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मदर्स डे पर मां की ममता के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी: सुपेबेड़ा में 80 महिलाओं की किडनी बीमारी से उजड़े सुहाग, सरकार से बस उम्मीदें…

Story of Supebeda of Gariaband on Mother’s Day:आज मदर्स डे पर कहानी गरियाबंद के सुपेबेड़ा गांव की। छत्तीसगढ़ का किडनी प्रभावित गांव, जहां 80 से अधिक महिलाओं के सुहाग उजड़ गए। आर्थिक तंगी के बावजूद महिलाएं अपनी मां होने का फर्ज निभा रही हैं। 6 महिलाओं को सरकारी सहायता के नाम पर 6 साल पहले सिलाई मशीन दिया गया। कुछ कलेक्टर दर पर और ज्यादातर माताएं मजदूरी कर बच्चों का गुजारा कर रही हैं।

किडनी रोगी सुपेबेड़ा गांव में 2005 से अब तक 130 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। महिलाओं का सुहाग के साथ-साथ सब कुछ छीन गया। माताओं ने न केवल अपने आप को संभाला, बल्कि अपने बच्चोंं की परवरिश भी कर रही हैं।

हर मां अपने बच्चे के लिए भगवान का दूसरा रूप होती है। मां शब्द में ही दुनिया की हर खुशी छुपी होती है। लेकिन एक मां हमेशा अपने बच्चों और परिवार के लिए सारी खुशियां समर्पित कर समस्याओं से लड़ने का साहस रखती है।

आज विश्व मातृ दिवस पर इन्हीं महिलाओं की संघर्ष की कहानी बताने जा रहे हैं

केस-1

सिलाई मशीन बना सहारा, अपना पेट काट बच्चों की कर रही परवरिश

प्रेमशिला के पति प्रीतम आडील की किडनी की बीमारी के चलते 6 साल पहले हो गई थी। साल भर के अंदर सास-ससुर की भी मौत हो गई। घर में पुरुष सदस्य के रूप देवर जगदीश भर था, जो मजदूरी करने आंध्र गया और अब तक न लौटे, न ही उनकी कोई खबर आई। ननंद समेत अपने तीन बच्चों की परवरिश में प्रेमशीला ही कर रही है।

2017 में सरकार ने आजीविका मिशन के तहत सिलाई मशीन दिया था। लेकिन अब सिले हुए से ज्यादा क्रेज रेडिमेंट कपड़ों का है। फटे पुराने पकड़े सिलाई कर किराने का इंतजाम हो जाता है। चावल कोटे से मिलता है। बाकी खर्चों के लिए मजदूरी कर रही है।

आधे अधूरे प्लास्टर हुए पंचायत से मिले पीएम आवास में केवल जरूरी सामान है। प्रेमशीला कहती है कि, मुखिया के जाने के बाद उनका परिवार केवल जीने के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन बच्चों के भविष्य में आंच न आए उसके लिए आगे दिन रात मेहनत कर रही।

केस-2

शिक्षक पति की मौत, टूटे परिवार को लक्ष्मी ने संभाला

लक्ष्मी सोनवानी के पूरे परिवार पर 2012 में किडनी रोग की नजर लग गई। शिक्षक पति क्षितिराम सोनवानी 2 साल जिंदगी और मौत से जूझते रहे, फिर 2014 में मौत हो गई। पति के जाने के बाद 2 बेटी और एक बेटे की परवरिश के साथ होम लोन का बोझ भी लक्ष्मी पर आ गया। पति शिक्षाकर्मी थे, नियम पेंच में फंसा तो तब अनुकम्पा भी नहीं मिली।

घर बनाने के लिए गांव में जमीन थी। जिसे बेचकर लोन पटाया। पति के जाने के बाद खुद भी मरने की सोंचती थी, लेकिन 3 बच्चों के परवरिश के खातिर लक्ष्मी ने मेहनत मजदूरी कर गुजारा कर रही थी।

2018 में सुपेबेड़ा आई तत्कालीन राज्यपाल अंसुइया उइके ने गुहार सुनी, तो कलेक्टर दर पर उसे जनपद में नौकरी मिल गई। जहां 10 हजार सैलरी मिलती है, लेकिन बच्चों के भविष्य की खातिर किराए के मकान में रहकर भी बच्चों के खुशी के साथ समझौता नहीं किया।

केस-3

जेवरात-जमीन बेचकर इलाज में लिए कर्ज पटाया

वैदेही की कहानी भी लक्ष्मी से मिलती-जुलती है। 2017 में शिक्षाकर्मी पति प्रदीप क्षेत्रपाल की मौत हो गई। इलाज के लिए बैंक से उठाए कर्ज पटाने जेवर-जमीन सब बेचना पड़ा। आर्थिक तंगी बच्चों के परवरिश में आंच ना आए, इसलिए उनकी हर खुशी को पूरी करती है।

वैदेही का कहना है कि, राज्यपाल के निर्देश पर मुझे 10 हजार मासिक वेतन पर काम मिला है। इतने में गुजारा मुश्किल है, लेकिन एक टाइम का उपवास रखकर छोटी बचत की शुरुआत बच्चों के भविष्य के लिए करने की बात कही।

केस-4

स्कूल में स्वीपर, बच्चों को अफसर बनाने का सपना

यशोदा की 2013 में 17 साल की उम्र शादी हो गई थी। 4 साल पूरे होने से पहले पति वीर सिंह की किडनी की बिमारी से मौत हो गई। उसके पीछे 1 बेटा और 2 बेटियों की जिम्मेदारी छोड़ गए। पति गांव के स्कूल में स्वीपर थे, इसलिए उनकी मौत के बाद गांव वालों ने यह नौकरी यशोदा को दी।

2500 रुपए की इस नौकरी में खाने का खर्च तक नहीं निकल पाता, इसलिए समय-समय पर मजदूरी और सिलाई मशीन के सहारे गुजारा कर रही है। यशोदा कहती है कि उसके किस्मत में जो लिखा था, सो हुआ। लेकिन बच्चों की किस्मत संवारने वो दिन रात मेहनत करेगी। सपना बच्चों को अफसर बनाने का है।

पीड़ितों की सुध नहीं ले रही सरकार, परिवार भगवान भरोसे

सरकार ने सुपेबेड़ा गांव में अब तक बीमार लोगों की सुध नहीं ली। पीड़ितों की मौत के बाद आश्रित परिवार की सुध लेने की कोई कार्ययोजना नहीं बनी है। जो बनी वो भी फाइलों तक सीमित रही। आज सुपेबेड़ा में टेबे बाई, जानकी बाई, सत्यभामा, बैदो बाई, हेम बाई, चैती बाई पुरैना, अनुराधा सोनवानी, बिजली बाई, जमुना बाई, मालती बाई जैसे 80 से ज्यादा नाम है।

जिनके पति की मौत के बाद बच्चों की परवरिश वो कर रही है। इनमें से ज्यादातर मजदूर हैं। पति की मौत के बाद जवाबदारी बढ़ गई है, लेकिन इन्हें काम का अवसर नहीं मिल रहा। शासन-प्रशासन ने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया है।

महिलाओं को आजीविका मिशन से जोड़ा गया- सीईओ

जिला पंचायत गरियाबंद सीईओ रीता यादव का कहना है कि, सुपेबेड़ा में 28 समूह के माध्यम से 300 महिलाओं को आजीविका मिशन से जोड़ा गया है। सिलाई मशीन, दोना पत्तल मशीन, मशरूम उत्पादन जैसे काम के जरिए आजीविका मिशन से जोड़ा गया है। इन्हें वित्तीय मदद भी दी गई है।

महीने के दूसरे संडे को ही क्यों मनाया जाता है मदर्स डे?

भारत समेत कई देशों में हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। इस साल भारत में 12 मई को मदर्स डे मनाया जा रहा है। मदर्स डे की शुरुआत एक अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस ने की थी। एना जार्विस को अपनी मां से बेहद लगाव था। जार्विस अपनी मां के साथ ही रहती थी और उन्होंने कभी शादी भी नहीं की थी।

मां के गुजर जाने के बाद एना ने मां के प्रति प्यार जताने के लिए मदर्स डे की शुरुआत की थी। इसके लिए एना ने इस तरह की तारीख चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आस-पास ही पड़े। उसी समय से हर साल मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है।

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