![गरियाबंद का शापित सुपेबेड़ा गांव! किडनी की बीमारी ने पिता के बाद मां को भी निगला, जमीन-जेवर बिक गए, अंतिम संस्कार करने ग्रामीणों ने दिया 9 हजार चंदा, तो रो पड़ा अनाथ बेटा गरियाबंद का शापित सुपेबेड़ा गांव! किडनी की बीमारी ने पिता के बाद मां को भी निगला, जमीन-जेवर बिक गए, अंतिम संस्कार करने ग्रामीणों ने दिया 9 हजार चंदा, तो रो पड़ा अनाथ बेटा](https://i0.wp.com/mpcgtimes.com/wp-content/uploads/2024/03/IMG-20240308-WA0017.jpg?fit=1200%2C675&ssl=1)
Woman dies due to kidney disease in Gariaband district: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में किडनी बीमारी से प्रभावित सुपेबेड़ा में 6 मार्च को 45 वर्षीय महिला ऊषा सिन्हा की मौत हो गई। किडनी की बीमारी ने पहले पिता और अब मां की मौत से बेटा अनाथ हो गया है। ग्रामीणों ने पैसे इकठ्ठा कर 9 हजार रुपए दिए, तब अंतिम संस्कार हो सका। यह शापित गांव एक-एक कर लोगों को निगल रहा है। अब तक 140 लोगों की मौत हो चुकी है।
किडनी रोगियों को इलाज कराने पहले सरकार से नियुक्त कोर्डिनेटर त्रिलोचन सोनवानी ने बताया कि महिला पिछले 3 साल से बीमार थी। इकलौता 20 वर्षीय बेटा रतन सिन्हा साथ में इलाज कराने जाता था। एम्स से लेकर मेकाहारा और जिला अस्पताल में इलाज चल रहा था। डायलिसिस जारी था।
एम्स से लेकर कई अस्पतालों में हो चुका था इलाज
इसी बीच 6 मार्च को उनकी मौत हो गई। पीड़ित के घर खाने तक को अनाज नहीं था। ऐसे में त्रिलोचन सोनवानी और गांव के सरपंच पति महेंद्र मसरा ने मदद के लिए गांव के लोगों का एक वायस्प ग्रुप बनाया। जिसमें अपील के बाद 9 हजार एकत्र हुआ। जिसे आज पीड़ित बेटे को सौंपा गया है। रतन के पिता शार्तिक सिन्हा की मौत 2016 में किडनी की बीमारी से ही मौत हो गई।
अनाथ बेटे का भविष्य दांव पर
पिता के बीमार पड़ने के बाद घर में कमाने वाला कोई नहीं था। अनाथ बेटे ने कहा कि परिवार के हिस्से में मिले ढाई एकड़ जमीन मां के जेवरात से लेकर सबकुछ 2012 से बिकने लगा। आज रहने के लिए कच्चा झोपड़ी है। पिता बिमार हुए तो मां के साथ जतन करता था। पिता के जाने के बाद मां भी किडनी रोग से ग्रसित हो गई।
रतन ने कहा कि बीमारी के इलाज में सब कुछ सरकारी नहीं मिलता। कई दबाए महंगे किट खरीदी करना पड़ता था। कमाने वाला कोई नहीं इसलिए भूखे रहकर भी इलाज कराता रहा। बेटे ने कहा कि आंध्र के तर्ज पर सरकार से पीड़ित परिवार को सहायता राशि दी जानी चाहिए। गांव के अधिकांस पीड़ित परिवार का मेरी तरह ही बुरा हाल है।
140 की मौत, 35 अब भी बीमार
2005 से अब तक सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से मरने वालों की संख्या 140 पहुंच गई है। जिसमें 2011 के बाद जान गवाने वालों में 97 नाम शामिल है। तीन साल पहले गांव में हुई सामूहिक जांच में 43 लोगों में किडनी रोगी के लक्षण पाए गए थे। जिसमें अब तक 6 से ज्यादा लोगों ने जान गवा दी। वर्तमान में 35 ऐसे मरीज है जिनकी क्रियटीन लेबल 3 या इससे ज्यादा है। एक की स्थिति स्थिर बनी हुई है, तो 48 वर्षीय नवीन एम्स के वेंटीलेटर में जिंदगी मौत के बीच संघर्ष कर रहा है।
सप्ताह भर से नवीन कोमा में चले गया है। सुविधा के नाम से गांव में अस्पताल खोल डॉक्टर दिया गया है। बाकी साफ पानी और किडनी रोगी क्यों हो रहे, असली वजह क्या है, इसका पता लगाने में सरकारे अब भी नाकाम हैं।
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