पुष्पराजगढ़। अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ में ओवरलोड हाईवा सड़कों की दुर्दशा करने में आतुर हैं. सड़कों का बुराहाल कर दिया है, लेकिन अधिकारियों और प्रशासन के आखों पर पट्टी बंधी हुई है. ट्रक संचालक धड़ल्ले से नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, लेकिन मजाल है कि जिम्मेदार अफसर औऱ अधिकारी इन पर कार्रवाई करें. हाल ही में कलेक्टर आशीष वशिष्ठ ने परिवहन विभाग पर नाराजगी व्यक्त की थी, लेकिन जिम्मेदारों ने उन्हें भी ठेंगा दिखा दिया. आज तक किसी पर कार्रवाई नहीं की. बेबस ग्रामीण और स्थानीय लोग अधिकारियों का काम करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे वाहनों को चलाने की अनुमति है, लेकिन बड़े वाहन अंधाधुंध चल रहे हैं. जिससे सड़कें जर्जर हो रही हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि ये गाडियां क्रेशर से आ रही हैं. अनूपपुर से रेत लेकर आ रही हैं, लेकिन जिम्मेदार चढ़ावे के कारण कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में 15-20 टन लोडेड गाड़ियों को अनुमति
ग्रामीण क्षेत्रों में एक तो विकास नहीं होता, अगर किसी कदर सड़क बन भी गई, तो उस इलाके में ओवर लोडेड गाड़ियां सड़कों की दुर्दशा कर देती हैं. क्रेशरों से ओवरलोड होकर ट्रक धड़ल्ले से एमपी से छत्तीसगढ़ जाते हैं औऱ अनूपपुर से पुष्पराजगढ़ आते हैं, जिनको जिम्मेदार सांठगांठ कर धड़ल्ले से दौड़ने देते हैं. ये ट्रक छोटी-मोटी संख्या में नहीं हैं, रोजाना 100 से 200 गाड़ियां दौड़ती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से करीब 35-40 टन गिट्टी लोडकर दूसरे राज्यों में जाती हैं.
डंपरों को ‘कमीशन’ की हरी झंडी ?
सूत्र बताते हैं कि ट्रक संचालकों और क्रेशर मालिकों को कमीशन तले हरी झंडी मिल जाती है. ग्रामीण इलाकों में अगर कोई गाड़ियों को रोक लिया तो अफसर खुद क्रेशर मालिकों की गाड़ियों को छुड़ाने जाते हैं. इससे भी हैरानी की बात तो ये है कि माफिया की इतनी तगड़ी सेटिंग होती है कि उनकी गाड़ियां भी जब्त नहीं की जाती है. पुष्पराजगढ़ में चढ़ावे तले नियम कानून को सिस्टम के रखवालों ने टायर तले दबाकर रख दिया है, जिनपर कोई कार्रवाई नहीं होती है.
पुष्पराजगढ़ से कोई अधिकारी क्यों जाना नहीं चाहता, क्योंकि…?
दरअसल, एमपी का अनूपपुर एक ऐसा जिला है, जहां पत्थरों की भरमार है. यही वजह है कि खदानें भी अधिक है. जब खदानें ज्यादा होंगी, तो गाड़ियां भी सड़कों पर ज्यादा दौड़ेंगी. जिससे सड़कों पर भी भार पड़ेगा. बड़े और ओवरलोड वाहनों की वजह से सड़क भी उखड़ेंगी. जिससे परेशानी आम जनता को होगी, लेकिन इससे खनिज विभाग और परिवहन विभाग को क्या फर्क पड़ता है ? क्योंकि उनका जेब तो गर्म हो ही रहा है, जनता की परेशानी से क्या लेना देना ? इसीलिए तो कहते हैं कि एक बार पुष्पराजगढ़ में जिस अधिकारी की पोस्टिंग हो गई, वो दोबारा जाने का नाम नहीं लेता है. यहां मलाईदार कुर्सी के साथ मान और सम्मान भी भोली भाली जनता से मिलता है. तब भला यहां से कौन अधिकारी जाना चाहेगा.
कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति
खैर अब मुद्दे की बात पर आते है. पुष्पराजगढ़ के ग्रामीण इलाकों में जगह जगह पर क्रेशर चल रहे हैं, जिसके लिए पत्थर खदान भी खोदे गए है. जहां से रोजाना भारी मात्रा में बोल्डर पत्थर निकाले जा रहे हैं. जिन्हें क्रेशर तक ले जाने ट्रैक्टर और डंपर का इस्तेमाल किया जाता है. क्षमता से अधिक मटेरियल भरकर डंपर, ट्रक और ट्रैक्टर निकलते हैं, बावजूद इसके कार्रवाई नहीं होती है. कभी कभार ही एक-दो ट्रेक्टर, डंपरों को पकड़कर थाने में खड़ा कर दिया जाता है.
खनिज विभाग के नियमों को माफिया दिखा रहा ठेंगा
तमाम नियमों को ताक पर रखकर क्रेशर और पत्थर खदानों का संचालन किया जा रहा है, लेकिन खनिज विभाग कोई कार्रवाई नहीं करता है. कार्रवाई तो दूर अधिकारी झांकने भी नहीं पहुंचते हैं. कहीं न कहीं अधिकारियों से सांठगांठ और कमीशनखोरी के चलते कार्रवाई नहीं होती. ऐसा ग्रामीणों का आरोप है. नियम कायदे गरीब और छोटे तबके के लोगों के लिए रहता है, क्योंकि बड़े लोग या कहें की माफिया जैसों के किए तो कोई नियम ही नहीं होता है. वो जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं. या फिर नियमों को खरीद लिया जाता है.
जांच के नाम पर लिफाफे का इनाम ?
राजेंद्रग्राम के पठार क्षेत्र के कोने-कोने में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है, लेकिन खनन माफिया के खिलाफ खनन विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है. इन खनन माफियाओं और स्टोन क्रेशर संचालकों के पास कई अवैध खदानें हैं, जो दिखावटी लीज से हटकर अवैध खनन के लिए संचालित हैं. बताया जा रहा है कि जांच के नाम पर अधिकारी लिफाफा लेकर जाते हैं.
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