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Diwali 2022: यहां 1100 वर्षों से विराजमान हैं धन की देवी मां लक्ष्मी, औरंगजेब ने इस मंदिर पर किया था आक्रमण

मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के पचमठा में 11 सौ साल पुराना मां लक्ष्मी का मंदिर स्थित है। यहां दीवाली के दिन विशेष अनुष्ठान होते हैं और 24 घंटे मंदिर के पट खुले रहते हैं। यह मंदिर तंत्र साधना का एक बेहद प्राचीन केंद्र रहा है, ऐसी मान्यता है कि मंदिर में स्थित मां लक्ष्मी की प्रतिमा दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं। मुगलकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की थी, जिसके साक्ष्य आज भी मंदिर में मौजूद हैं। हालांकि मां लक्ष्मी की मूर्ति पूरी तरह सुरक्षित है। सूर्य की पहली किरण मंदिर में मां लक्ष्मी के चरणों में पड़ती है। कहा जाता है कि इस मंदिर के नीचे खजाना गड़ा है, जिसकी रक्षा जहरीले सर्प करते हैं। शुक्रवार को मंदिर में पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है।

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ग्रह-नक्षत्रों पर आधारित है मंदिर

मां लक्ष्मी के मंदिर में पांच गुबंद बने हैं, जिसके चलते इस मंदिर को पचमठा मंदिर कहा जाता है। वर्गाकार मंदिर अधिष्ठान पर निर्मित है। इसके चारों दिशाओं में अर्धमंडप है। गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ बना है। दीवारों पर बने आलों में योगनियां बनी हैं। मंदिर का द्वार अत्यंत अलंकृत है। सबसे नीचे योगी और उसके दोनों ओर सिंह की आकृतियां हैं। द्वार के एक ओर अनुचर और भक्तों के साथ गंगा और दूसरी ओर यमुना का अंकन है, जो गजपीठ पर खड़ी हैं। उसके ऊपर चार द्वार शाखाओं से प्रथम और अंतिम पर पुष्पवल्लरी, बीच में दोनों शाखाओं पर विभिन्न मुद्राओं में भक्त और युगल की आकृतियां बनी हैं। इसे नीचे से भारवाहक साधे हुए हैं। ललाटबिम्ब पर महालक्ष्मी, मालाधारी गंधर्व, नवग्रह, गजव्याल आदि बने हैं। सबसे ऊपर हनुमान, सरस्वती, गणपति, योगी और युगल आदि की आकृतियां बनी हैं। इस मंदिर की यह विशिष्टता और बनावट जबलपुर के किसी और मंदिर में नहीं दिखाई देती है।

 

औरंगजेब की सेना ने किया था आक्रमण

इस प्राचीन मंदिर में औरंगजेब की सेना ने आक्रमण किया था। मंदिर की मुख्य प्रतिमा आक्रमण में सुरक्षित बच गई लेकिन आसपास बनी योगनियों की प्रतिमाओं को आक्रमणकारियों ने खंडित कर दिया। पचमठा मंदिर का निर्माण श्रीयंत्र के आधार पर किया गया था। मंदिर में हर दिशा में एक-एक दरवाजा बना है। तो वहीं गर्भगृह में गुम्बद में विष्णु चक्र बना है। मंदिर अष्टकमल पर विराजमान हैं। यहां 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 12 खंभे बने हैं। 9 ग्रह भी विराजमान हैं। दरवाजे में हाथी और योगनियां बनी हैं। 

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दिवाली पर होती है खास पूजा

दिवाली के दिन पचमठा मंदिर में एक अलग ही रौनक नजर आती है। इस दिन सुबह चार बजे मां लक्ष्मी का दूध, दही, इत्र, पंचगव्यों से महाभिषेक किया जाता है। सुबह सात बजे तक चलने वाले अभिषेक के बाद माता का विशेष श्रृंगार होता है। इसके बाद आरती की जाती है। रात एक बजे पंचमेवा से पूजन किया जाता है। मां लक्ष्मी के साथ ही भगवान कुबेर का पूजन होता है। हवन में मां लक्ष्मी को आहूतियां दी जाती है। इस दौरान विशेष पाठ किए जाते हैं। मंत्र, यंत्र सिद्ध किया जाता है। मंदिर को तांत्रित साधना का पवित्र स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में एक माला करने से ही एक हजार माला का जाप करने जितनी सिद्धि मिलती है। दिवाली के दिन मंदिर के पट 24 घंटे खुले रहते हैं। दूसरे दिन सुबह 5:30 बजे तक अनुष्ठान चलते हैं। हालांकि साल भर हर शुक्रवार को मां का विशेष पूजन भी किया जाता है।

रानी दुर्गावती के दीवान अधार सिंह ने कराया था कायाकल्प

मंदिर का कायाकल्प रानी दुर्गावती के दीवान अधार सिंह ने कराया था। इस मंदिर में बीते 22 वर्षों से अनवरत अखंड ज्योति प्रज्जवलित हो रही है। मंदिर में आने वाले भक्तों को यहां पहुंचकर असीम शांति का अनुभव होता है। कहा जाता है कि आज से कई दशक पहले यह मंदिर तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध था, जहां बड़ी संख्या में साधु आकर तंत्र साधना किया करते थे। मंदिर में आज भी भक्तों को देवी मां के तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन होते हैं। सुबह सफेद, दोपहर में पीला और शाम को प्रतिमा का रंग नीला हो जाता है। मंदिर में आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। साल भर शुक्रवार को यहां बड़ी संख्या में भक्त माता के दर्शन करने पहुंचते हैं। 

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ऐतिहासिक धरोहर है मंदिर

11 सौ साल पुराना यह मंदिर देश की ऐतिहासिक धरोहर है। इसका संरक्षण पुरात्तव विभाग करता है। मंदिर के 200 मीटर के दायरे में खुदाई करना प्रतिबंधित है। साथ ही मंदिर में किसी तरह का नया निर्माण करने की भी मनाही है। मंदिर की मरम्मत, नया निर्माण कराने से पहले आयुक्त पुरातत्व अभिलेखागार और संग्रहालय से पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है।

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