से गवाना चाहते थे, लेकिन एक घटना के बाद उन्होंने अपना फैसला बदल लिया और रफी को मौका दिया। यह फैसला हिंदी सिनेमा के इतिहास का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
इसके बाद शंकर-जयकिशन, एस.डी. बर्मन, ओ.पी. नैयर जैसे दिग्गज संगीतकारों ने रफी साहब के साथ काम किया। यहां तक कि राज कपूर की फिल्मों में, जहां आमतौर पर मुकेश की आवाज इस्तेमाल होती थी, वहां भी कई बार मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी।
आज भी मोहम्मद रफी को भारतीय सिनेमा की आत्मा कहा जाता है—एक ऐसी आवाज, जो कभी पुरानी नहीं होती।
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