पलाश, गुलाब और शहतूत से बनाए होली के रंग, चमका चेहरा, खिल उठे मन
टेसू (पलाश), गुलाब, शहतूत समेत कई फूलों से रंग बनाना सीखे
इसके बाद में पोई का पेस्ट बनाया जिसमें बस पोई फल को कुचल दिया और अपने हाथों को आपस में रगड़ लिया, यह उन सभी के लिए एक जादुई अनुभव था। सभी ने अपने दोनों हाथों से इन प्राकृतिक रंगों को एक दूसरे के माथे पर तिलक लगाकर अनुभव किया। जनक दीदी ने बताया यह सभी रंग बिना किसी डिटर्जेंट और बहुत कम पानी के उपयोग के निकल जाते हैं। वहीं रसायन वाले रंग और प्लास्टिक के पैकेट प्रदूषण का कारण बनते हैं और त्वचा की एलर्जी, आंखों और गले के लिए हानिकारक होते हैं। वहीं हमारे पास धोने के लिए ज्यादा पानी नहीं है और हमारे कपड़ों पर लगे रासायनिक रंगों से छुटकारा बहुत मुश्किल से मिलता है। इससे तकलीफ होती है और समय बर्बाद होता है। वहीं पर्यावरण पर प्रभाव के साथ मानसिक तनाव बढ़ता है। रासायनिक रंग हिंसा का कारण बनते हैं जबकि प्राकृतिक रंग मजेदार होते हैं और हमें खुशियां प्रदान करते हैं। बच्चों ने यहां टेसू (पलाश) गुलाब, कई अन्य फूलों की पंखुडिय़ों, शहतूत, बोगेनविलिया और संतरे के छिलके से रंग बनाना भी सीखा। केंद्र पर इस प्रशिक्षण के लिए कोई शुल्क नहीं है और कोई भी संस्थान या लोग समय लेने के बाद यहां पर प्राकृतिक रंग बनाने के लिए आ सकते हैं।