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MP News: सरकारी वकीलों की नियुक्ति में आरक्षण मामले में सरकार को मोहलत, सुप्रीम कोर्ट में तीन हफ्ते बाद सुनवाई

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शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने संबंधी मामले में सोमवार को सुनवाई बढ़ गई। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राज्य सरकार की ओर से जवाब के लिए समय की राहत चाही गई थी, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने मामले की सुनवाई तीन सप्ताह के लिए आगे बढ़ा दी।

उल्लेखनीय है कि शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधान लागू किए जाने के लिए ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में  याचिका दाखिल की गई है। सोमवार को मामले की सुनवाई हुई। मामले में आवेदकों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उक्त याचिका में आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 2 (ख) तथा 2(च) के इन्टरप्रीटेशन (व्याख्या) का प्रश्न मौजूद है कि क्या स्थापना की परिभाषा में महाधिवक्ता कार्यालय समाहित माना जाएगा? क्या शासकीय अधिवक्ता का पद लोक पद में है?, यदि उक्त परिभाषा खंड के अनुसार समाहित है तो आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधान लागू होंगे। 

अधिवक्ताओं द्वारा कोर्ट को अवगत कराया गया कि पंजाब सरकार द्वारा शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधान लागू कर दिए हैं। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया गया कि गत 35 वर्षों से मध्यप्रदेश में लगभग 38 जजों की नियुक्ति उन लोगों की हुई है, जो पूर्व में  शासकीय अधिवक्ता थे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा बनाए आरक्षण अधिनियम 1994 को लागू करना क्यों नहीं चाहती इस मुद्दे पर शासन का जवाब अपेक्षित है। तब मध्यप्रदेश शासन की ओर से जवाब के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा गया। सुप्रीम कोर्ट ने तीन सप्ताह का आखिरी समय दिया। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष पॉल, रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, समृद्दि जैन ने की।
 

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शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने संबंधी मामले में सोमवार को सुनवाई बढ़ गई। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राज्य सरकार की ओर से जवाब के लिए समय की राहत चाही गई थी, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने मामले की सुनवाई तीन सप्ताह के लिए आगे बढ़ा दी।

उल्लेखनीय है कि शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधान लागू किए जाने के लिए ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में  याचिका दाखिल की गई है। सोमवार को मामले की सुनवाई हुई। मामले में आवेदकों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उक्त याचिका में आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 2 (ख) तथा 2(च) के इन्टरप्रीटेशन (व्याख्या) का प्रश्न मौजूद है कि क्या स्थापना की परिभाषा में महाधिवक्ता कार्यालय समाहित माना जाएगा? क्या शासकीय अधिवक्ता का पद लोक पद में है?, यदि उक्त परिभाषा खंड के अनुसार समाहित है तो आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधान लागू होंगे। 

अधिवक्ताओं द्वारा कोर्ट को अवगत कराया गया कि पंजाब सरकार द्वारा शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधान लागू कर दिए हैं। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया गया कि गत 35 वर्षों से मध्यप्रदेश में लगभग 38 जजों की नियुक्ति उन लोगों की हुई है, जो पूर्व में  शासकीय अधिवक्ता थे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा बनाए आरक्षण अधिनियम 1994 को लागू करना क्यों नहीं चाहती इस मुद्दे पर शासन का जवाब अपेक्षित है। तब मध्यप्रदेश शासन की ओर से जवाब के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा गया। सुप्रीम कोर्ट ने तीन सप्ताह का आखिरी समय दिया। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष पॉल, रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, समृद्दि जैन ने की।

 

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