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आदिवासियों की हुंकार के आगे झुका वन विभाग: वन अधिकार नियमों में संशोधन स्थगित, जानिए किस विवादित आदेश पर फूटा था विरोध का ज्वालामुखी ?

गरियाबंद से गिरीश जगत की रिपोर्ट |

गरियाबंद की मिट्टी एक बार फिर गवाह बनी आदिवासी आवाज़ की… बारिश में भीगते, हाथों में बैनर और होठों पर नारे लिए जब सैकड़ों आदिवासी मजरकट्टा से कलेक्टोरेट तक पैदल चले, तो ये सिर्फ एक रैली नहीं थी — ये अपने अधिकारों को बचाने की चेतावनी थी।

2 जुलाई 2025 को आदिवासी समाज ने जिस कानून में बदलाव का विरोध किया था, उसी आदेश को अब स्थगित कर दिया गया है।
PCCF (प्रमुख मुख्य वन संरक्षक) व्ही. श्रीनिवास राव ने राज्य के सभी DFO (वन मंडल अधिकारियों) को निर्देश जारी करते हुए साफ किया कि वन अधिकार नियमों में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होगा।


कौन सा था वह विवादित आदेश?

विवाद की जड़ में था 15 मई 2025 को जारी हुआ वन मंत्रालय का आदेश, जिसमें वन अधिकार मान्यता और सामुदायिक वन संसाधनों के उपयोग से जुड़े फैसलों का अधिकार सीधे वन विभाग को देने की बात कही गई थी।

लेकिन…2006 के ऐतिहासिक वन अधिकार कानून के अनुसार, यह अधिकार ग्राम सभा के पास होना चाहिए था — आदिवासी विकास विभाग की निगरानी में।

नए आदेश ने न सिर्फ ग्राम सभा की संवैधानिक भूमिका को कमजोर किया, बल्कि वन विभाग को निर्णायक बना दिया, जिससे जमीनी अधिकारों को लेकर गहरा असंतोष पैदा हुआ।


गरियाबंद में क्यों फूटा विरोध का ज्वालामुखी?

गरियाबंद जिले में बदलाव के खिलाफ पहला बड़ा प्रतिरोध 2 जुलाई को देखने को मिला, जब:

  • आदिवासी विकास परिषद,
  • ग्राम सभा फेडरेशन,
  • और एकता परिषद

…जैसे संगठनों ने एकजुट होकर बरसते पानी में 5 किमी लंबी रैली निकाली।

नेतृत्व संभाला:

  • जिला पंचायत सदस्य लोकेश्वरी नेताम
  • और सामाजिक कार्यकर्ता संजय नेताम ने।

कलेक्टोरेट पहुंचकर मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया, जिसमें स्पष्ट मांग थी —
“वन अधिकार कानून से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं होगी।”


“हमें जंगल चाहिए, लेकिन अपने अधिकारों के साथ” – आदिवासी समाज का संदेश

आंदोलन के दौरान आदिवासी नेताओं ने सरकार से तीखे सवाल पूछे:

  • “कानून में बदलाव करने का अधिकार किसने दिया?”
  • “क्या अब ग्राम सभा की बात सुनी नहीं जाएगी?”
  • “वन विभाग हमारी जिंदगी के फैसले कैसे करेगा?”

नेताम दंपति ने चेताया: यदि एक सप्ताह में निर्णय वापस नहीं लिया गया तो सड़क पर उग्र आंदोलन होगा, जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।


PCCF ने झुकाई कलम, स्थगित किया आदेश

विरोध की आवाज़ें जब पूरे प्रदेश में गूंजने लगीं, तो वन विभाग को पीछे हटना पड़ा।
PCCF व्ही. श्रीनिवास राव ने सभी डीएफओ को स्पष्ट निर्देश दिया:

“वन अधिकार नियमों में कोई परिवर्तन नहीं होगा। पूर्ववत व्यवस्था ही लागू रहेगी।”

इस आदेश के साथ ही आदिवासी समाज की बड़ी जीत मानी जा रही है — जिसने दिखाया कि ग्राम सभा अब भी लोकतंत्र की असली नब्ज है।


क्यों महत्वपूर्ण है यह संघर्ष?

यह मामला सिर्फ एक विभागीय आदेश का नहीं, बल्कि आदिवासी स्वशासन और संसाधनों पर उनके अधिकार का है।

  • ग्राम सभा, संविधान की 73वीं अनुसूची के तहत मान्यता प्राप्त संस्था है।
  • 2006 का वन अधिकार कानून आदिवासियों और वनवासियों को न केवल भूमि, बल्कि सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार भी देता है।
  • वन विभाग द्वारा इस अधिकार को हथियाना, संवैधानिक संरचना पर सीधा हमला होता।

क्या अब भी खतरा टला है?

हालांकि आदेश अस्थायी रूप से स्थगित किया गया है, लेकिन संघर्ष खत्म नहीं हुआ।

“आदेश रद्द नहीं, स्थगित हुआ है — यानि सरकार की मंशा पर अब भी सवाल बना रहेगा।”

अतः नज़र रखनी होगी अगली नीति बैठकों, विधानसभा सत्र और राज्य सरकार के स्टैंड पर।

Q1: 15 मई 2025 को वन मंत्रालय ने कौन सा आदेश पारित किया था?

उत्तर: 15 मई 2025 को वन मंत्रालय ने एक आदेश पारित किया, जिसमें वन अधिकार मान्यता और सामुदायिक वन संसाधनों के उपयोग से जुड़े निर्णयों का अधिकार वन विभाग को सौंपने की बात कही गई थी। यह आदेश 2006 के वन अधिकार कानून से भिन्न था, जिसके अनुसार यह अधिकार ग्राम सभा और आदिवासी विकास विभाग की देखरेख में होता है।


Q2: इस आदेश का आदिवासी समाज ने विरोध क्यों किया?

उत्तर: आदिवासी समुदाय का कहना था कि यह आदेश ग्राम सभा के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। उनका विश्वास है कि वन विभाग के अधिकारी ग्रामीणों की ज़मीनी हकीकत नहीं समझ सकते, और यह संशोधन उनके अधिकारों और संसाधनों पर सीधा हमला है।


Q3: क्या अब यह विवादित आदेश रद्द हो गया है?

उत्तर: नहीं, यह आदेश रद्द नहीं, बल्कि स्थगित किया गया है। PCCF व्ही. श्रीनिवास राव ने सभी DFO को निर्देश दिया है कि वन अधिकार नियमों में कोई परिवर्तन लागू नहीं किया जाएगा। यानी वर्तमान व्यवस्था यथावत बनी रहेगी, लेकिन भविष्य में निर्णय की दिशा साफ नहीं है।


Q4: वन अधिकार कानून 2006 के तहत किसे अधिकार है?

उत्तर: वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुसार, ग्राम सभा को यह अधिकार है कि वह अपने क्षेत्र में वन अधिकार की मान्यता दे और सामुदायिक वन संसाधनों के प्रबंधन का फैसला ले। इसकी देखरेख आदिवासी विकास विभाग करता है।


Q5: क्या आदिवासी समाज ने कोई वैकल्पिक मांग भी रखी है?

उत्तर: हां। आदिवासी संगठनों ने मांग की है कि सरकार वन अधिकार कानून के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ न करे और कानून में किसी भी प्रकार का संशोधन करने से पहले जनजातीय समुदायों की राय अनिवार्य रूप से ली जाए। वे चाहते हैं कि ग्राम सभा को ही अंतिम निर्णय का अधिकार मिले।


Q6: क्या आने वाले दिनों में आंदोलन और तेज हो सकता है?

उत्तर: हां। आदिवासी नेताओं ने साफ कहा है कि अगर आदेश को पूरी तरह से रद्द नहीं किया गया, तो वे राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे। उन्होंने सरकार को एक सप्ताह की चेतावनी दी है।


Q7: क्या इस विषय पर राज्य सरकार ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है?

उत्तर: फिलहाल, राज्य सरकार की ओर से सीधे तौर पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि PCCF द्वारा आदेश स्थगित करने को सरकार की ओर से पहला सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।

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