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गरियाबंद में 54 करोड़ के नहर की चढ़ी बलि ! किसानों को 8 साल से नहीं मिला मुआवजा और सिंचाई का पानी, भड़के किसान नहर के भीतर कर रहे खेती

Pulses cultivation inside canal worth Rs 54 crore in Gariaband: गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के देवभोग में 54 करोड़ के नहर की बलि चढ़ा दी गई। सिंचाई उपसंभाग में 8 साल पहले 54 करोड़ रुपए की लागत से नहर बनाई गई थी, जिससे किसानों को आज तक पानी नहीं मिला और न ही मुआवजा मिला, जिससे किसान नहर के भीतर ही खेती करने लगे हैं।

आक्रोशित किसानों का कहना था कि उनके खेतों को नहर से सिंचाई का पानी नहीं मिला, जिससे धान की फसल बर्बाद हो गयी, जिससे किसान अब भरपाई करने के लिए नहर के अंदर जुताई कर मसूर और मूंग की फसल उगा रहे हैं। अभी नहरों में दलहनी पौधों की हरियाली दिख रही है।

822 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई के लिए 63 किमी लंबी नहर बनाई गई

जल सिंचाई योजना के अंतर्गत अमलीपदर तहसील के 5 ग्राम एवं देवभोग तहसील के 22 ग्रामों सहित 27 ग्रामों की कुल 3186 हेक्टेयर रकबा को खरीफ मौसम में सिंचित करने की परिकल्पना की गई थी। इसके लिए 29 किमी मुख्य नहर के अलावा 29 किमी लंबी 14 शाखा नहरों का जाल बिछाया गया। निर्माण पूरा होने के 8 वर्ष बाद भी मुख्य नहर में सिंचाई का पानी मात्र 5 से 10 किमी के दायरे तक ही सीमित रह गया है।

योजना विफल हो गई थी, लेकिन फिर भी 54 करोड़ रुपये का निवेश

1977 में अकाल के दौरान राहत कार्य के तहत तेल नदी के एनासर और कोडोबेड़ा घाट पर नहरों की खुदाई की गई थी। बाद में इन दोनों नदियों के बहते पानी को सिंचाई सुविधा में बदलने के लिए जल प्लावन योजना बनाई गई। इस योजना की नींव 1990 में कोदोबेड़ा घाट पर रखी गयी थी.

विशेषज्ञों ने योजना को विफल माना

2006 में भाजपा सरकार ने 9 करोड़ 73 लाख रुपये स्वीकृत किये थे। योजना में पानी कैसे और कहां से आयेगा, इस पर विशेषज्ञों की राय नहीं ली गयी. मुख्य ढांचा तैयार होते ही नहरों का जाल बिछाने के लिए 2014 में 44 करोड़ 48 लाख रुपये भी स्वीकृत हो गये.

असफल योजना से अधिकारियों ने 27 गांवों की 3186 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का कागजी नक्शा तैयार किया, जिसे सरकार ने आंख मूंद कर स्वीकार कर लिया. नतीजा यह हुआ कि 8 साल बाद भी योजना का पानी 10 किलोमीटर नहर से आगे नहीं पहुंच सका है.

जमीन अधिग्रहण का मुआवजा नहीं मिला

मोखागुड़ा के किसान पालेश्वर पोर्ती ने बताया कि उनकी जमीन 10 साल पहले अधिग्रहित की गयी थी. नहर बनी, लेकिन उन्हें मुआवजा नहीं मिला. इसलिए अपने खेत के जिस हिस्से में पानी नहीं है, वहां वे दलहन और तिलहन की खेती कर रहे हैं. पालेश्वर जैसे और भी किसान हैं, जो आज भी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं.

मंत्रालय से मंजूरी मिलते ही काम शुरू हो जाएगा

देवभोग सिंचाई विभाग के एसडीओ शेष नारायण सोनवानी ने बताया कि अंतिम छोर तक पानी पहुंचाने के लिए नया प्रस्ताव बनाया गया है. मुख्य नहर में शुरुआत से लेकर 1500 मीटर चेन तक नहर लाइनिंग का काम किया जाना है. मंजूरी के लिए फाइल मंत्रालय पहुंच गई है। सरकार बनते ही मंजूरी मिलने की उम्मीद है.

इसके अलावा एसडीओ सोनवानी ने बताया कि नहर में कुछ विवादित क्षेत्र हैं, जहां आपसी विवाद के कारण किसानों को मुआवजा नहीं दिया जा सका है. कायदे से जमीन अधिग्रहण के बाद उन्हें नहर में बुआई नहीं करनी चाहिए थी।

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