इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई 21 नवंबर तक टाल दिया। दरअसल, पूरा मामला आईएस आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा को लेकर है। कहा जाता है कि ये दोनों आधिकारी सरकार के खास माने जाते हैं। इन्ही अफसरों के कारण भूपेश बघेल सरकार और ED के बीच विवाद चल रहा है। 20 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार ने ईडी के इस दावे को गलत बताया था कि जिस जज ने आरोपितों को जमानत दी वो जमानत का आदेश पारित करने के पहले दो बार राज्य के मुख्यमंत्री से मिले थे। कपिल सिब्बल ने कहा था कि जमानत देने वाले जज कभी भी मुख्यमंत्री से नहीं मिले। उन्होंने कहा कि ईडी के दावे झूठे हैं। 18 अक्टूबर को ईडी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि जिस जज ने आरोपितों को जमानत दी वो जमानत का आदेश पारित करने के पहले दो बार राज्य के मुख्यमंत्री से मिले थे। ईडी ने कहा था कि इस मामले में ट्रायल स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हुए हैं।
मामला किया गया था सूचीबद्ध
पिछले हफ्ते यह मामला न्यायमूर्ति एमआर शाह की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। छत्तीसगढ़ सरकार और अन्य पक्षों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने कहा कि न्यायमूर्ति शाह की अध्यक्षता वाली दो-जजों की पीठ द्वारा इस मामले की सुनवाई करना अनुचित था क्योंकि इस मामले की तीन-जजों की पीठ ने तीन बार सुनवाई की थी। जिसमें तत्कालीन सीजेआई यूयू ललित, अजय रस्तोगी और एसआर भट थे।
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कोर्ट में सिब्बल ने कहा कि सुनवाई को स्थगित कर दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष इसका उल्लेख करने की अनुमति मिल सके। इसे एक उपयुक्त पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जा सके। ईडी के तरफ से एसजी तुषार मेहता ने यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि किसी को भी किसी बेंच को चुनने या आपत्ति करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। सिब्बल और रोहतगी ने शुक्रवार को सीजेआई चंद्रचूड़ के सामने इस मामले का जिक्र किया और कहा कि न्यायमूर्ति ललित के रिटायर होने के बाद भी पिछली पीठ के दो जज अभी भी उपलब्ध हैं। इस अदालत की यह परंपरा है कि आंशिक सुनवाई वाले मामलों को उन न्यायाधीशों के पास भेजा जाता है जिन्होंने पहले मामले की सुनवाई की थी।
दिलचस्प बात यह है कि झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ जनहित याचिका से संबंधित एक मामला पहले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिसने झारखंड सरकार के लिए सिब्बल की सुनवाई के बाद मामले को वापस एचसी को भेज दिया था ताकि पहले जनहित याचिका की स्थिरता का फैसला किया जा सके।
आरोपितों के संपर्क में थी एसआईटी की जांच
ईडी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस मामले की जांच के लिए जो एसआईटी गठित की गई थी वो मुख्य आरोपित के संपर्क में थी। यहां तक कि एसआईटी की ड्राफ्ट रिपोर्ट की पड़ताल भी मुख्य आरोपित ने की थी। इसके पहले की सुनवाई के दौरान ईडी ने कहा था कि आरोपित आईएएस अफसर आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा इतने प्रभावशाली हैं कि उन्हें बचाने में बड़े पद पर बैठे कई लोग लगे हैं।
सीएम बचाना चाहते हैं
ईडी के सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नान घोटाले के आरोपितों को बचाने के लिए जांच को कमजोर करना चाहते हैं। बघेल के अलावा एक जज और राज्य सरकार के कानूनी सलाहकार के कार्यालय पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। ईडी ने घोटाले के मुख्य आरोपित आईएएस अनिल टुटेजा और डॉ आलोक शुक्ला को बिलासपुर हाई कोर्ट द्वारा मिली अग्रिम जमानत को रद्द करने की मांग भी की थी।
बरामद हुए थे पैसे
आरोप है कि नान घोटाले के मुख्य गवाह गिरीश शर्मा से ही ईओडब्ल्यू के तत्कालीन अधिकारियों ने लगभग 20 लाख जब्त किए थे। गिरीश शर्मा ने अपने बयान में बताया था कि यह रकम अनिल टुटेजा और डॉ आलोक शुक्ला के हाथों में जानी है। उल्लेखनीय है कि गिरीश शर्मा ने एक याचिका दायर कर नान घोटाले की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की है।
कब हुआ था घोटाला
जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की रमन सिंह की सरकार थी तब राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में 36,000 करोड़ रुपये का कथित घोटाला सामने आया था। यह मामला 2015 में सामने आया था जब छत्तीसगढ़ के एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा ने 12 फरवरी को नागरिक आपूर्ति निगम के कुछ बड़े अधिकारियों और कर्मचारियों के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी की थी। इस छापेमारी में करोड़ों रुपये, डायरी, कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज, हार्ड डिस्क और डायरी भी जब्त की गई थी। इस मामले में नागरिक आपूर्ति निगम के कई अधिकारियों और कर्मचारियों को जेल भेज दिया गया था। आरोप है कि छत्तीसगढ़ में सरकार की ओर से चावल मिलों से लाखों क्विंटल घटिया चावल खरीदे गए और इसके लिए नेताओं और अधिकारियों को करोड़ों रुपये की रिश्वत दी गई। राशन वितरण के ट्रांसपोर्टेशन में भी बड़ी रकम का घोटाला हुआ।