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Dhanteras 2022: कृष्णा मिश्रा गुरुजी ने बताया, आज ही के दिन भगवान धन्वंतरि औषधि का ज्ञान धरती पर लाए

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कृष्णा मिश्रा गुरुजी ने बताया, उनका उद्देश्य त्योहारों को लेकर लोगों को मानवीय संदेश देना है, जिससे सभी जाति धर्म के लोग आपस में जुड़े। कृष्णा गुरुजी एक सामाजिक कार्यकर्ता और योग शिक्षक हैं।
उन्होंने बताया, आज ही के दिन भगवान धन्वंतरि औषधि का ज्ञान धरती पर लाए थे। औषधि देखने के लिए हम तत्काल डॉक्टर के पास जाते हैं। इसलिए हर साल की तरह कृष्णा मिश्रा गुरुजी डॉक्टर दवाई मर्चेंट को धन्यवाद और कृतज्ञवाद देने निकले। साथ ही समाज की ओर से उनका स्वागत किए।

बता दें कि 90 साल के कृष्णा चंद सक्सेना, जिनका मध्यप्रदेश में पहला पैथोलॉजी लैब था। धनतेरस पर धन्वंतरि भगवान के साक्षात दर्शन किए। साथ ही इस आयु में भी स्वस्थ देख कृतज्ञ प्रणाम किया। डॉक्टर सतीश शुक्ला (82) लक्ष्मी मेमोरियल हॉस्पिटल, डॉक्टर डीके तनेजा (81), डॉक्टर शशिकांत शर्मा (78) को आपकी ओर से औषधि से आरोग्य रखने का कृतज्ञ धन्यवाद देकर आए। इस दौरान डॉक्टर नबी कुरैशी को भी कृतज्ञवाद दिया। साथ ही दवाई मर्चेंट जयदीप खुराना को भी कृतज्ञवाद दिया। साथ में भारती मंडलोई, मीता चंद्र और आकाश नागर मौजूद रहे।

कौन थे भगवान धन्वंतरि?
भगवान धन्वंतरि श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों में से 12वें अवतार माने गए हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्रमंथन के समय चौदह प्रमुख रत्न निकले थे, जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए, जिनके हाथ में अमृतलश था। चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी बूटी और चौथे में शंख विद्यमान है।

आयुर्वेद के जनक कहलाए भगवान धन्वंतरि
भगवान धन्वंतरी ने ही संसार के कल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी।  दुनियाभर की औषधियों पर भगवान धन्वंतरि ने अध्ययन किया, जिसके अच्छे-बुरे प्रभाव आयुर्वेद के मूल ग्रंथ धन्वंतरि संहिता में बताए गए हैं। यह ग्रंथ भगवान धन्वंतरि ने ही लिखा है। महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने इन्हीं से आयुर्वेदिक चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की और आयुर्वेद के ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की।

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कृष्णा मिश्रा गुरुजी ने बताया, उनका उद्देश्य त्योहारों को लेकर लोगों को मानवीय संदेश देना है, जिससे सभी जाति धर्म के लोग आपस में जुड़े। कृष्णा गुरुजी एक सामाजिक कार्यकर्ता और योग शिक्षक हैं।

उन्होंने बताया, आज ही के दिन भगवान धन्वंतरि औषधि का ज्ञान धरती पर लाए थे। औषधि देखने के लिए हम तत्काल डॉक्टर के पास जाते हैं। इसलिए हर साल की तरह कृष्णा मिश्रा गुरुजी डॉक्टर दवाई मर्चेंट को धन्यवाद और कृतज्ञवाद देने निकले। साथ ही समाज की ओर से उनका स्वागत किए।

बता दें कि 90 साल के कृष्णा चंद सक्सेना, जिनका मध्यप्रदेश में पहला पैथोलॉजी लैब था। धनतेरस पर धन्वंतरि भगवान के साक्षात दर्शन किए। साथ ही इस आयु में भी स्वस्थ देख कृतज्ञ प्रणाम किया। डॉक्टर सतीश शुक्ला (82) लक्ष्मी मेमोरियल हॉस्पिटल, डॉक्टर डीके तनेजा (81), डॉक्टर शशिकांत शर्मा (78) को आपकी ओर से औषधि से आरोग्य रखने का कृतज्ञ धन्यवाद देकर आए। इस दौरान डॉक्टर नबी कुरैशी को भी कृतज्ञवाद दिया। साथ ही दवाई मर्चेंट जयदीप खुराना को भी कृतज्ञवाद दिया। साथ में भारती मंडलोई, मीता चंद्र और आकाश नागर मौजूद रहे।

कौन थे भगवान धन्वंतरि?

भगवान धन्वंतरि श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों में से 12वें अवतार माने गए हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्रमंथन के समय चौदह प्रमुख रत्न निकले थे, जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए, जिनके हाथ में अमृतलश था। चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी बूटी और चौथे में शंख विद्यमान है।

आयुर्वेद के जनक कहलाए भगवान धन्वंतरि

भगवान धन्वंतरी ने ही संसार के कल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी।  दुनियाभर की औषधियों पर भगवान धन्वंतरि ने अध्ययन किया, जिसके अच्छे-बुरे प्रभाव आयुर्वेद के मूल ग्रंथ धन्वंतरि संहिता में बताए गए हैं। यह ग्रंथ भगवान धन्वंतरि ने ही लिखा है। महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने इन्हीं से आयुर्वेदिक चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की और आयुर्वेद के ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की।

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