: छत्तीसगढ़ में हुआ पहला नॉर्को टेस्ट: अब रायपुर AIIMS में 3 दिन में मिलेगी रिपोर्ट, पहले मुंबई-हैदराबाद जाना पड़ता था
इस संबंध में सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद 27 जुलाई को एम्स के जरिए पहला नाकोएनालिसिस टेस्ट किया गया। यह मामला रायगढ़ जिले के पुंजिपथरा थाने से जुड़ा था। जांच प्रक्रिया पूरी करने के बाद एफएसएल के माध्यम से रिपोर्ट संबंधित थाने को भेज दी गई, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। नार्को टेस्ट फोरेंसिक मेडिसिन एवं टॉक्सिकोलॉजी विभाग ने एनेस्थीसिया, जनरल मेडिसिन एवं इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के सहयोग से पूरा किया। एम्स के कार्यकारी निदेशक अशोक जिंदल ने राज्य प्रशासन की सहायता के लिए इस तरह के टेस्ट शुरू करने की पहल करने के लिए विभिन्न विभागों को बधाई दी।
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गोधरा कांड में पहली बार टेस्ट
फोरेंसिक मेडिसिन एवं टॉक्सिकोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर कृष्णदत्त चावली ने बताया कि नार्कोसिस का इस्तेमाल संदिग्ध से पूछताछ के लिए किया जाता है, जिसमें व्यक्ति के शरीर में कोई दवा इंजेक्ट की जाती है। भारत में ही वर्ष 2008 में आरुषि हत्याकांड की जांच में इसका इस्तेमाल किया गया था।
सिद्धांत पर आधारित विश्लेषण
डॉ. चावली के अनुसार, नार्को विश्लेषण इस सिद्धांत पर आधारित है कि व्यक्ति झूठ बोलने के लिए अपनी कल्पना या इरादे का इस्तेमाल करता है। इसके लिए पूरी चेतना की जरूरत होती है। अर्धचेतन (ट्रांस) अवस्था में झूठ बोलने की क्षमता खत्म हो जाती है। कुछ दवाइयों के प्रभाव से जिसे टूथ सीरम भी कहते हैं, व्यक्ति शांत और बातूनी हो जाता है और उसके सच बोलने की संभावना बढ़ जाती है। इसका प्रभाव शराब के नशे में खुलकर बोलने वाले व्यक्ति जैसा ही होता है।
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गुमशुदगी का मामला
नार्को टेस्ट में एफएसएल की ओर से प्रमुख भूमिका निभाने वाले डॉ. हरमिंदर सिंह भावरा ने बताया कि मामला रायगढ़ जिले के पुंजिपथरा के गुमशुदा व्यक्ति से जुड़ा था। संदिग्ध की सीडीआर के आधार पर संबंधित पुलिस ने उसे पकड़कर उसका नार्को टेस्ट कराया। इसके पहले फिजियोलॉजिकल टेस्ट कराया गया। मेडिकल फिटनेस प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसके नार्को टेस्ट की प्रक्रिया पूरी की गई।
अब जानिए क्या है नार्को टेस्ट, जो लाता है सच सामने
शातिर क्रिमिनल खुद को बचाने के लिए अक्सर झूठी कहानी बनाता है। पुलिस को गुमराह करते हैं। इनसे सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता है। नार्को टेस्ट में साइकोएस्टिव दवाई दी जाती है। जिसे ट्रुथ ड्रग भी कहते हैं। जैसे- सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल।
सोडियम पेंटोथल कम समय में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक ड्रग है। इसका इस्तेमाल सर्जरी के दौरान बेहोश करने में सबसे ज्यादा होता है। ये केमिकल जैसे ही नसों में उतरता है, शख्स बेहोशी में चला जाता है। बेहोशी से उठने के बाद भी आरोपी को पूरा होश नहीं रहता।
दावा है कि, इस हालत में आरोपी जानबूझकर कहानी नहीं गढ़ सकता, इसलिए सच बोलता है। नार्को टेस्ट में जो ड्रग दिया जाता है, वो बेहद खतरनाक होता है। जरा सी चूक से मौत भी हो सकती है या आरोपी कोमा में भी जा सकता है। यही वजह है कि नार्को टेस्ट से पहले आरोपी की मेडिकल जांच की जाती है।
इनका नहीं होता नार्को टेस्ट
अगर आरोपी को मनोवैज्ञानिक, आर्गन से जुड़ी या कैंसर जैसी कोई बड़ी बीमारी है, तो उसका नार्को टेस्ट नहीं किया जाता। नार्को टेस्ट अस्पताल में इसलिए कराया जाता है, ताकि कुछ गड़बड़ होने पर इमरजेंसी की स्थिति में तत्काल इलाज किया जा सके। व्यक्ति की सेहत, उम्र और जेंडर के हिसाब से नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती है।
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