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किस्मत या सिस्टम ने मारा ? भूंजिया जनजाति की दुर्दशा, 22 साल से पैरों पर बंधी ‘बीमारी’ की बेड़ियां, टूटी झोपड़ी में बीत रही जिंदगी, सरकार कौन सुनेगा बेबस की गुहार ?

गिरीश जगत, गरियाबंद। हाय रे बदनसीबी औऱ हाय रे सिस्टम. सरकार इतनी योजनाएं चलाती है, लेकिन इस बेबस को कोई योजना देख नहीं पा रही है. छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले भूंजिया जनजाति की दुर्दशा का दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है. कोपेकसा पंचायत के आश्रित ग्राम सुखरी डबरी में रहने वाली बेवा अगिन बाई को अपने 30 वर्षीय बेटे महेश को पिछले 22 साल से रस्सी में बांध कर रखना पड़ रहा है.

बेटे को एक कच्चे मकान में उसकी मां रस्सी में बांध कर नजर बंद कर दी है. चार बेटों में सबसे छोटे बेटा महेश 5 साल की उम्र में गम्भीर बीमारी से ग्रसित हो गया. समय पर इलाज नही मिला तो बढ़ते उम्र के साथ मानसिक संतुलन भी बिगड़ने लगा. बार बार घर से लापता और चूल्हे की आग में हांथ पांव झूलसने लगा.

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तीन बेटे कमाने दूसरे राज्य पलायन कर गए. 3 बेटियो की भी शादी हो गई. बूढ़ी मां और बीमार बेटे के गुजारा वनोपज संग्रहण से होने वाला आय ही एक मात्र जरिया रह गया. दो वक्त के खाने का जुगाड़ कड़ी संघर्ष के बाद होने लगा. ऐसे में गंभीर मनो रोग से जूझ रहे बेटे का इलाज करा पाना बूढ़े कंधे की बस में नहीं है.

अफसरों को पता है, अनजान बने हुए हैं

जनजाति परिवार की इस समस्या से जिम्मेदार भी इत्तेफाक रखते थे. इलाज के लिए तीन साल पहले 5 हजार की सहयाता राशि देकर उसे भूल गए. भूंजिया जनजाति विकास अभिकरण के अध्यक्ष ग्वाल सिंह सोरी ने बताया कि कुछ साल पहले स्वास्थ्य विभाग से टीम आई थी. देख कर लौट गए.

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विभाग की ओर से 5 हजार की सहायता राशि भी दिया गया था. आदिवासी विकास विभाग के पूर्व उपसंचालक बी एन सुखदेवे को अवगत कराया था. वे जल्द ही इसकी स्थाई मदद की ठोस पहल करने वाले थे. उनके निलंबन के बाद मामला ठंडा हो गया.

ठेका और सप्लाई पर केंद्रित रह गया बजट

गरियाबंद में जनजाति के आलावा आदिवासियों के उत्थान के लिए आदिवासी विकास विभाग तैनात है. जनजाति विकास के लिए राज्य के अलावा केंद्र से भी लाखों के फंड हर साल मिलते हैं.

हैरानी की बात है की इतने सालों में विभाग इस जरूरत मंद भूंजिया परिवार के लिए कोई कारगर पहल नहीं कर सकी. पीड़ित का आधार कार्ड तक नहीं बन पाया है. इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि परिवार के पीड़ा को लेकर प्रशासन कितना गंभीर है.

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आदिवासी विकास विभाग की उपलब्धि पर नजर डाले तो उसने मिलने वाले बजट का 90 फीसदी राशि खर्च बिल्डिग मरम्मत के अलावा समाना सप्लाई में खर्च दिखा देती है. सेनेटरी पैड व जनजाति के कौशल विकास प्रशिक्षण के नाम पर खर्च केवल कागजों में बताया जाता है.

आदिवासी विकास विभाग के प्रभारी सहायक आयुक्त के आशीष अनुपम टोप्पो ने कहा कि मामले की जानकारी नहीं है. विस्तृत जानकारी लेकर नियमानुसार सहयोग किया जाएगा.

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