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छत्तीसगढ़ में वेतनमान को लेकर शिक्षकों की नाराजगी, जानें क्या है 70 फीसदी का नियम

रायपुर: छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने कोरोना काल के दौरान शासकीय नियमों में बदलाव किया था। सरकार ने 2020 में स्टाइपेंड नियम लागू किया। इसके तहत चयनित शासकीय सेवकों को पहले 3 साल वेतन की जगह उनके मूल वेतन का मात्र 70 फीसदी स्टाइपेंड देने की बात कही गई। यही नियम छत्तीसगढ़ शिक्षक भर्ती परीक्षा-2019 में चयनित शासकीय अभ्यर्थियों में भी लागू किया गया था। नियमों में फेरबदल के बाद नए शिक्षकों को पहले साल वेतन की 70 फीसदी रकम वर्तमान में दी जा रही है। नियम के अनुसार 3 साल तक वेतन के बजाय पहले साल उनके मूल वेतन का 70 प्रतिशत, दूसरे साल 80 फीसदी और तीसरे साल 90 फीसदी वेतन दिया जाएगा। 3 साल के बाद सभी को पूर्ण वेतन दिया जाएगा। यही नियम स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाले लोगों के लिए भी लागू होता था। जिसे बाद में सरकार ने बदल दिया।

जिन्हें बाद में उनका पूरा वेतन दिया जाने लगा। लेकिन छत्तीसगढ़ में शिक्षकों को अब भी स्टाइपेंड नियम के तहत वेतन दिया जा रहा है। जिसका शिक्षक संघ लगातार विरोध कर रहा है। उनकी मांग है कि जिस तरह से स्वास्थ्य विभाग में कर्मियों को पूरा वेतन दिया जा रहा है उसी तरह अब शिक्षा विभाग में नवीन शासकीय सेवकों को पूर्ण वेतन दिया जाए।

शिक्षक संघ ने सौंपा ज्ञापन

बता दें कि इस समस्या के समाधान के लिए कई बार लोक शिक्षण संचनालय और संचालक के नाम पर शिक्षक संघ के द्वारा ज्ञापन सौंपा गया है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री से पत्राचार करते हुए कई बार पूर्ण वेतन देने और नए नियम को खत्म करने की मांग की गई है। हालांकि भूपेश बघेल की सरकार शिक्षकों को मनाने की कोशिश में है। सरकार ने शिक्षक वर्ग को साधते हुए शिक्षकों का संविलियन करने का वादा भी पूरा किया है। हालांकि अभी भी कुछ वर्गो में संविलियन होना अभी बाकी है।
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राजनीतिक विशेषज्ञ की माने तो सरकार ने नियमों में बदलाव करते हुए शिक्षकों के वेतनमान में कुछ बदलाव किए थे। जैसे कि पहले साल 70% वेतन देना और बाद में 3 साल के बाद पूर्ण वेतन मिलना। लेकिन स्वास्थ्य विभाग में जिस तरह से नियमों में बदलाव और नई वेतन प्रणाली को रद्द किया गया उसी तरह से शिक्षा विभाग में भी नई वेतन प्रणाली को रद्द किया जा सकता है।
रिपोर्ट- रोहित बर्मन

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