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Karauli Ashram: सनातन संस्कृति के वाहक करौली शंकर महादेव पर एकाएक लगाए जा रहे आरोपों के संबंध में स्पष्टीकरण

नई दिल्ली। करीब 20 वर्ष पहले विधनू थाना क्षेत्र के गांव करौली में आश्रम स्थापित किया गया। तभी से वहां प्राकृतिक कृषि, गौपालन के साथ आयुर्वेदिक व प्राकृतिक चिकित्सा की गतिविधियां चल रही हैं। प्रतिदिन हजारों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। अभी तक देशभर के लाखों लोग शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हुए हैं। इनके प्रमाण उपलब्ध हैं। यह सब कार्य एक जुनून की तरह से डाॅ संतोष सिंह भदौरिया जी के नेतृत्व में होता रहा है। साथ ही साथ डाॅ भदौरिया जी तंत्र विद्या और अध्यात्म के भी साधक रहे हैं। उसी आलोक में तंत्र के गुरु श्री राधारमण मिश्र जी की कृपा और आशीर्वाद शिष्य के रूप में प्राप्त हुआ है, जिसके फलस्वरूप डाॅ भदौरिया जी को विशेष उर्जा प्राप्त हुई। इसी उर्जा के स्वामी होने के कारण जनसामान्य ने उन्हें गुरु जी के रूप में संबोधन दिया, स्वीकारा। आज गुरु जी रूपी यह उर्जा ही वह आकर्षण है, जिसके चलते लाखों लोग करौली आश्रम खींचे चले आ रहे हैं, क्योंकि आश्रम में पहुंचने मात्र से लोग राहत महसूस करने लगते हैं।

गुरु जी के समक्ष आने पर बीमार से बीमार व्यक्ति स्वयं से ही उर्जित महसूस करने लगता है। बीमार हो तो स्वस्थ होने लगता है, चाहे वह शारीरिक रोग हो या मानसिक रोग। बेशक, श्री संतोष सिंह भदौरिया जी बचपन से जवानी तक सामान्य व्यक्ति रहे हैं, वे आक्रामक किसान नेता भी रहे हैं, राजनीतिक क्रियाकलापों में भी रहे हैं, मुकदमेबाजी में फंसे हैं, जेल भी गए हैं। लेकिन, यह उनका अतीत था, तब वे सामान्य मनुष्य के रूप में भदौरिया जी थे, आज असामान्य रूप से गुरु जी हैं। भदौरिया जी से लेकर, गुरु जी तक की यात्रा साधना के बल पर की है, उनकी पुस्तक ईश्वरीय चिकित्सा, एक अनुसंधान में इस पर सब कुछ स्पष्ट लिखा गया है। दुर्भाग्यजनक यह है कि अभी जो लोग उनकी इस साधना के बारे में अनभिज्ञ हैं, वे उन्हें भदौरिया जी मानकर ही चल रहे हैं, जिनके बहुत सारे व्यक्तिगत मित्र भी रहे हैं और शत्रु भी। जबकि मध्यस्थ दर्शन के प्रतिपादक संत श्री अग्रहार नागराज जी का एक तथ्य है कि कोई भी मनुष्य अपनी संकल्प शक्ति से कब कितना बदल जाएगा, इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। भदौरिया जी इतना ही बदले हैं, लेकिन कुछ लोगों को भदौरिया जी का गुरुजी बनना नहीं पच रहा है, इसलिए यह व्यक्तिगत ईर्ष्या-द्वेष और आरोप-प्रत्यारोप हैं। जोकि पूर्वाग्रहों से ग्रसित है।

अन्यथा, वर्तमान में प्रतिदिन हजारों पीडि़त लोग आश्रम पहुंच रहे हैं। चूंकि यहां जीवन और आत्मा से जुड़े मन के क्रियाकलापों का भी प्राचीन वैदिक विज्ञान के तरीके से उपचार होता है, इसलिए बड़ी संख्या में मनोरोगी भी दरबार आते हैं। चूंकि आश्रम में साधन सीमित हैं, इसलिए उन्हें संभालने की पूरी जिम्मेदारी उनके परिजनों की ही होती है। संख्या अधिक होने के कारण कुछ लोगों से गुरु जी मिल पाते हैं, कुछ से नहीं मिल पाते हैं। इसी के चलते हजारों में एक दो लोग दुखी हो जाते हैं, आहत या आक्रोशित भी हो जाते हैं। कोई आश्रम की व्यवस्था मनोकूल न होने के कारण नाराज हो जाता है तो कोई अपेक्षानुसार लाभ न मिलने के कारण रूष्ट हो जाता है। कोई रहस्य या चमत्कार न दिख पाने के दरबार पर प्रश्न उठाने लगता है, जबकि सभी को बार-बार स्पष्ट किया जाता है कि यहां कोई रहस्य या चमत्कार नहीं है, न ही कोई जादू टोना या झाड़ फूंक होती है। वास्तव में जो लोग सनातन या वैदिक ज्ञान से परिचित नहीं होते हैं या आधे-अधूरे परिचित होते हैं, वे ही लोग प्रश्न उठाते हैं।

आरोप संख्या एक

नोएडा के चिकित्सक महोदय सिद्वार्थ चौधरी द्वारा लगाए गए आरोप भी इसी श्रेणी के हैं। उनका आचरण काफी आक्रामक व अमानवीय रहा है। फिर भी आश्रम अपनी जिम्मेदारी को स्वीकारता है, उनके हितों की कामना करता है। रही बात, उनके आरोपों की तो अब पुलिस इसकी जांच कर रही है, जांच में जो भी निष्कर्ष निकलेंगे, आश्रम उनका स्वागत करता है। उचित रूप से अपना पक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

आरोप संख्या दो

इसी प्रकार दूसरा आरोप किसी का बच्चा खो जाने का है। पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है, कि यहां आने वाले हर बीमार व्यक्ति की जिम्मेदारी उसके परिजनों की है। आश्रम में साधन सीमित हैं और निःशुल्क हैं, इसलिए सभी की सुरक्षा या देखभाल के लिए कर्मचारी तैनात नहीं किए जाते हैं। आश्रम एक मंदिर परिसर है, जिसमें हजारों भक्त आते हैं, दूसरे मंदिरों की तरह ही, इसलिए कोई व्यक्ति यह कहे कि उसका बेटा मंदिर गया था, गायब हो गया और यह मंदिर प्रशासन की जिम्मेदारी है, तो यह कहना न तर्कसंगत है, न न्यायोचित।

आरोप संख्या तीन

एक पूर्व सुरक्षा कर्मचारी द्वारा भी आरोप लगाया गया है कि उसके साथ आश्रम के वर्तमान सुरक्षा कर्मियों ने मारपीट की है। उसमें केवल इतना कहना है कि ये सभी सुरक्षा कर्मी साथ-साथ ड्यूटी करते रहे थे। उनका दूसरे कर्मचारी से कुछ व्यक्तिगत ईर्ष्या द्वेष हो सकता है, इसके लिए आश्रम को जिम्मेदार ठहराना न्यायोचित नहीं है। वहीं जहां घटनास्थल बताया गया है, वह दूसरे गांव के एक गेस्ट हाउस का मामला है। इसके लिए गुरुजी को जिम्मेदार ठहराना केवल उनकी हताशा का प्रदर्शन है। प्रिय, बंधुओं, मुख्य बात यह है कि हजारों की संख्या में एक दो लोग नाखुश रह सकते हैं, कोई विचारों से असहमत हो सकता है, कोई पद्धतियों से। यही लोकतंत्र है और यही इसकी सुंदरता। लेकिन, उन एक दो लोगों के प्रचार या दुष्प्रचार के कारण पूरी वैदिक पद्धितियों या सनातन व्यवस्था पर सवाल खड़ा करना कतई भी उचित नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उनके कारण बाकी के जो हजारों लोग हैं, वे लाभ से वंचित रह सकते हैं।

उनकी आस्था आहत होती है। दुर्भाग्यजनक यह है कि कुछ लोग ऐसा करके नकारात्मक तरीके से स्वयं को प्रसिद्ध करना चाहते हैं, ब्लैकमेल करना चाहते हैं। उनका यह कृत्य न केवल सनातन संस्कृति के लिए घातक है, बल्कि एक तरह से हमला है। इनके आरोपों का उत्तर देना, उन्हें नियंत्रित करना न केवल गुरु जी या आश्रम परिवार की जिम्मेदारी है, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है कि ऐसे भ्रमित और कुंठित लोगों से मंदिरों, आश्रमों, सनातन संस्कृति के पैरोकारों, वैदिक पद्धतियों के पहरूओं को बचाकर रखा जाए।

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