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30 करोड़ में मिलेगा सुपेबेड़ा को पानी: 2 करोड़ की दीवार ढह गई, NIT ने डायाफ्राम वॉल को किया रिजक्ट, जानिए रडार में क्यों आया PHE ?

गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में एनआईटी की रिपोर्ट ने सुपेबेड़ा में साफ पानी के लिए PHE के निर्माण कार्य को कठघरे में खड़ा कर दिया है। जांच रिपोर्ट में कहा है कि सुपेबेड़ा में लागू सामूहिक जल प्रदाय योजना की सफलता के लिए सेनमूडा घाट में क्षतिग्रस्त डायाफ्राम दीवार को नए सिरे से निर्माण किया जाए। पहली बारिश में ही डायाफ्राम वॉल ढह गया है, लेकिन PHE विभाग अपने आप पर अड़ा हुआ है।

ऊपरी हिस्सा बीती बारिश में ढह गया

दरअसल, किडनी पीड़ित गांव सुपेबेडा समेत 9 गांव के लोगों को तेल नदी से पीने का पानी उपलब्ध कराने बनी 8.45 करोड़ के सुपेबेडा सामूहिक जल प्रदाय योजना का निर्माण शुरू हुआ। इससे पहले ही उसकी सफलता में सिंचाई विभाग द्वारा बनाए जा रहे डायफरमा वॉल रोड़ा साबित हो रहा है। पानी के बहाव को रोकने 2 करोड़ की लागत से दीवार बनाई गई थी, जिसका ऊपरी हिस्सा बीती बारिश में ढह गया।

सिंचाई विभाग की नींद हराम

सिंचाई विभाग नदी में बहाव कम होते ही टूटे हिस्से को दोबारा से बनाने की तैयारी में था।इसी बीच अब एनआईटी की रिपोर्ट ने सिंचाई विभाग का नींद हराम कर दी है। पीएचई विभाग के द्वारा बनाई जा रही जलप्रदाय योजना के लिए यह दीवार अहम है।

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सुपेबेड़ा और सेनमुड़ा घाट पहुंची इंजीनियर्स की टीम

दीवार के टूटने के बाद योजना की सफलता के लिए चिंतित पीएचई विभाग ने एनआईटी (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) से सारे पहलुओं को तकनीकी जांच करवा दी। बीते 4 जनवरी को पीएचई के ई ई पंकज जैन के साथ संस्थान के इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डॉ. इश्तियाक अहमद और डॉ. मणिकांत वर्मा के नेतृत्व में टीम जांच के लिए सुपेबेड़ा और सेनमुड़ा घाट पहुंची थी।

कलेक्टर और सिंचाई विभाग को सौंपी गई रिपोर्ट

टीम ने सप्ताह भर पहले ही अपनी रिपोर्ट में डायफ्राम वाला को नए सिरे से बनाने की सिफारिश की है। पंकज जैन ने इस रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए बताया कि एनआईटी की रिपोर्ट को अपने विभाग के आला अफसरों के अलावा जिला कलेक्टर और सिंचाई विभाग के ईई को भेजकर अवगत कराया गया है।

एनआईटी ने रिपोर्ट में क्या क्या कहा जानिए बिंदुवार

1. डायाफ्राम दीवार के निर्माण का उद्देश्य यानी नदी के ऊपरी हिस्से में सतह और उप सतह दोनों तरह के पानी की उपलब्धता है, डायाफ्राम दीवार की विफलता के कारण पूरा नहीं होता दिख रहा है।

2. डायाफ्राम दीवार के मध्य भाग में दीवार नदी के बहाव को नहीं झेल सकी। पूरे स्ट्रेक्चर में कई जगहों पर दरारें पड़ना जो खराब कारीगरी को दर्शाता है।

3. दीवार के किनारे किए गए पिचिंग कार्य में बोल्डर ढीले ढंग से रखे गए हैं ।

4. नदी का पानी का गुणवत्ता परीक्षण किया किया गया, जो मानक अनुमेय सीमा के भीतर पाया गया था।

5. रेत खनन के कारण तेल नदी तट के दोनों किनारा मिट्टी कटाव के कारण नदी का स्वरूप बदल गया है।

6. पीएचई और डब्ल्यूआरडी( सिंचाई) विभाग के बीच समन्वय की कमी देखी जा रही है.

एन आई टी ने दिए ये सुझाव

डायाफ्राम दीवार की संरचनात्मक विफलता को उचित कामकाज और संरचना की सुरक्षा के साथ तत्काल पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। डायाफ्राम दीवार के निर्माण का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है, क्योंकि इसका कुछ हिस्सा या तो पलट गया है या इसमें गहरी दरारें हैं जिससे पानी आसानी से बह सकता है।

जल जीवन मिशन के तहत सुपेबेड़ा जलप्रदाय योजना की सफलता के लिए यह दीवार अहम है,नदी तट पर जलप्रदाय योजना के लिए इंटेक वेल का निर्माण किया जा रहा है।बारहों माह सतत पानी सप्लाई व जल आपूर्ति के लिए मजबूत कार्यक्षमता वाला दीवाल जरूरी है।

ई ई बोले एक्सपर्ट से परीक्षण करा रहे, उचित निर्माण कराएंगे

सिंचाई विभाग के ई ई एस के बर्मन ने एन आई टी की रिपोर्ट से अनभिज्ञता जाहिर किया है। उन्होंने कहा की वाल के क्षतिग्रस्त हिस्से में अब भी पानी भरा हुआ है,एक्सपर्ट की विजीट कराई जा रही है।जरूरी हुआ तो नए सिरे से भी निर्माण कराएंगे।

 

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