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Ganesh Chaturthi 2021: गणेश चतुर्थी आज से शुरू, विस्तार से जानिए स्थापना विधि और पूजा का शुभ मुहूर्त

आज से गणेशोत्सव की शुरुआत हो गई है. वैसे तो ये पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसकी खास रौनक महाराष्ट्र में देखने को मिलती है. गणेश चतुर्थी के दिन घर पर गणपति जी की स्थापना की जाती है. उनकी विधि विधान पूजा की जाती है. फिर एक निश्चित समय पर गणेश विसर्जन कर दिया जाता है. अगर आप घर पर गणपति बप्पा की स्थापना करना चाहते हैं, तो जानिए मूर्ति स्थापना, गणेश पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि.

गणेश चतुर्थी पूजा मुहूर्त

  • चतुर्थी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को रात 12.18 बजे से हो चुकी है, जो 10 सितंबर को रात 9.57 बजे तक रहेगी.
  • गणेश जी की मूर्ति स्थापना सूर्योदय से लेकर पूरे दिन की जा सकती है.
  • गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 से दोपहर 01.32 बजे तक रहेगा.
  • गणेश महोत्सव 10 सितंबर से लेकर 19 सितंबर तक चलेगा.
  • गणेश विसर्जन 19 सितंबर 2021 को है.

गणेश स्थापना विधि

गणेश चतुर्थी पूजा के लिए मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा सबसे उत्तम मानी जाती है. गणपति जी को इस दिन गाजे बाजे के साथ घर लाएं. एक चौकी पर पीले वस्त्र का आसन लगाकर उस पर गणेश प्रतिमा स्थापित करें. इस मंत्र से प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करें-अस्य प्राण प्रतिषठन्तु अस्य प्राणा: क्षरंतु च।
श्री गणपते त्वम सुप्रतिष्ठ वरदे भवेताम।।

इसके बाद गंगाजल और पंचामृत से गणेश जी का अभिषेक करें. उन्हें नए वस्त्र अर्पित करें. फिर चंदन, धूप, दीप, सिंदूर, फूल, मोदक और फल चढ़ाएं. उसके बाद गणेश जी की आरती करें. आप इन 10 दिनों में से जितने दिन के लिए गणेश जी को रखना चाहते हैं उतने दिन रख उनकी विधि विधान पूजा करें और निश्चित अवधि में उनका विसर्जन कर दें.

गणेश पूजन विधि

स्थापित की गई गणेश प्रतिमा की रोजाना विधि विधान पूजा करें. इसके लिए सूर्योदय से पहले उठ जाएं. स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और गणेश जी की समक्ष बैठकर पूजा शुरू करें. भगवान गणेश का गंगाजल से अभषेक करें. उन्हें अक्षत, फूल, दूर्वा चढ़ाएं. उन्हें उनके प्रिय मोदक का भोग लगाएं. इसके बाद धूप, दीप, अगरबत्ती जलाकर गणेश जी की अराधना करें. अंत में आरती उतार गणेश जी के मंत्रों को जाप करना चाहिए. शाम के समय गणेश जी का फिर से पूजन करना चाहिए. गणेश चालीसा का पाठ करें.

गणेश जी की पूजा के दौरान इन मंत्रों का करें जाप

ओम गं गणपतये नमः
ओम एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
ओम श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
ओम वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
ओम हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा.

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