इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक से किसे तगड़ा झटका ? BJP को सबसे ज्यादा 6337 करोड़ का चंदा, जानिए कांग्रेस और अन्य को कितना मिला ?
Electoral Bonds Fund Scheme | Supreme Court Update DY Chandrachud: लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 6 साल पुरानी चुनावी बॉन्ड योजना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ये योजना असंवैधानिक है. बांड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. अब 13 मार्च को पता चलेगा कि किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया.
कोर्ट ने चुनाव आयोग से 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर चुनावी बॉन्ड योजना की जानकारी प्रकाशित करने को कहा है. इस दिन पता चल जाएगा कि किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया. ये फैसला 5 जजों ने सर्वसम्मति से दिया.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण इकाइयां हैं. मतदाताओं को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे वे वोट देने का सही विकल्प चुन सकें।
2018 से अब तक बीजेपी को चुनावी बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा मिला है. 6 साल में बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड से 6337 करोड़ रुपये की चुनावी फंडिंग मिली. कांग्रेस को 1108 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा मिला.
अब आगे क्या होगा ?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब पता चल जाएगा कि किस कंपनी से और किन लोगों से कितना पैसा मिला है. 2017 में इसे पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया था कि इससे राजनीतिक दलों की फंडिंग और चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता आएगी. काले धन पर लगाम लगेगी.
कोर्ट ने चुनाव आयोग से 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक
वेबसाइट पर चुनावी बॉन्ड योजना की जानकारी प्रकाशित करने को कहा है. इस दिन पता चल जाएगा कि किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया.
ये फैसला 5 जजों ने सर्वसम्मति से दिया
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण इकाइयां हैं. मतदाताओं को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे वे वोट देने का सही विकल्प चुन सकें।
2018 से अब तक बीजेपी को चुनावी बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा मिला है. 6 साल में बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड से 6337 करोड़ रुपये की चुनावी फंडिंग मिली. कांग्रेस को 1108 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा मिला.
सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को असंवैधानिक क्यों घोषित किया ?
चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित किया गया है क्योंकि यह लोगों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है और अनुचित प्रथाओं को जन्म दे सकती है।
चुनावी चंदा देने में दो पार्टियाँ शामिल होती हैं, एक राजनीतिक दल जो इसे प्राप्त करती है और एक जो इसे वित्तपोषित करती है। यह किसी राजनीतिक दल का समर्थन करना हो सकता है या योगदान के बदले में कुछ पाने की इच्छा हो सकती है।
काले धन पर नकेल कसने के लिए राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे का तर्क सही नहीं है। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों की राजनीतिक संबद्धता को गोपनीय रखना भी शामिल है।
चुनावी बांड जारी करने वाले बैंक एसबीआई के बारे में क्या?
एसबीआई को उन राजनीतिक दलों का विवरण प्रदान करना चाहिए जिन्होंने 2019 से चुनावी बांड के माध्यम से दान प्राप्त किया है।
एसबीआई को राजनीतिक दल द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बांड का विवरण देना चाहिए, नकदीकरण की तारीख का विवरण भी देना चाहिए। एसबीआई को 6 मार्च 2024 तक सारी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी.
चुनाव आयोग को क्या दिशा-निर्देश दिए गए?
चुनाव आयोग को एसबीआई से मिली जानकारी 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करनी होगी. ताकि जनता भी उनके बारे में जान सके.
फैसले में राजनीतिक दलों के बारे में क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सीधा असर राजनीतिक दलों पर ही पड़ेगा, लेकिन इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के लिए कोई निर्देश या बयान नहीं दिया है.
उन कंपनियों के बारे में क्या जो सबसे अधिक दान देती हैं?
किसी व्यक्ति से मिले दान की तुलना में किसी कंपनी से मिलने वाला धन राजनीतिक प्रक्रिया पर अधिक प्रभाव डाल सकता है। कंपनियों द्वारा प्रदान की जाने वाली फंडिंग पूरी तरह से व्यावसायिक है। चुनावी चंदे के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन एक मनमाना और असंवैधानिक कदम है।
क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
किस पार्टी को कितना पैसा मिला ?
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