CM Chhattisgarh Bhupesh Baghel met Governor Anusuiya Uike
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देश में 13 प्रदेशों के राज्यपाल और उपराज्यपाल बदल दिए गए हैं। इसमें छत्तीसगढ़ राज्य भी शामिल है। आरक्षण के मसले को लेकर बीते कई दिनों से प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार और राजभवन के बीच टकराव देखने को मिल रहा था। इस बीच अब प्रदेश के राज्यपाल को भी बदल दिया गया है। मौजूदा राज्यपाल अनुसुइया उइके की जगह आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे बिस्वा भूषण हरिचंदन को छत्तीसगढ़ का नया राज्यपाल बनाया गया है।
छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा अभी भी गरमाया हुआ है। इसी बीच प्रदेश में नए राज्यपाल की नियुक्ति हो गई है। प्रदेश के सीएम भूपेश बघेल नए राज्यपाल बिस्वा भूषण हरिचंदन से आरक्षण बिल को लेकर एक बार फिर से चर्चा कर सकते हैं। हालांकि हाई कोर्ट ने हाल ही में राज्यपाल से आरक्षण विधेयक पर साइन नहीं करने को लेकर जवाब मांगा है। ऐसे में देखना होगा कि अब सीएम भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल बिस्वा भूषण हरिचंदन के बीच किस तरह का सामंजस्य होता है। ताकि छत्तीसगढ़ में आरक्षण मुद्दे को शांत किया जा सके।
आरक्षण बिल के अलावा कई मुद्दों पर बघेल सरकार से टकराईं उइके
दरअसल, छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे को लेकर कांग्रेस सरकार और प्रदेश की राज्यपाल रही अनुसुइया उइके के बीच कई बार बयानबाजी हो चुकी है। छत्तीसगढ़ सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण विधेयक बिल पास कर दिया है। इस बिल को हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल अनुसुइया उइके के पास भेजा गया था। लेकिन अब तक इस बिल पर राज्यपाल अनुसुइया उइके ने साइन नहीं किए। इसके बाद से ही प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस नेता राज्यपाल पर हमला बोल चुके हैं। हाल ही में राज्यपाल अनुसुइया उइके ने आरक्षण मुद्दे पर एक बयान देते हुए कहा था कि मार्च तक रुकिएस जिस पर सीएम भूपेश बघेल ने पलटवार करते हुए कहा था कि मार्च में कोई मुहूर्त है क्या? ऐसे में अभी छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा ठंडा नहीं हुआ है। इसी बीच अब छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बदल दिया गया है।
उइके को सरकार से टकराने वालीं राज्यपाल के रूप में याद किया जाएगा। उन्होंने सामान्य प्रशासनिक कामकाज में भी राजभवन की भूमिका का विस्तार कर दिया। सुपेबेड़ा के किडनी रोग प्रभावितों से मिलने जाकर उन्होंने सरकार को असहज किया। इसके बाद कुलपतियों की नियुक्ति में सरकार की सिफारिशों को नजरअंदाज कर नियुक्ति कर सीधा टकराव मोल लिया। सरकार ने कुलपति नियुक्ति का अधिकार बदलने का विधेयक पारित कर भेजा तो उसे रोक लिया। विवादित कृषि कानूनों का प्रभाव कम करने वाले विधेयकों को भी रोक कर रखा। आरक्षण विवाद तो हद से आगे बढ़ गया। राज्यपाल ने यह विधेयक रोक लिया, तो सरकार राज्यपाल के खिलाफ उच्च न्यायालय पहुंच गई।
सीएम मिले पूर्व राज्यपाल से, प्रदेश अध्यक्ष ने की ये मांग
अनसुइया उइके को मणिपुर की राज्यपाल बनाए जाने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनसे मुलाकात की। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से उनके पास लंबित पड़े आरक्षण विधेयकों के भविष्य पर भी बात की है। इस मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हमारी वर्तमान राज्यपाल सुश्री अनसुइया उइके अपनी नयी संवैधानिक जिम्मेदारी अब बतौर मणिपुर राज्यपाल निभाएंगी। उनको शुभकामनाएं। व्यक्तिगत रूप से मैं उन्हें अपनी बड़ी बहन मानता हूं। वे बहुत भद्र महिला हैं, सीधी-सादी और सरल महिला हैं। जिस प्रकार से भाजपा के लोग राजभवन को राजनीति का अखाड़ा बना दिये थे वह बेहद दुर्भाग्यजनक है। मुझे इस बात की पीड़ा हमेशा रहेगी कि भाजपा ने उन्हें उनकी भावनाओं के अनुरूप काम नहीं करने दिया।’
इधर, कांग्रेस मांग उठा रही है कि राज्यपाल यहां से जाने से पहले आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर कर दें। पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने कहा, राज्यपाल से जाते-जाते निवेदन करना चाहता हूं, उनके कहे अनुसार मुख्यमंत्री ने आरक्षण विधेयक पास किया है उस पर हस्ताक्षर कर दें। नए राज्यपाल आएंगे तो उन्हें समझने में समय लगेगा, जिससे यहां के युवाओं को उनका हक समय पर नहीं मिल पाएगा। संविधान में बैठे व्यक्ति को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए, भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी को समान रूप से देखना चाहिए।
क्या है छत्तीसगढ़ में आरक्षण विवाद?
दो दिसंबर को आरक्षण विधेयक विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था। उसी दिन राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था। लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी राज्यपाल ने इस बिल पर हस्ताक्षर नहीं किए। आरक्षण बिल को लेकर राज्यपाल ने सरकार से 10 सवाल किए थे। सरकार का दावा है कि उन्होंने 10 सवाल के जवाब दे दिए हैं। बावजूद इसके अब तक राज्यपाल ने इस बिल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिसे लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर आरक्षण के मामले को लेकर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया है। साथ ही भाजपा के दबाव में राज्यपाल पर काम करने का भी आरोप कांग्रेस लगा चुकी है। वहीं भाजपा इसे राज्यपाल का विशेषाधिकार बता रही है।