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छत्तीसगढ़ के नए लोकायुक्त बने इंदर सिंह: राज्यपाल रामेन डेका ने इंदर सिंह को दिलाई शपथ, जानिए कहां के रहने वाले हैं

Former judge of Chhattisgarh High Court Inder Singh becomes new Lokayukta: हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज इंदर सिंह उबोवेजा को छत्तीसगढ़ का नया लोकायुक्त नियुक्त किया गया है। मंगलवार को रायपुर स्थित राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया। जहां राज्यपाल रमन डेका ने इंदर सिंह को छत्तीसगढ़ लोक आयोग के मुख्य लोकायुक्त पद की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण की प्रक्रिया अपर मुख्य सचिव रेणु पिल्लई ने पूरी की।

शपथ ग्रहण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, सांसद बृजमोहन अग्रवाल मौजूद रहे। सभी ने इंदर सिंह को बधाई दी। लोक आयोग भ्रष्टाचार के मामलों की जांच और सुनवाई करने वाली संवैधानिक संस्था है।

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वेबसाइट अपडेट नहीं

हालांकि अभी तक लोक आयोग की वेबसाइट पर पुराने लोकायुक्त जस्टिस टीपी शर्मा को ही लोकायुक्त बताया गया है। वेबसाइट अपडेट नहीं है। नए लोकायुक्त की नियुक्ति का आदेश पहले ही जारी हो चुका था। लेकिन लोक आयोग छत्तीसगढ़ की वेबसाइट के होम पेज पर पुराने लोकायुक्त की तस्वीर ही प्रदर्शित है।

सरायपाली के रहने वाले हैं उबोवेजा

जानकारी के अनुसार मूल रूप से सरायपाली बसना के रहने वाले जस्टिस उबोवेजा विधि विभाग में सचिव के पद पर भी काम कर चुके हैं। इसके अलावा वे औद्योगिक न्यायालय के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। अब उन्हें भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए बनाई गई संस्था के प्रमुख की जिम्मेदारी दी जा रही है।

समझें क्या है लोकायुक्त

भारत में लोकायुक्त एक भ्रष्टाचार विरोधी संस्था है, जो राज्य स्तर पर काम करती है। यह आम जनता की शिकायतों पर निष्पक्ष जांच करती है और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा करती है।

लोकायुक्त की शक्तियां

यह प्राधिकरण, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, सत्ता के दुरुपयोग, पदीय दुरूपयोग से जुड़ी शिकायतों की जांच करता है।
लोकायुक्त को शिकायत या विश्वसनीय सूचना मिलने पर जांच करने का अधिकार है।
लोकायुक्त को अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले मामलों की स्वप्रेरणा से भी जांच करने का अधिकार है।
किसी भी सरकारी अधिकारी या लोक सेवक को पूछताछ के लिए बुलाना, किसी भी रिकॉर्ड का निरीक्षण करना, तलाशी और बरामदगी करना।
अभियोजन शुरू करने के लिए मंजूरी देना।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत किसी मुकदमे की सुनवाई करते समय सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां हासिल करना।
न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत न्यायालय माना जाना और उच्च न्यायालय के समान न्यायिक शक्तियां और अधिकार हासिल करना।
लोकायुक्त की जांच के दायरे में राज्य के मंत्री, सचिव, विभागाध्यक्ष, लोकसेवक, जिला परिषदों के प्रमुख और उप प्रमुख, पंचायत समितियों के प्रधान और उप-प्रधान, नगर निगमों के महापौर और उप महापौर, स्थानीय प्राधिकरण, नगरपरिषदों, और नगरपालिकाएं आती हैं।

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