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गरियाबंद के बदनसीब गांव की कहानी: न जोगी, न रमन और न भूपेश सरकार ने ली सुध, 80 साल से विकास की राह, कमार जनजाति से सिस्टम कर रहा छलावा ?

गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद के ब्लॉक के बारुका पंचायत का गाहंदर गांव आज भी अपनी बदनसीबी पर आंसू बहा रहा है। विकास धरातल पर नहीं दिखता है। यहां की सड़कें भी खराब हैं। गांव में बदहाली है। नेता, मंत्री न स्थानीय जनप्रतिनिधि कोई ध्यान नहीं देता। यहां के लोग सांसद विधायक तक को नहीं जानते, लेकिन विकास के आस में हर बार वोट डालते हैं। प्रशासन भी इधर आंख बंदकर के बैठा है, जिससे विकास गांव तक नहीं पहुंचा।

मुख्यमंत्री तक का नाम नहीं जानते ग्रामीण

दरअसल, गाहंदर गांव में कमार जनजाति के लोग पिछले 80 साल से बसे हुए हैं। वर्तमान में 52 लोग रहते हैं। इस बार गांव के 22 लोग मतदान करेंगे। यह सुन के चौंकिएगा नहीं की इन्हें अपने जनप्रतिनिधि का नाम पता नहीं होता। मुख्यमंत्री का नाम भी नहीं जानते।वजह पूछने पर इसका भी वाजिब जवाब था ग्रामीणों के पास।

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इस गांव में न स्कूल न आंगनवाड़ी

ग्रामीण तीजू राम ने बताया कि उनका गांव 80 साल से भी ज्यादा पुराना है। वनोपज संग्रहण और बांस बर्तन बनाकर जीविका चलाते हैं। यहां के बच्चों के लिए न तो स्कूल है न आंगनबाड़ी भवन। बच्चे खुद से अपना जतन करना सीख जाने पर उन्हें नजदीकी छात्रावास भेज कर पढ़ाई करवाते हैं।

चार महिलाओं की हो चुकी मौत

पंचायत मुख्यालय 8 किमी दूर है। यहां तक आने जाने अब भी कच्चा रास्ता है। बीच में नाले और पथरीला पठार भी पड़ता है। प्रसव पीड़ा हुई तो प्रसूता को भगवान भरोसे छोड़ प्रसव कराते हैं। प्रसव के दरम्यान ऊंच नीच के कारण पहले चार माताओं की मौत भी हो चुकी है। बीमार लोगों को कांवर के सहारे पंचायत तक ले जाना पड़ता है।

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विकास के आस में हर बार मतदान करते हैं

मतदान को लेकर ग्रामीणों ने बताया कि वो हर साल मतदान इसी आस में करते हैं, ताकि उनकी गांव की तस्वीर बदल जाए। ग्रामीणों ने कहा कि कोई सरकार बने उनको कुछ पता नहीं होता है। बस उनको विकास की उम्मीद है। पता नहीं कब और कौन करेगा।

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