IGNTU में आदिवासियों से छलावा ? ट्राइबल छात्रों का 43% घटा आरक्षण, आदिवासी रिजर्वेशन से सांसद, सदन में कभी नहीं उठाया मुद्दा, भटकते रहे छात्र, दिग्विजय क्यों बोले कुलपति पर दर्ज हो FIR ?
IGNTU में स्थानीय छात्रों से अनदेखी पर सांसद की बेरूखी, क्या वोट बैंक हैं आदिवासी ?
भोपाल। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने छात्रहित में एक बयान देकर सियासी आग सुलगा दी है, जो अब छात्रों के सीने में धधकने लगी है. प्रदेश के आदिवासी छात्र संगठन हक के लिए आवाज बुलंद करने लगे हैं. ये आग कहीं और नहीं अनूपपुर जिले के IGNTU में पढ़ रहे आदिवासी छात्रों को लेकर लगी है, जिसके रडार में बीजेपी और पीएम मोदी आ गए हैं. ऐसे में सवाल उठाना लाजमी है कि जहां विश्वविद्यालय स्थित है, वह आदिवासी सांसद का गृह जिला है, लेकिन मजाल है कि बीजेपी सांसद आदिवासी छात्रों के हित में सदन में कभी मांग की हो कि विश्वविद्यालय में आदिवासी छात्रों को पुराना आरक्षण मिले, जिससे जो गरीब तबके के छात्र हैं, अपना भविष्य उज्जवल कर सकें. न स्थानीय सांसद और न ही किसी आदिवासी सांसद ने छात्रों के हित में बात की.
मुद्दे से कन्नी काट लिया विश्वविद्यालय प्रबंधन
दरअसल, दिग्विजय सिंह अनूपपुर जिले के दौरे पर थे, जहां उन्होंने साफ शब्दों में बीजेपी और कुलपति को घेरते हुए कहा कि IGNTU के कुलपति पर मुकदमा दर्ज हो. वह ये प्रेस वार्ता में बोले हैं, जिससे सियासी हलचल तेज हो गई है. IGNTU प्रबंधन को इस बयान के बाद सफाई देना पड़ गया है. IGNTU प्रबंधन ने सारे आरोपों को निराधार बताते हुए भारतीय संसद पर थोप दिया.
आदिवासी छात्र क्यों बने वोट बैंक ?
पुरानी कहावत है कि नेता वोट लेने जमीन पर लोट जाते हैं, लेकिन जीतते ही रुतबा बदल जाता है. कुर्सी मिलते ही वोटर को पांव की धूल समझ लेते हैं. कुछ ऐसा ही हाल आदिवासी सांसदों का है, जो छात्रों के घटे आरक्षण के मुद्दे को कभी संसद में उठाने की जहमत नहीं की. जिस आरक्षण से सांसद बने, जिनके वोट से कुर्सी मिली, उन्ही के बच्चों के साथ छलावा हो रहा है. छात्र संगठन और छात्रों ने कई बार प्रदर्शन किया, लेकिन मजाल है कि कभी स्थानीय सांसद और नेताओं ने उस मुद्दे को सदन में उठाया हो. खाली आदिवासी समाज और उनके बच्चे इनके लिए वोट बैंक बनकर रह गए हैं.
छात्रों की किसी ने नहीं सुनी बात ?
दरअसल, सवाल ये है कि शहडोल लोकसभा में सबसे ज्यादा आबादी आदिवासियों की है, जहां राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा से लेकर तमाम आदिवासी समाज के लोग रहते हैं, उनके बच्चे भविष्य तलाशने निकलते हैं, लेकिन पूरा आरक्षण न मिलने के कारण मायूसी लेकर लौटते हैं. छात्रों ने और IGNTU में पढ़ते हुए कई आदिवासी स्थानीय नेताओं ने इस मुद्दे को कुलपति और प्रबंधन के सामने रखा. मुख्यमंत्री के सामने रखा, लेकिन किसी ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन अब पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के सियासी हमले ने खलबली मचाकर रख दी है.
अनूपपुर में क्या बोले दिग्विजय सिंह ?
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आदिवासी छात्रों के आरक्षण के मामले में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति पर हमला बोला है. उन्होंने कुलपति प्रकाशमणि त्रिपाठी के खिलाफ एससीएसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने की मांग की. वहीं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय के जनसंपर्क विभाग ने आरोपों को निराधार बताया. कहा कि संवैधानिक पद पर रहने वाले राजनेता से लोग गम्भीर बयान की उम्मीद करते हैं.
50% आरक्षण को घटाकर 7.5% क्यों कर दिया गया ?
दिग्विजय सिंह ने अपने फेसबुक पर लिखा कि अर्जुन सिंह द्वारा स्थापित मप्र-अमरकंटक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय सन 2007 में आदिवासी वर्ग के छात्रों को मिलने वाले 50% आरक्षण को सन 2014 मे घटाकर 7.5% क्यों कर दिया गया ? क्या यही Bharatiya Janata Party (BJP) की आदिवासियों के प्रति भावना नहीं दर्शाता ?
आगे उन्होंने लिखा कि मप्र-अमरकंटक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय सन 2007 में आदिवासी वर्ग के छात्रों को मिलने वाले 50% आरक्षण को सन 2014 में घटाकर 7.5% कर दिया. Narendra Modi जी बताएंगे कि आदिवासी छात्रों को मिलने वाले अधिकारों से इतनी नफरत क्यों ?, जबकि संबंधित शिक्षा संस्थानो प्रवेश हेतु 50% आरक्षण का नियम है!
देश के प्रधानमंत्री जी से एक ही सवाल है ?
दिग्विजय सिंह ने लिखा कि जब भाजपा सरकार आदिवासी वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा, आदिवासी संस्कृति, आदिवासी उत्थान जैसे अवसर प्रदान करने की मंशा ही नहीं रखती तो, फिर ट्राइबल यूनिवर्सिटी संचालित ही क्यों ?
आरक्षण प्रक्रिया में 50% आरक्षण के साथ पारदर्शिता लाएं
दिग्विजय सिंह ने लिखा कि मैं भाजपा सरकार से मांग करता हूं कि आदिवासी छात्रों को मिलने वाले अधिकारों को नजरअंदाज करना बंद करें एवं संविधान का पालन कर आरक्षण प्रक्रिया में 50% आरक्षण के साथ पारदर्शिता लाएं।
#ट्राइबलयूनिवर्सिटीबचाओआदिवासीछात्रोंकीशिक्षा_बचाओ
अपने ने की अपनों से दगाबाजी ?
बहरहाल, नेता, मंत्री भी न कितने मतलबी होते हैं, जब वोट लेने की बात आती है, तो हितैषी बन जाते हैं, लेकिन जब उन्हीं वोटर्स की जब अधिकारों की बात आती है, तो कान में रुई और आंखों पर पट्टी बांधकर रह जाते हैं, बेबस गरीब औ लाचारों के बच्चे भटकते रहते हैं. सड़क की लड़ाई लड़ते रहते हैं.
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