‘जितने साल मोदी PM, उतने साल नेहरू जेल में रहे’ : वंदे मातरम् की डिबेट में RSS भी घसीटा गया, 6 बड़े दावों की पूरी हकीकत, Vande Mataram History Fact Check
MP CG Times / Tue, Dec 9, 2025
सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम् पर 10 घंटे की बहस में सरकार और विपक्ष की तरफ से कई बड़े दावे हुए। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक दिए और वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए। नेहरू को लगता था कि इससे मुसलमानों को चोट पहुंच सकती है।
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने मोदी पर ही निशाना साधते हुए कहा कि जितने दिन से वो प्रधानमंत्री है, नेहरू उतने दिन जेल में रह चुके हैं। कांग्रेस ने RSS पर भी आरोप लगाया कि संघ ने आजादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया।
वंदे मातरम् की बहस के दौरान किए गए 6 बड़े दावे और उनकी हकीकत; जानेंगे एक्सप्लेनर में…

पहले सरकार के 3 दावे और उनकी सच्चाई
दावा-1: कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए
पीएम मोदी ने कहा- कांग्रेस ने वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए। कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए। तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस वंदे मातरम् के बंटवारे के लिए झुकी। इसलिए कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा।
सच्चाई क्या है?
वंदे मातरम् के 4 छंद हटाने का फैसला कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने लिया था, जिसमें महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू और अन्य सीनियर लीडर शामिल थे।
वंदे मातरम् की वजह से देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा था। नेहरू को यह एक साजिश का हिस्सा लग रहा था। इसके सबूत 1937 में ही उनकी सुभाष चंद्र बोस को लिखी चिट्ठी में मिलते हैं।
किताब वंदे मातरम्: बायोग्राफी ऑफ ए सॉन्ग के मुताबिक नेहरू ने लिखा था, 'वंदे मातरम् के खिलाफ उठा विवाद सांप्रदायिक सोच के लोगों का बनाया हुआ है। हमें जो भी करना है वो सांप्रदायिक भावनाओं को बढ़ावा देने नहीं, बल्कि समस्या का असल समाधान निकालने के लिए करना चाहिए।'
वंदे मातरम् में बदलाव का फैसला मुस्लिम लीग के सामने झुकना नहीं था, इसका एक सबूत 1948 में नेहरू की कांग्रेस लीडर जी. सी. रॉय को लिखी अन्य चिट्ठी में मिलता है। इस समय उन्होंने वंदे मातरम् को राष्ट्रगान बनाने का विरोध किया था।
उन्होंने लिखा था, 'कुछ मुसलमानों का वंदे मातरम् पर आपत्ति जताने का सवाल ही नहीं उठता। यहां ज्यादातर लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमसे से कई लोग इस बात से सहमत हैं कि वंदे मातरम् राष्ट्रगान के रूप में बिल्कुल उपयुक्त नहीं है।'
उन्होंने वंदे मातरम् की कठिन भाषा, बैंड और म्यूजिक पर इसे बजाने में आने वाली मुश्किलें और विदेशियों को गीत समझ न आने को इसकी मुख्य वजह बताई थी।
दावा-2: नेहरू ने नेताजी से कहा कि वंदे मातरम् से मुसलमानों को चोट पहुंच सकती है
पीएम मोदी ने कहा- नेहरू ने 20 अक्टूबर 1937 को नेताजी को चिट्ठी लिखी कि वंदे मातरम् की आनंदमठ वाली पृष्ठभूमि से मुसलमानों को चोट पहुंच सकती है। इसका जो बैकग्राउंड है, उससे मुस्लिम भड़केंगे।
सच्चाई क्या है?
हां, जवाहरलाल नेहरू ने 20 अक्टूबर 1937 को सुभाष चंद्र बोस को ऐसी एक चिट्ठी लिखी थी। दरअसल, मुस्लिम लीग के वंदे मातरम् के विरोध को समझने के लिए नेहरू उन दिनों आनंदमठ का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ रहे थे।
किताब वंदे मातरम्: बायोग्राफी ऑफ ए सॉन्ग के मुताबिक, नेहरू ने चिट्ठी में लिखा, ‘वंदे मातरम् की पृष्ठभूमि मुसलमानों को परेशान करने वाली है। इसकी भाषा भी काफी कठिन है। बिना डिक्शनरी के मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूं।’
नेहरू ने इस चिट्ठी में वंदे मातरम् के मुद्दे पर टैगोर से सलाह लेने की भी बात की थी।
26 अक्टूबर 1937 को टैगोर ने सलाह देते हुए नेहरू को चिट्ठी लिखी, ‘वंदे मातरम् के पहले दो छंद से किसी को समस्या नहीं हो सकती क्योंकि इसमें हमारी मातृभूमि की सुंदरता का बखान है। यह छंद इतने प्रभावशाली हैं कि अन्य छंदों को छोड़ा जा सकता है।’
प्रियंका गांधी ने भी अपने भाषण में मोदी के इस आरोप का जवाब दिया और कहा कि नेहरू के चिट्ठी लिखने से तीन दिन पहले बोस ने उन्हें इस बारे में चिट्ठी लिखी थी।
दावा-3: महात्मा गांधी ने वंदे मातरम् की तारीफ की थी
पीएम मोदी ने कहा- दक्षिण अफ्रीका से छपने वाले इंडियन ओपिनियन में 2 दिसंबर 1905 को महात्मा गांधी ने लिखा, बंकिम चंद्र का रचा गीत वंदे मातरम् इतना लोकप्रिय हो गया है जैसे हमारा नेशनल एंथम बन गया है। इसकी भावनाएं महान है और यह अन्य राष्ट्रों के गीत से अत्यंत मधुर है। यह भारत को मां के रूप में देखता है और उसकी स्तुति करता है।
सच्चाई क्या है?
हां, महात्मा गांधी ने कई मौको पर वंदे मातरम् की तारीफ की है। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए उन्होंने वंदे मातरम् के लिए यह भी कहा था कि यह नेशनल एंथम जितना लोकप्रिय हो गया है। हालांकि बाद में उन्होंने यह भी माना कि इसका सांप्रदायिक इस्तेमाल हो रहा है।
सब्यसाची भट्टाचार्य अपनी किताब वंदे मातरम्: बायोग्राफी ऑफ ए सॉन्ग में लिखते हैं, 'गांधी ने वंदे मातरम् के नारे की तुलना अल्लाहू अकबर से की थी। इस नारे से हिंदुओं को वैसी ही आपत्ति थी, जैसी मुसलमानों को वंदे मातरम् से।'
कलकत्ता की एक प्रार्थना सभा में गांधी ने कहा था 'अल्लाहू अकबर के नारे ने भारत में आपत्तिजनक अर्थ धारण कर लिया है। इससे हिंदू डरे हुए रहते हैं क्योंकि कभी-कभी मुसलमान हिंदुओं पर हमला करने के लिए इसी नारे को दोहराते हैं।'
गांधी ने माना कि अल्लाहू अकबर और वंदे मातरम् यह दोनों नारे अपने मूल रूप में आपत्तिजनक नहीं हैं, लेकिन लोग इन्हें साम्प्रदायिक नजर से देखने लगे हैं।
जब वंदे मातरम् को लेकर विवाद बढ़ने लगा और मुसलमान इससे आपत्ति जताने लगे तो गांधी ने कहा, 'यह गीत धार्मिक पुकार नहीं, राजनीतिक पुकार है। मुसलमानों को चोट पहुंचाने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।'
अब विपक्ष के 3 दावे और उसकी सच्चाई
दावा-4: जितने साल से मोदी पीएम, उतने ही साल नेहरू जेल में रहे
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा- मोदी जी अब वह पीएम नहीं रहे, जो पहले थे। जहां तक नेहरू जी की बात है। जितने साल मोदी जी प्रधानमंत्री रहे, लगभग उतने साल के लिए नेहरू जेल में थे।
सच्चाई क्या है?
पं. जवाहर लाल नेहरू आजादी की लड़ाई के दौरान कुल 9 बार जेल गए। पहली बार 1922 में जेल गए और 1945 में आखिरी बार रिहा हुए। इसमें सबसे कम 13 दिन और सबसे ज्यादा 1042 दिन उन्होंने जेल में काटे।
पहली बार- 88 दिन (6 दिसंबर 1921 से 3 मार्च 1922 तक)
दूसरी बार- 266 दिन (11 मई 1922 से 31 जनवरी 1923 तक)
तीसरी बार- 13 दिन (22 सितंबर 1923 से 4 अक्टूबर 1923 तक)
चौथी बार- 181 दिन (14 अप्रैल 1930 से 11 अक्टूबर 1930 तक)
पांचवीं बार- 100 दिन (19 अक्टूबर 1930 से 26 जनवरी 1931 तक)
छठी बार- 614 दिन (26 दिसंबर 1931 से 30 अगस्त 1933 तक)
सातवीं बार- 568 दिन (12 फरवरी 1934 से 3 सितंबर 1935 तक)
आठवीं बार- 399 दिन (31 अक्टूबर 1940 से 3 दिसंबर 1941 तक)
नौवीं बार- 1042 दिन (9 अगस्त 1942 से 15 जून 1945 तक)
9 जेल यात्राओं में नेहरू कुल 3258 दिन जेल में रहे। वहीं नरेंद्र मोदी 26 मई 2014 से भारत के प्रधानमंत्री हैं। आज उन्हें इस पद पर रहते हुए कुल 4215 दिन हो गए हैं।
साफ जाहिर है कि नेहरू जितने दिन तक जेल में रहे, उससे 957 दिन ज्यादा मोदी प्रधानमंत्री पद पर हैं।
दावा-5: हिंदू महासभा ने वंदे मातरम् की आलोचना की थी
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा- मुस्लिम लीग में वंदे मातरम् का विद्रोह था। हिंदू महासभा ने भी वंदे मातरम् की आलोचना की थी। कांग्रेस हिंदू महासभा या मुस्लिम लीग से नहीं, वंदे मातरम् के मूल भाग से चलेगी।
सच्चाई क्या है?
नहीं, हिंदू महासभा ने वंदे मातरम् की आलोचना नहीं की थी। असल में महासभा ने इसके पूरे वर्जन का भारतीय राष्ट्रवाद और हिंदू गौरव के प्रतीक के तौर पर समर्थन और प्रचार किया था।
इतिहास सब्यसाची भट्टाचार्य के मुताबिक, 'जब मुस्लिमों ने वंदे मातरम् का विरोध किया तो हिंदू महासभा ने उसका विरोध किया। अक्टूबर 1937 में हिंदू महासभा ने पुणे और बॉम्बे में वंदे मातरम् दिवस मनाया। महासभा के नेताओं ने इस गीत को राष्ट्रगान के तौर पर अपनाने की मांग की।'
किताब 'हिंदू राष्ट्र दर्शन' के मुताबिक, '1937 में कर्णावती में हुए 19वें अधिवेशन में हिंदू महासभा के अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर ने कहा कि मुसलमान 'वंदे मातरम्' गीत को बर्दाश्त नहीं करेंगे। हिंदुओं में एकता चाहने वाले बेचारे लोग इसे छोटा करने के लिए जल्दबाजी कर रहे हैं, लेकिन मुसलमान इसके छोटे किए गए हिस्से को भी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
सावरकर ने आगे कहा कि मुस्लिम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे, जब तक कि अल्लामा इकबाल या मोहम्मद अली जिन्ना खुद कोई राष्ट्रीय गीत शुद्ध उर्दू में न लिखें, जिसमें ‘हिंदुस्तान’ को मुस्लिमों के प्रभुत्व वाली जमीन ‘पाकिस्तान’ के रूप में सराहा जाए।’
हिंदू महासभा ने कांग्रेस के 1937 के उस फैसले की आलोचना की थी, जिसमें गीत के सिर्फ पहले 2 छंदों को आधिकारिक इस्तेमाल के लिए अपनाया गया था।
दावा-6: RSS ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग नहीं लिया
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा- वंदे मातरम् का मूल उद्देश्य था- ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करना। आपने (बीजेपी) इस मंशा को कब पूरा किया। 1942 में जब ब्रिटिशर्स के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन हुआ, तब आपके राजनीतिक पूर्वज (RSS) कहां थे? उन्होंने खुद कहा था कि भारत छोड़ो आंदोलन में भाग नहीं लेना चाहिए।
सच्चाई क्या है?
बतौर संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल नहीं हुआ। सीनियर जर्नलिस्ट विजय त्रिवेदी अपनी किताब ‘संघम् शरणं गच्छामि’ में लिखते हैं, अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तब संघ प्रमुख माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने कहा कि संगठन के तौर पर संघ आंदोलन में शामिल नहीं होगा।
गोलवलकर खुद भी आंदोलन से दूर रहे। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि अगर संघ संगठन के रूप में आंदोलन में शामिल होता, तो अंग्रेजी हुकूमत इस पर बैन लगा सकती है।
हालांकि संघ की वेबसाइट के मुताबिक कई स्वयंसेवकों ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। कुछ स्वयंसेवकों की जान भी गई।
संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य भी अपनी किताब ‘वी एंड द वर्ल्ड अराउंड’ में लिखते हैं, ‘1942 के आंदोलन में भी संघ के स्वयंसेवकों ने भाग लिया था।’
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