: Ambikapur : हसदेव कोल ब्लॉक में अगली सुनवाई तक पेड़ न काटने का वादा, आईसीएफआईआर की रिपोर्ट पेश करने का निर्देश
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर स्थित हसदेव जंगल में कोल माइंस के लिए पेड़ों की कटाई न करने का वायदा... - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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हसदेव अरण्य क्षेत्र में आबंटित कोल ब्लाकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर तीन याचिकाओं की सुनवाई बुधवार को की गई। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने वादा किया है कि वे सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटे जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच हसदेव में कोयला खदानों के लिए वन भूमि आबंटन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है। हसदेव क्षेत्र में कोल ब्लाकों के लिएं लाखों की संख्या में पेड़ काटे जाने हैं।
याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद आईसीएफआईआर की अध्ययन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। आईसीएफआईआर ने दो भागों की इस रिपोर्ट में हसदेव अरण्य की वन पारिस्थितिकी और खनन का उसपर प्रभाव का अध्ययन किया है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह रिपोर्ट पेश करने के लिए कुछ और समय देने की मांग की।
याचिकाकर्ताओं मे से सुदीप श्रीवास्तव की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अधिवक्ता नेहा राठी ने कहा कि सुनवाई आगे बढ़ाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन तब तक केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम की ओर से पेड़ों की कटाई नहीं होनी चाहिए। उसके बाद केंद्र सरकार और राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम की ओर से वादा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई तक हसदेव क्षेत्र में किसी पेड़ की कटाई नहीं की जाएगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने का निवेदन स्वीकार कर लिया।
सुदीप श्रीवास्तव की याचिका में आबंटन को चुनौती
केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2011 में हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक कें पहले चरण की अनुमति दी गई थी। वहीं केंद्र सरकार की ही वन सलाहकार समिति ने जैव विविधता पर खतरा बताते हुए आबंटन को निरस्त करने की सिफारिश की थी। इसके बाद क्षेत्र को नो-गो घोषित कर दिया गया था। इसके बाद भी 2012 में अंतिम चरण का क्लियरेंस जारी करते हुए कोयला खनन की अनुमति दे दी गई।
इसके बाद वर्ष 2013 में इस ब्लॉक में खनन भी शुरू हो गया। इसके खिलाफ छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत की। एनजीटीने भारतीय वन्य जीव संस्थान से अध्ययन कराने का सलाह दी थी। इसके बाद भी केते एक्सटेंशन को भी अनुमति दे दी। सुदीप श्रीवास्तव ने कोल ब्लाक के लिए वन भूमि आबंटन को चुनौती दी है।
एमडीओ अदानी को डीके सोनी ने दी है चुनौती-
इसी मामले से जुड़ी एक और याचिका अंबिकापुर के अधिवक्ता डी.के. सोनी ने दायर की है। उन्होंने माइन डेवलॅपर एंड ऑपरेटर के रूप में अदानी को राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम द्वारा अडानी समूह के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर खदान को निजी कंपनी के हवाले करने के खिलाफ दायर याचिका में कहा है कि इस तरह के अनुबंध को सर्वोच्च न्यायालय 2014 में पहले ही अवैध घोषित कर चुका है। इसी वजह से राजस्थान को मिला कोल ब्लॉक रद्द भी हुआ था।
केंद्र सरकार ने बाद में यह नियम बनाते हुए कि सरकारी उपक्रम के कोयला खदान में 26 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी निजी कंपनी के होने या खदान के किसी भी निजी हित के उपाजित होने पर प्रतिबंध रहेगा, खदान का पुनआर्बंटन किया है। अदानी के एमडीओ होने के कारण राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को मंहगे दरों पर अदानी से कोयला खरीदना पड़ रहा है। इस मामले में 13 अक्टूबर को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोयला मंत्रालय को नोटिस जारी किया है, लेकिन इसमें कोयला मंत्रालय ने जवाब प्रस्तुत नहीं किया है। मामले में एक अन्य याचिका हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की ओर से जयनंदन पोर्ते ने दायर की है।
एक दिन में काट दिए गए थे आठ हजार पेड़-
पीकेईबी खदान के दूसरे चरण का काम शुरू करने 27 सितंबर को सरगुजा जिला प्रशासन ने एक हजार से अधिक पुलिस फोर्स लगाकर एक दिन में ही आठ हजार पेड़ों को कटवा दिया था। पीकेईबी खदान को आबंटित 2711 हेक्टेयर भूमि में 1898 हेक्टेयर भूमि वनभूमि है, जहां सैकड़ों सालों में तैयार जंगल में लाखों की संख्या में पेड़ काटे जाने हैं। इस वर्ष 11 हजार 808 पेड़ों को काटा जाना है। इसमें से आठ हजार पेड़ काट दिए गए हैं। पेड़ों की कटाई का विरोध लोगों द्वारा आंदोलन कर किया जा रहा है।
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