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‘सारी सरकारें और नेता वैदिक के मित्र थे, फिर भी कभी पद नहीं लिया, हिन्दी के सेवक बने रहे’

कवि सरोज कुमार

कवि सरोज कुमार
– फोटो : अमर उजाला, इंदौर

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक के निधन की सूचना आज सुबह मिली। वे मेरे बचपन के दोस्त और प्रतिस्पर्धी थे। हर जगह डिबेट में हम एक दूसरे के सामने होते थे और वे बहुत ही अच्छे वक्ता थे। मेरा मानना है कि आज दुनिया ने एक शानदार वक्ता खो दिया जो अंतरराष्ट्रीय हो या स्थानीय हर मुद्दे पर तर्क के साथ सही बातों को प्रस्तुत करता था। प्रतिस्पर्धा अपनी जगह है लेकिन मैं व्यक्तिगत रूप से उनसे बहुत प्रेम करता था। उनके जैसे प्रतिभावान लोग बहुत कम हैं। मैं होलकर कॉलेज में पढ़ता था और वे क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ रहे थे। जब भी हम दोनों मंच पर एक दूसरे के सामने होते थे तो लोग खूब तालियां बजाते थे। उन्हें परिवार से ही समृद्ध हिन्दी मिली थी। हिन्दी के लिए उन्होंने जो योगदान दिया वो अविस्मरणीय है। उन्होंने न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में हिन्दी का डंका बजाया। हमारी भाषा पर हमें कितना गर्व होना चाहिए यह उन्होंने सिखाया। 

विद्यासागर महाराज जी ने उनकी किताबें बंटवाई

कुछ समय पहले हिन्दी पर लिखी उनकी किताब को विद्यासागर महाराज जी ने बंटवाया था। उन्होंने उसकी लाखों प्रतियां छपवाकर जैन समाज के साथ सभी समाजों में दिलवाई। यह दिखाता है कि उनके लिखे लेख और किताबें कितनी अमूल्य हैं। इस किताब में उन्होंने बताया कि हिन्दी क्यों सर्वश्रेष्ठ है और हमें हमारी भाषा से कितना प्रेम करना चाहिए। 

कोई भी राजनीतिक पद ले सकते थे वैदिक

सभी सरकारों में उनकी अच्छी पकड़ थी। पूर्व प्रधानमंत्री नरस्मिहा राव तो उनके अभिन्न मित्र थे। वैदिक चाहते तो मंत्री, राज्यपाल या इस तरह का कोई भी पद कभी भी ले सकते थे लेकिन वे आजीवन पत्रकार बने रहे। उन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दी की सेवा में समर्पित कर दिया। 

मैं आज 12 हजार कदम चला हूं

जब भी मुझसे मिलते तो बताते थे कि मैं आज दस हजार या 12 हजार कदम चला। 78 की उम्र में भी वे अपने स्वास्थ्य के लिए बेहद सजग थे। उन्होंने अपने जीवन में सौ से ज्यादा किताबें लिखी और हजारों लेख लिखे। आज सुबह ही मैंने उनका लेख पढ़ा। इंसान दुनिया छोडऩे से पहले भी काम करता रहे यह बहुत कम देखने को मिलता है। उन्होंने संयम से जीवन को जिया, जमीन से जुड़े रहे और हमेशा सामाजिक रूप से सक्रिय रहे। मेरी नजर में आज देश और समाज ने हिन्दी का एक बड़ा सेवक खो दिया। 

डॉ. सरोज कुमार

कवि-लेखक

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