Dewari and Surhutti on Diwali in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में त्यौहारों का त्यौहार बड़े धूमधाम से शुरू हो जाता है। रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा और बस्तर संभाग में दिवाली अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है। कहीं इसे सुरहुट्टी कहते हैं तो कहीं इसे देवारी कहते हैं।
छत्तीसगढ़ में दशहरा खत्म होते ही लोग दिवाली की तैयारी में जुट जाते हैं। घरों की साफ-सफाई की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। घरों की रंगाई-पुताई के साथ ही सफेदी का काम भी किया जाता है।
दिवाली और देवारी की तैयारी
घरों की साफ-सफाई के साथ ही गांव, क्षेत्र और जिले के लोग दिवाली और देवारी की तैयारियों में जुट जाते हैं। सभी लोग मिलकर हंसी-खुशी के साथ देवारी की तैयारी करते हैं। दिवाली के दिन देवारी मनाई जाती है।
दशहरे के बाद छत्तीसगढ़ के अधिकांश घरों में आकाश दीया चमकने लगता है। इसे आगासड़िया कहते हैं। दशहरे से दिवाली तक हर घर के ऊपर आगासड़िया चमकता रहता है। जिसे घरों के ऊपर बांस पर लटकाया जाता है। लोग इसका प्रयोग देवउठनी यानी तुलसी पूजा के दिन तक करते हैं।
दिवाली के दिन मनाई जाती है देवारी
छत्तीसगढ़ में दिवाली के दिन देवारी मनाई जाती है। राज्य में लोग धनतेरस के दिन से ही अपने घर के आंगन में दिवाली का त्योहार मनाना शुरू कर देते हैं। उसके बाद दिवाली आती है। नरक चौदस यानी छोटी दिवाली मनाई जाती है। उसके बाद दिवाली का त्योहार मनाया जाता है।
दिवाली के दिन देवारी यानी दियारी नामक त्योहार मनाया जाता है। इस गांव में नई फसलों की पूजा की जाती है। इसके साथ ही मवेशियों की भी पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ के रीति-रिवाजों के जानकारों के अनुसार इस दिन फसलों का विवाह भी किया जाता है।
दिवाली पर सुरहुट्टी उत्सव मनाने की परंपरा
छत्तीसगढ़ में दिवाली के दिन सुरहुट्टी यानी लक्ष्मी पूजा मनाई जाती है। इस दिन दीयों को पानी से धोया जाता है और उसके बाद दीपोत्सव की तैयारी की जाती है। दिवाली की शाम को सबसे पहले तुलसी चौरा से दीये जलाने की परंपरा शुरू होती है। उसके बाद पूरे घर में दीये जलाए जाते हैं।
गांवों में दीये जलाने के बाद सुरहुट्टी या लक्ष्मी पूजा की जाती है। इसके बाद घर में दिवाली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य लक्ष्मी जी की मूर्ति के सामने आरती करते हैं। इस दौरान पशुधन और अनाज की भी पूजा की जाती है।
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