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Ancient Shiv Temple: देवताओं की पहाड़ी पर 11वीं सदी के अवशेषों को जोड़कर बन रहा शिव मंदिर, जानें खास बातें

सीहोर जिले का देवबड़ला इलाका देवताओं की पहाड़ी के नाम से अपनी पहचान बना रहा है। आप सोच रहे होंगे आखिर इसे देवताओं की पहाड़ी क्यों कहा जा रहा है तो आइए आपको इस नाम के पीछे की खास वजह बताते हैं। देवबड़ला पहाड़ी सीहोर जिला मुख्यालय से करीब 72 किमी दूर बीलपान गांव से तीन किमी की दूरी पर स्थित है। लंबे वक्त से उपेक्षा का दंश झेल रही ये पहाड़ी अचानक सुर्खियों में छाई हुई है। दरअसल इस पहाड़ी पर 11वीं सदी के मंदिरों के अवशेष मिल रहे हैं, वहीं पहाड़ी पर 300 साल पुराने करीब नौ मंदिरों के बेस भी मिले हैं। बीते छह वर्षों से यहां पुरातत्व विभाग यहां खुदाई कर रहा है, अब तक की खुदाई में करीब 30 बेशकीमती प्रतिमाएं मिल चुकी हैं।

अवशेषों को जोड़कर बन रहा मंदिर 

देवबड़ला में 11वीं सदी के मंदिरों के अवशेषों को जोड़कर 300 साल से जमीन के नीचे दबे मंदिर को फिर से खड़ा किया जा रहा है। कुछ महीने पहले तक यहां मंदिर नहीं था। मंदिर का अवशेष था, जो जमीन के नीचे दबा था। पुरातत्व विभाग की मेहनत से भगवान शिव का एक मंदिर खड़ा हो चुका है। यहां खुदाई में एक या दो नहीं बल्कि पूरे नौ मंदिर मिले हैं। वर्तमान में शिव मंदिर का निर्माण कार्य जारी है, इसके बाद अगले साल विष्णु मंदिर के निर्माण समेत बाकी आठ मंदिरों का निर्माण करने की तैयारी है।

2016 में शुरू की गई थी खुदाई

देवबड़ला पहाड़ी पर अक्सर प्राचीन प्रतिमाएं मिलने की सूचनाएं मिला करती थीं, जिसके बाद पुरातत्व विभाग ने करीब छह वर्ष  पहले 2016 में यहां खुदाई शुरू की। जैसे-जैसे पहाड़ी की खुदाई आगे बढ़ी वैसे-वैसे यहां प्रतिमाओं के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया, खुदाई के दौरान जब मंदिरों के अवशेष मिले तो पुरातत्व विभाग के अफसर भी हैरान हो गए। यहां मंदिरों को दोबारा खड़ा कराने की जिम्मेदारी देख रहे पुरातत्व विभाग के अफसर जीपी चौहान बताते हैं कि पहले चार मंदिरों का बेस मिला। जब हम पांचवें मंदिर का बेस तलाश रहे थे, तभी हमें चार और मंदिरों का पता चला। यानी अब तक यहां कुल नौ मंदिरों के बेस सामने आ चुके हैं।

 

भूमिज शैली के हैं मंदिर

पहाड़ी की खुदाई में मिले मंदिर भूमिज शैली के बताए जा रहे हैं। इस शैली की विशेषता उसके शिखर में दिखाई देती है। इसके शिखर के चारों और प्रमुख दिशाओं में लतिन या एकान्डक शिखर की भांति, ऊपर से नीचे तक चैत्यमुख डिजाइन वाले जाल की लताएं या पट्टियां रहती हैं, लेकिन इसके बीच में चारों कोणों में, नीचे से ऊपर तक क्रमशः घटते आकार वाले छोटे-छोटे शिखरों की लड़ियां भरी रहती हैं। इन मंदिरों को लेकर जानकारों का अनुमान है कि ये परमारकाल में 11वीं सदी में बने थे। पुरातत्व विभाग का अनुमान है कि करीब 300 साल पहले यानी 18वीं सदी में ये मंदिर भूकंप के कारण धराशायी हुए या किसी आक्रमणकारी के हमले में गिराए गए। समय के साथ पहाड़ी इलाके में बारिश और मिट्टी के कटाव के कारण साल दर साल इनके ऊपर मिट्टी की परत जमती चली गई और ये जमीन के नीचे दब गए।

उड़द की दाल चूने से जोड़े जा रहे अवशेष

पुरातत्व विभाग के अफसर जीपी चौहान ने बताया कि भोपाल के पुरातत्व अधिकारी डॉ. आरसी यादव के निर्देशन में पुरानी इमारतों को दोबारा सहेजने के लिए उसी टेक्निक का इस्तेमाल किया गया है, जिससे उस काल में भवन बनाए जाते थे। यहां भी मंदिर के अवशेषों को जोड़ने के लिए उड़द की दाल, चूना, गुड़ जैसे केमिकल यूज किए जा रहे हैं। मसाले की लेयर बेहद पतली होती है। पत्थरों को लिफ्ट करने के लिए आधुनिक मशीनों का सहारा भी लिया जा रहा है।

 

जानिए खुदाई में कौन सी प्रतिमाएं मिली हैं

देवबड़ला पहाड़ी में खुदाई के दौरान अब तक शिव तांडव नटराज, उमाशंकर, जलधारी, नंदी, विष्णु, लक्ष्मी की प्रतिमा सहित कुल करीब 30 प्रतिमाएं मिली हैं। इनमें से कुछ खंडित हैं बाकी सब ठीक हालत में हैं। प्रतिमाओं को फिलहाल सुरक्षित स्थान पर रखा गया है। करीब 200 फीट से अधिक एरिया में अभी खुदाई हुई है। खुदाई का काम लगातार जारी है, जिसमें और प्रतिमा मिलने का अनुमान है। 

अगले साल विष्णु मंदिर का निर्माण होगा

देवबड़ला मंदिर समिति के अध्यक्ष ओंकार सिंह भगत व कुंवर विजेंद्र सिंह भाटी ने बताया कि अभी 41 लाख रुपये की लागत से 51 फीट ऊंचा भगवान शिव का मंदिर तैयार हो रहा है। अब करीब 35 फीट ऊंचा भगवान विष्णु का 16 लाख रुपये की लागत से मंदिर बनाया जा रहा है, जिसका काम अगले साल पूरा हो जाएगा। मंदिर को भव्य रूप दिया जा रहा है, जिससे कि वह आकर्षण का केंद्र बने। इसके अतिरिक्त अन्य सुविधाएं जुटाई जाएगी, जिससे लोगों को फायदा मिले। इसके बाद बारी-बारी से सभी मंदिर बनाए जाएंगे। 

 

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