: रायपुर स्थानीय संपादकीय : साइकिल का पहिया जाम
रायपुर। प्रदेश में कुछ अधिकारियों की कार्यप्रणाली के कारण सरकारी योजनाओं पर जहां ग्रहण लग जाता है, वहीं अतार्किक निणर््ायों से योजनाएं बीच में ही फंस जाती हैं। राज्य सरकार की निश्शुल्क सरस्वती साइकिल वितरण योजना इसका उदाहरण है। इस योजना के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा व वंचित वर्ग तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की नौवीं में पढ़ रही डेढ़ लाखछात्राओं को साइकिलें वितरित की जानी हंै।
इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग नेसभी जिलों के लिए दो वर्ष पूर्व निर्धारित दर से 87 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए हैं। मुश्किल है कि इस काल अवधि में निर्धारित साइकिलों की कीमत डेढ़ गुना हो गई है।
आपूर्ति कर्ताओं ने पूर्व निर्धारित दर पर साइकिल उपलब्ध कराने से मना कर दिया है। इन परिस्थितियों ने जिला शिक्षा अधिकारियों के समक्ष सांप-छुछंदर की स्थिति पैदा कर दी है। वे उच्च अधिकारियों को कुछ कह नहीं पा रहे हैं और इतनी कम राशि में छात्राओं को साइकिलें उपलब्ध नहीं कराया जा सकता।
दूसरा पक्ष यह कि गरीब परिवारों की छात्राओं को शाला जाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से संचालित सरकार की योजना का उद्देश्य गलत निर्णय के कारण प्रभावित हो रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में नौवीं से 12वीं तक स्कूलों की दूरी को देखते हुए भी जरूरी है कि छात्राओं के पास आने-जाने का संसाधन उपलब्ध हो। ऐसे में कहना अनुचित नहीं होगा कि व्यवस्था में व्याप्त अव्यवहारिकता ने साइकिल के पहिए को जाम कर दिया है। वर्तमान परिस्थितियों में इन छात्राओं को नौवीं कक्षा में रहते हुए साइकिल मिल पाना संदिग्ध हो गया है।
यह सरकारी कार्य व्यवस्था और कार्यश्ौली का नमूना ही है कि फाइलें परंपरागत तरीके से एकके बाद एक टेबल से आगे बढ़ती गईं और राशि भी जारी कर दी गई। विभाग में पदस्थ क्लर्क से लेकर अधिकारियों तक ने यह जांच करने की आवश्यकता नहीं समझी कि साइकिल की कीमतों में कोई बदलाव हुआ है या नहीं।
विभागीय अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन (सीएसआइडीसी) द्वारा दो वर्ष पूर्व निर्धारित दर के आधार पर खरीदारी का निर्णय लेकर यह परेशानी खड़ी की है। उस समय एक साइकिल के लिए चार हजार रुपये की दर निर्धारित की गई थी।
आज उसी साइकिल की कीमत करीब छह हजार रुपये है। उचित होता कि नए वित्तीय वर्ष के आधार पर विवरण मंगवाया जाता और उसके बाद ही अनुमानित राशि आवंटित की जाती। सभी विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों को असहज करने वाली स्थिति उत्पन्न् होने के बाद आवश्यक है कि बिना देरी सुधार के काम शुरू किए जाएं। इसके लिए जिला शिक्षा अधिकारियों को ही पहल करनी होगी।
अगर वह वास्तव में पात्र छात्राओं को समय से साइकिल उपलब्ध करवाना चाहते हैं तो जल्द से जल्द विभागीय अधिकारियों को सूचित किया जाना चाहिए कि आवंटित राशि में छात्राओं को साइकिल उपलब्ध कराना संभव नहीं है।
शीर्ष अधिकारियों को भी चाहिए कि विभागीय मंत्री से परामर्श कर सुधार के लिए जल्द से जल्द पहल करें। उम्मीद की जानी चाहिए कि विभागीय स्तर पर जांच भी कराई जाएगी कि सरकार के लिए बदनामी का कारण बनने वाली इस तरह की गड़बड़ी क्यों हुई।
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