छत्तीसगढ़ट्रेंडिंगशिक्षास्लाइडर

पिता ने कबाड़ से बना दी ई-साइकिल: बेटे को स्कूल जाने में हो रही थी परेशानी, 6 घंटे चार्ज पर चलती है 80KM

Chhattisgarh Balod Father made e-cycle from junk for son: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक पिता ने अपने बेटे को स्कूल जाने में होने वाली परेशानियों को देखकर कबाड़ से ई-साइकिल बना दी। दुचेरा गांव निवासी संतोष साहू वेल्डर हैं। उन्होंने कबाड़ के सामान से ई-बाइक बनाई है। यह ई-साइकिल राज्य में चर्चा का विषय बन गई है।

किशन साहू कक्षा 8वीं में पढ़ते हैं और कक्षा 6वीं से उन्होंने आत्मानंद स्कूल में पढ़ाई शुरू की है। स्कूल 20 किलोमीटर दूर जिंदा गांव में है। संतोष कुमार ने बताया कि उनके बेटे को स्कूल जाने में काफी दिक्कत होती थी, कभी बस छूट जाती थी तो कभी वापस आने के लिए बस नहीं मिलती थी।

इसलिए उन्होंने इंटरनेट की मदद ली और अपने बच्चे के लिए ई-साइकिल बना दी। उनका बेटा अब आराम से स्कूल जाता है और समय पर लौटता है।

एक बार चार्ज करता हूं, दो दिन स्कूल जाता हूं

किशन साहू ने बताया कि अगर मैं साइकिल को एक बार चार्ज करता हूं तो दो दिन आराम से स्कूल जा सकता हूं। मैं पिछले 3 साल से इसी से स्कूल आ-जा रहा हूं। पहले मैं पास में ही पढ़ने जाता था, लेकिन जब मेरा एडमिशन अर्जुन्दा स्कूल में हुआ तो मुझे काफी दिक्कतें होने लगीं।

गरियाबंद के 60 साल के अजा की पाठशाला: सरकारी स्कूलों से ज्यादा टैलेंटेड हैं इनके स्टूडेंट्स, जानिए कैसे 10 साल से जगा रहे शिक्षा की अलख ?

मेरे पिता ने मेरी परेशानी देखी और कबाड़ से एक साइकिल खरीद कर दी। उसमें बैटरी लगाई, एक्सीलेटर लगाया और अब मैं समय पर स्कूल जाता हूं। मुझे अपने पिता पर गर्व है।

वीडियो वायरल होने के बाद 3 नए ऑर्डर मिले

संतोष कुमार ने बताया कि जब से बच्चे का वीडियो सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचा है, तब से उन्हें 3 और साइकिल बनाने के ऑर्डर मिल चुके हैं। मैंने अपने बेटे के लिए इसे बनाया और यह मेरी मजबूरी थी, लेकिन मैं चाहता हूं कि उसकी पढ़ाई में कोई बाधा न आए। उन्होंने ई-बाइक के बारे में बताया कि इसे 6 से 8 घंटे चार्ज करने के बाद यह 80 किलोमीटर तक चलती है।

स्कूल बस में आग में जिंदा जले 25 छात्र: शिक्षक समेत 44 लोग थे सवार, जानिए कैसे हुआ हादसा ?

गांव में पिता की वेल्डिंग की दुकान

संतोष कुमार वेल्डिंग का काम करते हैं और गांव में उनकी छोटी सी दुकान है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अलग-अलग जगहों से सामान खरीद कर साइकिल में फिट किया। इसमें काफी मेहनत लगी, लेकिन दो दिन में यह बनकर तैयार हो गया। आज मैं बहुत खुश हूं कि मेरा बेटा आराम से स्कूल आ-जा सकता है।

Read More- Landmines, Tanks, Ruins: The Afghanista Taliban Left Behind in 2001 29 IAS-IPS

Show More
Back to top button