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गरियाबंद में बोया धान और उपजा मक्का ? 45 से ज्यादा गावों में 11 क्विंटल उत्पादन और बेचा 15 क्विंटल, आखिर कैसे हुआ ये चमत्कार ?

गिरीश जगत, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में कम वर्षा के चलते उत्पादन प्रभावित की बात किसी से छिपी नहीं थी. क्योंकि खरीदी आरंभ होने से पहले ही देवभोग के 45 से ज्यादा गांव के लोग अपने अपने खरीदी केंद्र स्तर पर लांबध्द होकर धान नहीं बेचने के अलावा क्षेत्र को सुखा घोषित की मांग किया था. खरीदी केंद्र झिरिपानी, झाखरपारा, खोखसरा के किसान आज भी अपने मांग पर कायम है, अब तक उन्होंने धान नहीं बेचा.

प्रभावित अन्य गांव के खरीदी केंद्र दीवानमुड़ा, निष्टिगुडा, सिनापाली, घूमरगुड़ा, रोहनागुड़ा,गोहरापदर क्षेत्र में जम कर किसानों ने धान बेचा. प्रभावित क्षेत्र की अनावरी रिपोर्ट के मुताबिक इन क्षेत्रों का औसत उत्पादन 11.9 क्विंटल प्रति एकड़ का है. लेकिन इन केंद्रों में 15 से 18 क्विंटल के मान से धान बिक गया.

 कैसे और क्यों बिक गया ज्यादा मात्रा में धान ?

इस बार कर्ज माफी नहीं हुआ, उत्पादन भी कम था एसे में कम पैदावारी में धान उपलब्धता का विकल्प ओडिशा का उपज बना. ओडिशा से भारी आवक के बीच सिस्टम में हुई सेंध मारी कुछ ऐसी वजहों से भी जिससे आसानी से बाहर का धान भारी मात्रा में खपा दिया गया.

पहली वजह- मक्का वाले रकबे पर भी बिक गया धान

गोहरापदर खरीदी केंद्र में धान बेचने वाले रुखराम नागेश की गोहरापदर व तुआसमाल में कूल 5.25 हेक्टेयर (13.125 एकड़) कुल जमीन है. इसी जमीन पर 20 क्वींट प्रति एकड़ के मान से गोहरापदर खरीदी केंद्र ने पहले 200 क्वी धान खरीदी कर लिया,अब शेष रकबे पर 18 जनवरी के लिए 60 क्वी धान का टोकन भी काट दिया गया है.

हमने जब राजस्व रिकार्ड से मिलान किया तो रूखराम केवल 6.7 एकड़ में ही धान बेच सकता है. शेष में मक्का और डबरी दिख रहा है. पटवारी और तहसीलदार के रिकार्ड में फसलों का स्पष्ट उल्लेख रहने के बावजूद खरीदी केंद्र ने किस रिकार्ड के आधार पर धान का टोकन काट दिया बड़ा सवाल है.

अनावरी रिपोर्ट के मुताबिक उक्त दोनों गांव का औसत उत्पादन भी महज 9.7 क्विंट प्रति एकड़ है. रुखराम के आधे रकबे में मक्का बुआई का प्रमाण अभी भी मौजूद है.ऐसा केवल एक किसान नही बल्कि जांच हुआ तो कई लोगो के नाम सामने आयेंगे.

दूसरी वजह- गिरदावरी के बाद 308 रकबे में सुधार हो गए

तहसील व खरीदी केंद्रों में मौजूद रिपोर्ट के मुताबिक गिरदावरी के अंतिम तिथि के बाद भी 398 रकबे में संशोधन हुए,ज्यादातर वही रकबे थे जिनमे मक्का फसल का जिक्र था.रिकार्ड के मुताबिक गोहरापदर में 71,दीवानमुड़ा में 35, निष्टीगुड़ा में 42, रोहनागुड़ा में 44, लाटापारा और देवभोग खरीदी केंद्र के अधीन आने वाले गांव में 54-54 रकबो पर संसोधन हुआ.

हैरानी की बात तो यह है की जिन पटवारीयो ने गिरदावरी के सरकारी रिकार्ड में मक्का या फसल का विवरण नही दर्ज किया था वही उसे धान बताते गए. धान खरीदी को प्रभावित करने वाला यह महत्वपूर्ण रिकार्ड केवल पटवारी के भरोसे थी.

संसोधन के पूर्व ना कोई प्रमाण या न कोई क्रोस चेकिंग प्रावधान रखा गया,लिहाजा रकबे में फसल का उल्लेख मनमाफिक होता गया. इस वजह से भी गैर धान फसल वाले रकबे में धान की बिक्री होती गई.

प्रकिया में सुधार की जरूरत

देवभोग तहसील में आए मामले की तरह अमलीपदर तहसील के आंकड़े भी चौकाने वाले है. दरअसल खरीदी योजना में भले ही अधिकतम 21 क्विंटल का प्रावधान किया गया हो. लेकिन सिस्टम में गिरदावरी रिपोर्ट के अलवा क्षेत्रवार उत्पादन के आंकड़े भी अपग्रेड किया जा कर,उत्पादन के अनुपात में ही खरीदी की मात्रा तय होने का प्रावधान किया जाना चाहिए.

इसकी कमी के चलते कम उत्पादन वाले इलाके में निर्धारित मात्रा की भरपाई के लिए दूसरे प्रदेश के उपज को लाने एड़ी चोटी एक करते नजर आ रहे. इससे सरकारी खजाने को नुकसान उठाना पड़ रहा.

क्या कहते हैं जिम्मेदार

गेंद लाल साहू, तहसीलदार देवभोग रुखराम के राजस्व रिकार्ड में दोनों फसलों का उतना ही जिक्र है, जितने गिरदावरी के समय उल्लेख किया गया. समिति स्तर पर ही गड़बड़ी कर मक्के के रकबे में धान खरीदी किया गया है, जिसकी जांच की जाएगी. रही बात गिरदावरी की तो पटवारी के संसोधन के बाद ही तहसीलदार की आईडी में संशोधन होता है. संशोधन को सारी जवाबदारी पटवारी की होती है।

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