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Makar Sankranti: शिवधाम कुंडेश्वर में उमड़ा जनसैलाब, श्रद्धालुओं ने जमडार नदी में लगाई आस्था की डुबकी

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मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित शिवधाम कुंडेश्वर में श्रद्धालुओं ने जमडार नदी में आस्था की डुबकी लगाई। इसके बाद स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कर पूजा-अर्चना की। आज रविवार को कुंडेश्वर में मकर संक्रांति पर्व पर सुबह से ही भक्तों का तांता लगा है। सुबह चार बजे से ही भक्तों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। नदी के घाटों पर प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं। टीकमगढ़-ललितपुर मार्ग के यातायात को डायवर्ट किया गया है।

जिला मुख्यालय से चार किमी दूर शिवधाम कुंडेश्वर आस्था का केंद्र है। मध्यप्रदेश ही नहीं उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। मंदिर के पुजारी पंडित जमुना तिवारी ने बताया कि शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात 3.11 बजे से मकर संक्रांति पर्व शुरू हुआ और सुबह 11.11 बजे तक स्नान करने का शुभ मुहूर्त था। मकर संक्रांति पर सुबह से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया। भक्तों ने जमडार नदी में आस्था की डुबकी लगाई। इसके बाद भगवान भोलेनाथ को जल और खिचड़ी चढ़ाकर पूजा-अर्चना की। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर परिसर में महिला और पुरुष भक्तों के लिए अलग-अलग कतार की व्यवस्था की गई। मेला ग्राउंड सहित मंदिर परिसर में पुलिस ने महिला और पुरुष जवान तैनात किए। व्यवस्था बनाए रखने के लिए मंदिर परिसर और मेला ग्राउंड में सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए। मंदिर परिसर में विशाल मेला लगाया गया है।

सरकारी रिकॉर्ड में भी दर्ज होगा कुंडेश्वर धाम

गौरतलब है कि शिवपुरी गांव को कुंडेश्वर धाम के नाम से ही जाना जाता है, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में गांव का नाम शिवपुरी दर्ज है। अब यह गांव सरकारी दस्तावेज में भी कुंडेश्वर धाम के नाम से जाना जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार ने नाम बदलने के लिए राजपत्र जारी किया है। इससे पहले 11 मई, 2021 को भारत सरकार से नाम बदलने की अनुमति मिली थी। इसके बाद 12 मई, 2022 को अनापत्ति के लिए जारी किया गया था। अंत में चार जनवरी, 2023 को राज्य शासन ने गांव का नाम बदलने के लिए राजपत्र जारी कर दिया गया।

कुंड के अंदर आराधना करती थी बाणासुर की बेटी

लोक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की बेटी ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुंड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कालभैरव के रूप में दर्शन दिए थे और उनकी प्रार्थना पर ही कालांतर में भगवान यहां पर प्रकट हुए।

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की एक महिला पहाड़ी पर रहती थी। पहाड़ी पर बनी ओखली में वह धान कूट रही थी। उसी समय ओखली से रक्त निकलना शुरू हुआ तो वह घबरा गई। ओखली को अपनी पीतल की परात से ढंक कर वह नीचे आई और लोगों को यह घटना बताई। लोगों ने इसकी सूचना तत्कालीन महाराजा राजा मदन वर्मन को दी। राजा ने अपने सिपाहियों के साथ आकर इस स्थल का निरीक्षण किया तो यहां पर शिवलिंग दिखाई दिया। इसके बाद राजा वर्मन ने यहां पर पूरे शिव परिवार की स्थापना कराई। जिसके बाद यह सिद्धक्षेत्र कुंडेश्वर धाम कहलाया।

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