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: गरियाबंद में 6 करोड़ की मंजूरी, फिर भी नहीं बनी पुल: छात्रा की मौत के बावजूद नहीं जागा सिस्टम, कब तक जान जोखिम में डालेंगे आदिवासी बच्चे?

गरियाबंद से गिरीश जगत की रिपोर्ट

Chhattisgarh Gariaband Bakdi Pairi Nala bridge not constructed: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के बाकड़ी पैरी नाला पर 6 करोड़ रुपए की लागत से उच्च स्तरीय पुल निर्माण को मंजूरी मिलने के दो साल बाद भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। इसके चलते क्षेत्र के कमार जनजातीय छात्र आज भी बरसात के मौसम में कमर तक पानी पार कर शिक्षा के लिए जोखिम उठा रहे हैं।

जानडीह, कौर और बोडापाला जैसे गांवों के 20 से अधिक आदिवासी छात्र रोजाना 4 किलोमीटर दूर धवलपुर मिडिल और हाई स्कूल पढ़ने जाते हैं। इन गांवों से स्कूल जाने के लिए पहले बाकड़ी पैरी नाला पार करना होता है, फिर 2 किलोमीटर का जंगली रास्ता तय करना पड़ता है।

बरसात में जान जोखिम में डाल स्कूल जाते हैं छात्र

बारिश के दिनों में नाले का बहाव तेज होने पर छात्रों को स्कूल छोड़ना पड़ता है, या फिर वे अपनी जान जोखिम में डालकर नाला पार करने की कोशिश करते हैं। यह स्थिति केवल छात्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि आसपास की करीब 1000 की आबादी हर बरसात में इसी समस्या से जूझती है।

छात्रा की मौत के बाद भी नहीं बदली स्थिति

8 अगस्त 2012 को इसी नाले में 9वीं की छात्रा जमुना नेताम की डूबने से मौत हो गई थी। वह ट्यूब की मदद से नाला पार कर रही थी। इस हादसे के बाद परिजन इतने भयभीत हो गए कि उन्होंने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया।

हालांकि, मृतका के भाई हेमसिंह नेताम ने हिम्मत दिखाते हुए सभी बच्चों को रोजाना सुरक्षित नाला पार कराने का बीड़ा उठाया। उपसरपंच बालकिशन सोरी के अनुसार, हेमसिंह अब भी राहत-सुरक्षा के जरूरी सामान लेकर बच्चों को पार कराते हैं।

2023 में मिली थी पुल निर्माण की मंजूरी, फिर भी अधर में अटका काम

जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने बताया कि वर्ष 2023 में कांग्रेस सरकार ने बाकड़ी पैरी समेत तीन नालों पर उच्चस्तरीय पुल निर्माण की मंजूरी दी थी। अन्य दो स्थानों पर कार्य प्रारंभ हो चुका है, लेकिन बाकड़ी पैरी पर अब तक कोई काम शुरू नहीं हुआ है। संजय नेताम ने इस संबंध में विभिन्न स्तरों पर पत्राचार कर कार्य प्रारंभ कराने की मांग की है।

लोक निर्माण विभाग का दावा: बारिश के बाद कार्य होगा प्रारंभ

सेतु शाखा के एसडीओ एस.के. पंडोले ने बताया कि पुल निर्माण से पहले डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) के लिए स्थल की गहराई और अन्य तकनीकी जांच जरूरी होती है। इसके तहत दो साल पहले बोरवेल खुदाई का कार्य शुरू किया गया था, जो बाद में बाधित हो गया। अब बोरवेल कार्य के लिए नई टेंडर प्रक्रिया जारी है।

एसडीओ ने दावा किया कि बारिश खत्म होने के बाद डीपीआर बनेगी, तकनीकी स्वीकृति मिलेगी और पुल निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया जाएगा।

छात्रा की मौत के 12 साल बाद भी यदि पुल निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है, तो यह स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और योजनाओं के क्रियान्वयन में गंभीर कमजोरी को दर्शाता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार सरकारी आश्वासन पर जल्द अमल हो और आदिवासी बच्चों को सुरक्षित शिक्षा का रास्ता मिल सके।

Read more- Landmines, Tanks, Ruins: The Afghanista Taliban Left Behind in 2001 29 IAS-IPS

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