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पितृ पक्ष: श्रद्धा के साथ श्राद्ध का है विशेष महत्व

बिलासपुर। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और अभिलषित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। सामान्य रूप में कम से कम वर्ष में दो बार श्राद्ध करना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त अमावस्या, व्यतीपात, संक्रान्ति आदि पर्व की तिथियों में भी श्राद्ध करने की विधि है।

पंडित वृंदा प्रसाद तिवारी का कहना है कि जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु होती है, उस तिथि पर वार्षिक श्राद्ध करना चाहिए। शास्त्रों में क्षय तिथि पर एकोद्दिष्ट श्राद्ध करने का विधान है।

एकोद्दिष्टका तात्पर्य है कि केवल मृत व्यक्ति के निमित्त एक पिंडका दान तथा कम से कम एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाए। पितृपक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि आए उस तिथि पर मुख्य रूप से पार्वण श्राद्ध करने का विधान है।

वे बताते हैं कि पिताकी मृत्यु तिथि पर इसे अवश्य करना चाहिये। पार्वण श्राद्ध में पिता, दादा, परदादा सपत्नीक अर्थात माता, दादी और परदादी का श्राद्ध होता है। वार्षिक तिथि पर तथा पितृपक्ष की तिथियों पर किया जाने वाला सांकल्पिक श्राद्ध का अपना विशेष महत्व है।

किसी कारणवश पिंडदानात्मक एकोद्दिष्ट तथा पार्वण श्राद्ध कोई न कर सके तो कम से कम संकल्प करके केवल ब्राह्मण भोजन करा देने से भी श्राद्ध हो जाता है। इसलिये कई जगह मृत व्यक्तियों की तिथियों पर केवल ब्राह्मण भोजन कराने की परंपरा है।

वार्षिक तिथि (एकोद्दिष्ट) अथवा पितृपक्ष में पार्वण श्राद्ध की तिथि आने पर पिंडदानात्मक श्राद्ध संभव न होने की स्थिति में अथवा पिंडदान निषिद्ध होने की स्थिति में सांकल्पिक श्राद्ध करने की व्यवस्था शास्त्रों में दी गई है।

मृत्यु तिथि व पितृपक्ष में श्राद्ध करना आवश्यक

वर्तमान समय में अधिकांश मनुष्य श्राद्ध को व्यर्थ समझकर उसे नहीं करते। जो लोग श्राद्ध करते हैं उनमें कुछ तो यथाविधि नियमानुसार श्रद्धा के साथ श्राद्ध करते हैं। किंतु अधिकांश लोग तो रस्म की दृष्टि से श्राद्ध करते हैं। वस्तुत: श्रद्धा भक्ति द्वारा शास्त्रोक्त विधि से किया हुआ श्राद्ध ही सर्वविध कल्याण प्रदान करता है।

अत: प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धापूर्वक शास्त्रोक्त समस्त श्रद्धा को यथासमय करते रहना चाहिये। जो लोग शास्त्रोक्त समस्त श्रद्धा को न कर सके उन्हें कम से कम क्षयाह वार्षिक तिथि पर तथा आश्विन मास के पितृपक्ष में तो अवश्य ही अपने मृत पितृगण की मरण तिथि के दिन श्राद्ध करना चाहिये। पितृपक्ष के साथ पितरों का विशेष संबंध रहता है।

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