छत्तीसगढ़स्लाइडर

गरियाबंद के इस गांव में न पार्टी पहुंचती है न प्रत्याशी: बाइक की जगह घोड़ा खरीदते हैं लोग, पहाड़ से 50KM वोट देने पैदल चलकर जाते हैं कमार जनजाति के मतदाता

Gariaband Kulhari Ghat village voters of Kamar tribe: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मैनपुर ब्लॉक के राजीवगोद ग्राम कहे जाने वाले कुल्हाड़ी घाट के आश्रित गांव में ना पार्टी पहुंचती है ना ही प्रत्याशी। कमार जनजाति के मतदाताओं को चुनावी एजेंडा भी पता नहीं होता है। फिर भी वोट देने के लिए 50 किमी पैदल सफर तय करते हैं।

दरअसल, पंचायत मुख्यालय से 24 किमी दूर ताराझर गांव में 150 मतदाता रहते हैं। इतने ही वोटर्स 10 किमी दूरी पर मौजूद भालूड़ीगी और मटाल में भी हैं। पहाड़ी से करीब 300 मतदाता मतदान के एक दिन पहले मुख्यालय पहुंचते हैं। एक दिन बाद पहाड़ों की चढ़ाई कर वापस जाना पड़ता है।

एक दिन पहले मतदान करने निकलते हैं

ग्रामीण जगन्नाथ, जयसिंह कमार और वार्ड पंच बासुदेव सोरी का कहना है कि, मतदान पर्व में शामिल होने में उन्हें तीन दिन का समय लगता है। 26 अप्रैल को मतदान के लिए वे 25 की सुबह अपने अपने गांव से निकल जाएंगे। उतरने में उन्हें महज 3 से 4 घंटा लगता है, जबकि चढ़ाई करने में 6 घंटे से ज्यादा वक्त लग जाता है।

वोटिंग के दूसरे दिन घर लौटते

कुछ वोटर्स पहाड़ के नीचे कुकरीमाल में तो कुछ मुख्यालय में सरपंच बन सिंह के घर रुकते हैं। वोटिंग दोपहर से पहले हुआ तो वापस जाने की सोचते है, नहीं तो मतदान के अगले दिन लौटते हैं। कुल्हाड़ी घाट में हर आम चुनाव का मतदान प्रतिशत 75 से 80 फीसदी तक होता है। इनमें पहाड़ों में बसे राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कमार जनजाति के मतदाताओं की भूमिका अहम होती है।

यह मतदाता सभी के लिए प्रेरणा स्रोत

आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त नवीन भगत ने कहा कि इन्हें हर योजनाओं का लाभ प्राथमिकता के आधार पर दिया जाता है। भौगोलिक विषम परिस्थिति के कारण पहुंच मार्ग नहीं है।प्रशासन ने सभी आवश्यक सुविधाओं के साथ इनके विस्थापन कराया था। जनजाति के ये मतदाता सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

नहीं पता होता कौन है प्रत्याशी, विकास के नाम करते हैं वोट

युवा मतदाता सुभाष ने कहा कि, हमारी बस्ती राजनीतिक दलों के पहुंच से दूर है। पंचायत चुनावों को छोड़कर बाकी चुनाव में हमें प्रत्याशी का पता नहीं होता। लेकिन किस ओर हवा का रुख होता है इसकी जानकारी उन्हें होती है। सोशल मीडिया आने के बाद उन्हें काम करने वाले और बिना काम के पार्टियों की जानकारी हो रही है। इसी जानकारी के आधार पर विकास और मूलभूत सुविधा की आस में मतदान करते हैं।

घोड़े में जाता है राशन, झरिया का पीते हैं पानी

पहाड़ों की सीधी चढ़ाई पार करने के बाद इनकी बस्ती बसी है। ऐसे में सड़क की आस अब इन्हें भी नहीं है। पैसे वाले लोग बाइक नहीं घोड़े खरीदी करते हैं। इमरजेंसी में पहाड़ों से ऊपर नीचे होने से राशन चढ़ाने से लेकर उपज बेचने में घोड़े ही सहायक हैं। पीने के लिए पंचायत झरिया खोदा गया है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर टीकाकरण समय समय पर होता है।

बीमार पड़े या फिर गर्भवती को नीचे परिजनों के शरण में रहकर मैनपुर अस्पताल में उपचार कराना होता है। ग्रामीणों को 2014-15 में विस्थापन कर नीचे आवास सड़क पानी बिजली को सुविधा दिलाया गया था, लेकिन योजना रोजगार के अभाव में विफल हो गई। 3 साल के भीतर विस्थापन वाले डेरे विरान हो गए।

मतदाताओं को ठहरने पूरा इंतजाम कराया जाएगा

मैनपुर एसडीएम तुलसी दास मरकाम ने कहा कि ये मतदाता सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है। इन्हें ठहरने की पूरी व्यवस्था कराई जाएगी।

Read more- Landmines, Tanks, Ruins: The Afghanista Taliban Left Behind in 2001 29 IAS-IPS

Show More
Back to top button