गिरीश जगत, गरियाबंद। साहब ये बेबस सुपेबेड़ा और गरियाबंद है, जहां झूठी रिपोर्ट से वाहवाही और पुरस्कार लिया जाता है. स्वास्थ्य केन्द्र अपनी समस्याओं के मकड़जाल में उलझ कर बीमार है, जिससे स्वास्थ्य सेवा का हाल बेहाल है. भगवान भरोसे अस्पताल चल रहे हैं. स्वास्थ्य सेवाएं ठप हैं. दर-दर भटक रहे मरीज, कागजों में काम दिखाकर शाबासी ली जा रही है. यहां बेहतर स्वास्थ्य सेवा की परिकल्पना करना बेमानी है. सिस्टम ने स्वास्थ्य का कबाड़ा कर दिया है. अस्पतालों की स्थिति बद से बदतर है. आखिर इस कारनामे का जिम्मेदार कौन है ?
मॉनिटरिंग के अभाव में सवा लाख आबादी की निर्भरता वाले देवभोग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सुपेबेड़ा तक की स्वास्थ्य सेवाएं ठप पड़ी हैं. अस्पताल में डॉक्टरों की कमी है. एक्सरे का फिल्म नहीं है. खराब पड़ी मशीनों के कारण किडनी लिवर की जांच भी बंद है. सुपेबेडा में किडनी मरीज दवा के चक्कर काट रहे हैं.
5 माह पहले तक देवभोग ब्लॉक की स्वास्थ्य सेवाएं ठीक चल रही थी, फिर अचानक से एक एक करके सुविधाएं घटती गई और अब ज्यादातर सेवाए भगवान भरोसे रह गया. पिछले 5 दिनो में हुए 3 दुर्घटनाओं में घायलों को एंबुलेंस सेवा नहीं मिलने का मामला प्रकाश में आने के बाद हमने अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं का जायजा लिया. हैरान करने वाला मामले सामने आया.
पहले की तरह जिला स्वास्थ्य अधिकारियों का दौरा इस ब्लॉक में नहीं हुआ, ना ही समस्याएं जानने के बाद उसके निराकरण का कोई रास्ता निकाला गया. सियासी गलियारों में सुर्खियों बटोरने वाले सुपेबेड़ा जैसे संवेदनशील ग्राम की भी अनेदखी कर दी गई. लिहाजा स्वास्थ सेवाएं तेजी से सिमटने लगी. अफसर कागजों में काम दिखाकर पुरस्कार लेने लगे. झूठी रिपोर्ट देकर वाहवाही बटोरते रहे. इस बीच जानिए कौन कौन सी सुविधाएं कैसे घटती गई.
डॉक्टरों की संख्या घट गई
4 माह पहले तक देवभोग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बीएमओ के अलावा 7 डॉक्टर की टीम मौजूद थी. अब बीएमओ को प्राशासनिक काम के आलावा बच गए दो मेडिकल ऑफिसर के साथ ओपीडी संभालना होता है. 100 से ज्यादा रोजाना ओपीडी व 10 से15 आइपीडी के अलावा इमरजेंसी ड्यूटी भी इन्हीं के भरोसे है. ब्लॉक के 3 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी चिकित्सक नहीं हैं. स्वास्थ्य कार्यकर्ता के भरोसे प्राथमिक सेवा को धकेला जा रहा है.
जरूरी जांच के मशीनें खराब, एक्सरे भी बंद
15 दिनों के पहले तक जांच व एक्सरे की सुविधाएं ठीक ठाक चल रही थी, लेकिन सीबीसी,किडनी, लिवर जांच की मशीनें अप्रैल माह से खराब पड़ी हैं. कम्पलेन के बावजूद जिला अफसरों ने इसे बनवाने में रुचि नहीं ले रहे हैं. एक्सरे के लिए फुल और मीडियम साइज के फिल्म भी सप्लाई नहीं दी जा सकी है. इसलिए यह सेवाएं ठप हो गई हैं.
अफसरों की झूठी रिपोर्ट
अफसरों की झूठी रिपोर्ट के चलते स्वास्थ्य मंत्री सुपेबेडा में पिछले साल भर से मेडकिल अफसर की नियुक्ति होने का दावा किया करते हैं. कुछ माह पहले तक कुछ चिकित्सक खाना पूर्ति करने हाजिर भी होते थे, लेकिन जिला स्तर की मॉनिटरिंग हटते ही सुपेबेड़ा का जिम्मा उपस्वास्थ्य केंद्र की प्रमिला मंडावी को जिम्मा दिया गया है.
प्रमिला फील्ड की सारी जवाबदारी के अलावा यहां की अतिरिक्त जवाबदारी भी संभाल रहे. प्रमिला ने जीवन के मामले में कहा कि उसने अब तक किसी भी प्रकार का प्रिस्क्रीपन लेटर नहीं दिखाया है. पर्ची देखकर ही दवा देंगे.
बता दें कि किडनी पीड़ितो को दवा उपलब्ध कराने सीएमएचओ को पर्याप्त राशि दी जाती है, लेकिन विगत कुछ माह से इसकी जिला स्तर पर खरीदी नहीं हुई है. राजधानी से प्रिस्क्रीप्शन लेकर आने वाले किडनी मरीजो को इसी लिए दवा उपलब्ध नही कराया जा रहा है.
पीएम के लिए ओडिशा के स्वीपर पर निर्भर
पीएम के लिए स्वीकृत स्वीपर का पद यहा कई साल से रिक्त पड़ा है. दो साल पहले तक यह काम जीवनदीप समिति से भर्ती किए गए स्वीपर सुभाष सिंदूर करते थे, कोरोना काल में सेवा देते उनकी मौत के बाद दूसरा अब तक भर्ती नहीं किया जा सका है. तब से लेकर अब तक 50 से ज्यादा पोस्ट मार्टम ओडिशा के स्वीपर के भरोसे कराया गया. कालाहांडी ब्लॉक के धर्मगढ़ से स्वीपर बुलाया जाता है. एक पीएम के पीछे 2 से 3 हजार का खर्च है, जिसे पीड़ित परिवार को वहन करना पड़ता है.
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