पुष्पराजगढ़ में CG के माफिया’ की काली सल्तनत: पुष्पराजगढ़ हो रहा खोखला, मशरूम की तरह उग रहे क्रेशर, मेकल को लूटने एक के बाद एक 5वें प्लांट को परमिशन, सांसद-विधायक मौन, कलेक्टर साहब देखिए बदहाल-ए-परसेल
पुष्पराजगढ़ माफिया एपिसोड- 1:
सिस्टम से सांठगांठ, करप्शन की हदें पार, बेखौफ फल फूल रहा जेठू का काला कारोबार. ये स्थानीय नेता, सांसद, विधायक और अफसरों की नाकामी के कारण पुष्पराजगढ़ में खनिज संपदा का दोहन हो रहा है. मेकल को लूटा जा रहा है. अवैध खदानों को सिस्टम ने हरी झंडी दिखाई है. CG का माफिया पठार का पत्थर निगल रहा है. पुष्पराजगढ़ खोखला कर रहा है. माफिया मशरूम की तरह क्रेशर उगा रहा है. हैरानी की बात ये है कि मेकल की खनिज संपदा को लूटने एक के बाद एक पांचवें प्लांट को परमिशन देने की फुल तैयारी बना ली गई है. इससे भी हैरानी की बात ये है कि सांसद-विधायक मौन बैठे हैं. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मेकल को बचाने की दुहाई देते हैं, लेकिन इधर अफसर और माइनिंग की सांठगांठ से माफिया बेहिसाब खनिज संपदा का दोहन कर रहा है.
कलेक्टर साहब बदहाल-ए-परसेल
दरअसल, अनूपपुर ज़िले का पुष्पराजगढ़ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के साथ-साथ भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो पुष्पराजगढ़ पठारी क्षेत्र होने के कारण खनिज संपदा से परिपूर्ण है, जिस वजह से यहां आसानी से खनिज मिल जाता है. यही वजह है कि खनिज का काला कारोबार बड़ी तादात में दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है. पुष्पराजगढ़ मध्य्प्रदेश और छतीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से पुष्पराजगढ़ क्षेत्र से निकलने वाला खनिज बड़ी आसानी से पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में खनन का काला कारोबार करने वाले कारोबारी सीमा पर बिना किसी रोक टोक के ले जाते हैं.
वर्षों से खनन माफिया लूट रहा मेकल
पुष्पराजगढ़ में आदिवासी जनजाति के लोग निवासरत हैं, जो आर्थिक रूप कमजोर हैं. इन गरीब आदिवासियों की मजबूरी का फायदा वर्षों से खनन माफिया उठाते रहे हैं. चंद पैसों की लालच देकर लाखों करोड़ों कमा रहे हैं. चंद रुपयों की लालच में ये अपना जीवन भी दांव पर लगा देते हैं, जिसका सीधा फायदा इन माफियाओं को मिलता है.
परसेल कला में अवैध तरीके से कारोबार
पुष्पराजगढ़ के ग्राम परसेल में स्थित स्टोन क्रेसर सरस्वती माइनिंग एंड क्रेसरिंग के मालिक जयप्रकाश शिवदासानी उर्फ जेठू के द्वारा वर्षों से बोल्डरों का अवैध उत्खन और परिवहन किया जा रहा है. चंद रुपयों का लालच देकर ग्रामीणों को आस पास के अवैध खदानों से ट्रैक्टर के माध्यम से पत्थरों का परिवहन कराकर क्रेसर में भंडार किया जा रहा है, लेकिन मजाल है कि अधिकारी इधर आंख उठाकर देख लें.
परसेल में करीब 1000 डंपर गिट्टी का भंडारण
खनिज विभाग अवैध भंडारण को लेकर छोटे-मोटे क्रेशरों पर खानापूर्ति कर अपनी रोटी सेक लेता है, लेतिन यहां हजारों गाड़ियां बोल्डर और गिट्टी अवैध पत्थर खदानों से लाकर स्टोर किया गया है, जिसपर कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही है. परसेल में अवैध खदानों की भरमार है, जहां जेसीबी और डंपर लगे हैं. पठार के पत्थर को खोद रहे हैं. भोले-भाले ग्रामीणों को कम पैसे में बहला-फुसलाकर खेत को खदान में बदला जा रहा है.
ब्लास्टिंग से पानी का लेवल डाउन
ग्रामीणों ने बताया कि जेठू बहला-फुसलाकर अवैध तरीके से खेतों को खोद रहा है. परसेल के कई इलाकों में गड्ढों की भरमार है. जहां से बिना लीज के पत्थरों को निकाला गया है. परसेल में वैसे भी पानी का संकट है औऱ ऊपर से हैवी ब्लास्टिंग से पानी का लेवल कम हो गया है. लोग झिरिया से पानी पी रहे हैं.
किसानों के खेत बंजर हो रहे
किसानों से बातचीत में अन्नदातओं ने बताया कि परसेल के क्रेशर से आसपास के खेतों में धूल पड़ता है, जिसकी वजह से क्रेशर बंजर हो रहे हैं. पहले जैसे अब ऊपज नहीं है. फसल धूल के कारण मरने लग जाते हैं. वहीं क्रेशर के धूल से घरों का बुरा-हाल रहता है. धूल से घर लाल रहते हैं.
जंगल से हरियाली गायब
वहीं एक तरफ पीएम मोदी पर्यावरण को लेकर G20 में ग्लोबल वार्मिंग के मद्देनजर विदेशी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्रियों और अफसरों से बातचीत कर रहे हैं. एक संदेश दे रहे हैं, जबकि मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में उनके सपनों में धूल डाला जा रहा है. यहां क्रेशरों की धूल जंगल से हरियाली गायब कर रही है. परसेल में जंगल के किनारे स्थापित क्रेशर ने पेड़ों से हरियाली गायब कर दिया है.
सांठगांठ से चलता है अवैध कारोबार
जयप्रकाश शिवदासानी उर्फ जेठू पुष्पराजगढ़ में एक छोटे से पत्थर खदान का मालिक हुआ करता था, लेकिन देखते ही देखते सेटिंग जुगाड़ पैसे के दम और गरीब आदिवासियों का शोषण करते हुए पुष्पराजगढ़ में एक के बाद एक छठवें क्रेशर का मालिक बन बैठा. सूत्र बताते हैं कि जेठू सेठ की माइनिंग और पुलिस में अच्छी खासी रकम देकर अवैध उत्खनन और परिवहन का काम दिन रात चलता है. छत्तीसगढ़ से आकर मध्यप्रदेश अनुपपुर ज़िले में माइनिंग विभाग के अधिकारियों और पुलिस अधिकारी का खुला संरक्षण मिलना अपने आप मे सवाल खड़ा करता है.
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