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Diwali 2022: मध्यप्रदेश के चार जिलों में स्थित हैं मां लक्ष्मी की दिव्य प्रतिमाएं, दिवाली घर बैठे कीजिए दर्शन

देशभर में आज (24 अक्टूबर) दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। सुबह से ही भक्त मां लक्ष्मी के मंदिरों में पहुंच रहे हैं और उनसे सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के चार शहरों में मां लक्ष्मी की दिव्य प्रतिमाएं विराजमान हैं। जहां हर साल बड़ी संख्या में दर्शनार्थी दिवाली के मौके पर मां लक्ष्मी का आशीष लेने जाते हैं। आइए आपको उज्जैन में स्थित विश्व की इकलौती गज लक्ष्मी की प्रतिमा से लेकर जबलपुर में स्थित 11 सौ वर्ष पुरानी मां लक्ष्मी की दिव्य प्रतिमाओं समेत प्रदेश की चार लक्ष्मी प्रतिमाओं के दर्शन कराते हैं।

विश्व की इकलौती गज लक्ष्मी प्रतिमा

धार्मिक नगरी उज्जैन के सर्राफा के पेठ में करीब दो हजार साल पुराना मां गज लक्ष्मी का मंदिर स्थित है। मंदिर में स्थित देवी प्रतिमा को महाभारत कालीन माना जाता है। यहां मां लक्ष्मी अपने वाहन गज यानि की हाथी पर सवार हैं। ऐसा कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों की मां कुंती ने यहीं मां लक्ष्मी की पूजा की थी। गज लक्ष्मी की कृपा से ही पांडवों को अपना राज-पाट वापस मिला था। मंदिर में हर साल दिवाली के मौके पर बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने पहुंचते हैं। कई व्यापारी यहां पहला बही खाता लिखने भी आते हैं। मंदिर में श्रृद्धालुओं को बरकत के सिक्के बांटने की परंपरा है। इस साल दिवाली के मौके पर मां गजलक्ष्मी की 5 हजार लीटर दूध से अभिषेक किया जाएगा, जो कि बाद में भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित होगा।

 

1100 वर्ष पुराना लक्ष्मी मंदिर

जबलपुर शहर के पचमठा में 11 सौ साल पुराना मां लक्ष्मी का मंदिर स्थित है। यहां दीवाली के दिन विशेष अनुष्ठान होते हैं और 24 घंटे मंदिर के पट खुले रहते हैं। यह मंदिर तंत्र साधना का एक बेहद प्राचीन केंद्र रहा है, ऐसी मान्यता है कि मंदिर में स्थित मां लक्ष्मी की प्रतिमा दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं। मुगलकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की थी, जिसके साक्ष्य आज भी मंदिर में मौजूद हैं। हालांकि मां लक्ष्मी की मूर्ति पूरी तरह सुरक्षित है। सूर्य की पहली किरण मंदिर में मां लक्ष्मी के चरणों में पड़ती है। कहा जाता है कि इस मंदिर के नीचे खजाना गड़ा है, जिसकी रक्षा जहरीले सर्प करते हैं। शुक्रवार को मंदिर में पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है। दिवाली के दिन बड़ी संख्या में भक्त मंदिर पहुंचकर माता लक्ष्मी का आशीर्वाद लेते हैं। इस मंदिर की गिनती देश के सिद्ध तांत्रिक पीठ के रूप में भी होती है।

राजवाड़ा में स्थित होलकर कालीन मां लक्ष्मी की प्रतिमा

इंदौर के राजवाड़ा में होलकर कालीन महालक्ष्मी मंदिर स्थित है। कहा जाता है इस मंदिर की वजह से ही होलकर राजाओं को कभी अपने राज्य में धन की कमी नहीं हुई। मंदिर में दिवाली के अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त यहां देवी महालक्ष्मी के दर्शन और उपासना करने पहुंचते हैं। मंदिर आने वाले भक्तों में इंदौर के साथ ही आसपास के जिलों से आने वाले लोग भी शामिल रहते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार होलकर कालीन मंदिर की स्थापना 1833 में इंदौर के राजा हरि राव होलकर ने की थी। उस दौर में यहां मंदिर नहीं था, प्रतिमा की स्थापना एक पुराने मकान में की गई थी। तब राजवंश के लोग यहां अक्सर दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर इंदौर के लोगों की आस्था का केंद्र है। दिवाली पर मां लक्ष्मी को पीले चावल देकर घर आमंत्रित करने की भी परंपरा है।

 

रतलाम का बड़ा महालक्ष्मी मंदिर

रतलाम का बड़ा महालक्ष्मी मंदिर अपनी आकर्षक सजावट के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। यह देश का इकलौता मंदिर है जहां मां लक्ष्मी और मंदिर परिसर को फूलों की जगह नोटों और गहनों से सजाया जाता है। हालांकि इस साल गहनों की जगह मंदिर को रत्नों और नोटो से सजाया गया है। हर साल भक्त इस मंदिर में अपने गहने और नोट जमा कराते हैं, भक्तों के लाए गए गहने और नोटों से ही मंदिर और मां लक्ष्मी को सजाया जाता है। मंदिर के पट साल में केवल पांच दिनों के लिए खुलते हैं। धनतेरस के दिन पट खुलते हैं और भाईदूज के दिन बंद हो जाते हैं। मंदिर की अद्भुत सजावट देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। 

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