माओवादी घटनाओं में तेजी से आ रही कमी के चलते अब कई राज्यों में केंद्रीय बलों की तैनाती की समीक्षा की जा रही है। उन इलाकों से केंद्रीय बलों की संख्या को कम किया जा सकता है, जहां पर्याप्त संख्या में फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस ‘एफओबी’ और कैंप स्थापित किए गए हैं। चूंकि नक्सलियों को खत्म करने, दशकों से प्रभाव वाले इलाकों से खदेड़ने और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने में सीआरपीएफ एवं जंगल वॉरफेयर में प्रशिक्षित इसकी ‘कोबरा’ इकाई की अहम भूमिका रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लगातार माओवादी हिंसा से प्रभावित जिलों की समीक्षा की जा रही है। गत वर्ष बिहार और झारखंड का ऐसा कोई इलाका नहीं बचा है, जहां सुरक्षा बलों की पहुंच न हो। इसी वजह से अब कोबरा की आधा दर्जन टीमों को झारखंड से हटाकर दूसरे राज्यों में भेजा गया है। इनमें से कुछ टीमें तेलंगाना के ‘चेन्नापुरम’ और बाकी टीम छत्तीसगढ़ के ‘टिप्पापुरम’ में तैनात की जा रही हैं।
वामपंथी उग्रवाद के परिदृश्य की समीक्षा के लिए केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा नियमित रूप से समीक्षा बैठकें की जाती हैं। विभिन्न योजनाओं के तहत कार्यों को शीघ्र पूरा करने और निगरानी सुनिश्चित करने के लिए अन्य वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा बैठकें और दौरे किए जा रहे हैं। भारत सरकार, एलडब्ल्यूई प्रभावित राज्यों की क्षमता संवर्धन के लिए गृह मंत्रालय और अन्य संबद्ध मंत्रालयों की योजनाओं/पहल के माध्यम से सहायता प्रदान करती है। एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क के विस्तार, बेहतर दूरसंचार, शैक्षणिक सशक्तिकरण और वित्तीय समावेशन पर विशेष बल दिया जाता है। गृह मंत्रालय, एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में प्रमुख योजनाओं का अधिकतम कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए सभी मंत्रालयों के साथ समन्वय करता है।
सुरक्षा बलों व आम नागरिकों की मौत में 90 फीसदी कमी
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 14 मार्च को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) के संकट से समग्र रूप से निपटने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2015 में एक राष्ट्रीय नीति एवं कार्य योजना को मंजूरी दी थी। उक्त नीति के अंतर्गत एक बहुआयामी रणनीति की परिकल्पना की गई थी। इसमें सुरक्षा के उपाय, विकासपरक हस्तक्षेप तथा स्थानीय समुदायों के अधिकारों एवं हकदारियों को सुनिश्चित करना आदि शामिल था। इस नीति के दृढ़ कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप पूरे देश में एलडब्ल्यूई हिंसा में निरंतर कमी आई है। एलडब्ल्यूई संबंधी हिंसा की घटनाओं में वर्ष 2010 के स्तर की तुलना में वर्ष 2022 में 77 फीसदी की कमी दर्ज हुई है। परिणामी मौतों ‘सुरक्षा बलों और आम नागरिकों’ में भी 90 फीसदी की कमी आई है, जो वर्ष 2010 में अब तक के सर्वाधिक स्तर 1005 से कम होकर 2022 में 98 हुई है।
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176 पुलिस स्टेशनों में ही एलडब्ल्यूई हिंसा
हिंसा के भौगोलिक विस्तार में भी पर्याप्त कमी हुई है। वर्ष 2022 में केवल 45 जिलों के 176 पुलिस स्टेशनों में ही एलडब्ल्यूई हिंसा रिपोर्ट की गई है। इसकी तुलना में वर्ष 2010 में अब तक के सर्वाधिक 96 जिलों के 465 पुलिस स्टेशनों में हिंसा रिपोर्ट की गई थी। भौगोलिक विस्तार में हुई कमी को सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) स्कीम के तहत अंतर्गत कवर जिलों की संख्या में आई गिरावट के रूप में भी देखा जा सकता है। एसआरई जिलों की संख्या अप्रैल 2018 में 126 से घटकर 90 हो गई थी। उसके बाद दोबारा से जुलाई 2021 में यह संख्या कम होकर 70 रह गई। झारखंड की सुरक्षा स्थिति में भी काफी सुधार हुआ है। राज्य में सुरक्षा वैक्यूम को लगभग समाप्त कर लिया गया है। सुरक्षा बलों द्वारा कैंप लगाकर और नियमित ऑपरेशनों को अंजाम देकर बूढा पहाड़, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां और खूंटी का ट्राई जंक्शन इलाका तथा पारसनाथ हिल्स जैसे स्थानों को माओवादियों की मौजूदगी से मुक्त करा दिया गया है। झारखंड में हिंसा की घटनाओं में 82 फीसदी की कमी हुई है, जो 2009 में सर्वाधिक 742 घटनाओं से कम होकर वर्ष 2022 में 132 हो गई है। इस प्रदेश में एसआरई जिलों की संख्या भी वर्ष 2018 में 19 से घटकर 2021 में 16 हो गई है।