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अधिवक्ता चन्द्र शेखर श्रीवास्तव का लेख: संविधान की प्रस्तावना का शिक्षा में शामिल करना क्यों जरूरी ?

भारत देश दुनिया में लोकतंत्र का ध्वजवाहक हमेशा रहा है। हमारे देश का लोकतंत्र लिखित और लचीला है। भारत का संविधान हमारे लोकतंत्र का ऑक्सीजन सिलेंडर का काम करता है। संविधान समिति ने संविधान के सार को कम शब्दों में पिरोने के लिए संविधान के प्रस्तावना को लेख बद्ध किया, जिसे पढ़ने पर सविधान में उलेखित तथ्यों का निचोड़ प्रदर्शित होता है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना एक परिचयात्मक कथन है, जो उन उद्देश्यों, सिद्धांतों और आदर्शों को रेखांकित करता है जिन पर संविधान आधारित है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राष्ट्र घोषित करता है और न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को इसके मूल मूल्यों के रूप में महत्व देता है।

आज के परिप्रेक्ष्य में हमारा समाज भी व्याप्त कुरीतियों से अछूता नहीं है। आए दिन हत्या, बलात्कार ,जातिवाद, धर्म वैमनस्य, आरक्षण, भ्रष्टाचार जैसे शब्द रोजमर्रा में सुनने आते जो कि घट रही घटनाओ से प्रेरित है, जरूरत है। समाज में व्याप्त इन बुराइयों से मुक्ति पाने की इन्हें हम अपने शिक्षा के स्तर को बढ़ा कर बहुत हद तक सुधार सकते हैं।

देखा गया है कि हम अपने अधिकारों को तो जल्दी समझ जाते हैं, लेकिन कर्तव्यों को समझते नही या ये कहे कि समझ कर भी न समझने का चोला ओढ़े रहते हैं, इसलिए आज के समय मे स्कूलों की शिक्षा में संविधान की प्रस्तावना का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें हम अपने आने वाले भविष्य को सवांर सकें।

इतिहास गवाह है कि युवा ही प्रथम पंक्ति में रह कर बदलाव के लिये लड़ा है,जब हम अपने लोकतंत्र के कर्तव्यों को समझेंगे तब ही समाज मे व्याप्त कुरीतियों से निजात पाएंगे। इसलिए मेरा ये मानना है कि सभी प्रकार की स्कूली शिक्षा में संविधान की प्रस्तावना का अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए जिससे हमारा देश और सजक बनेगा।

लेखक- चन्द्र शेखर श्रीवास्तव, अधिवक्ता

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