Valentine’s Day 2022 Special: सुना है…दिल के जज्बातों का इजहार, आप भी देखिए ये दिलकश VIDEO
ये गजल अहमद फ़राज़ की है, जिसे अदाकारा के रूप में Rajsi Swaroop ने अपनी अहम भूमिका निभाई है. Rajsi Swaroop उत्तर प्रदेश के लखनऊ की रहने वाली हैं, जो ईटीवी भारत में स्पोर्ट्स डेस्क पर काम करती हैं. ये वहां बतौर एंकर और कॉपी एडिटर हैं. इसमें सबसे बड़ा और अहम रोल पर्दे के पीछे रहा, जिसे कैमरा मैन और वीडियो एडिटर के रूप में जानते हैं.
पल्लबी सेन ने इस गजल को अपने कलाकारी से दिलकश रूप दी है, जिसमें साउंड इफेक्ट से लेकर एक-एक ग्राफिक्स दिलकश है. पल्लबी सेन कोलकाता की रहने वाली हैं, जो फिलहाल हैदराबाद स्थित रामोजी फिल्म सिटी में काम करती हैं, जहां ईटीवी भारत में वीडियो एडिटर हैं. इन्होंने अहमद फराज की.. सुना है लोग उसे आंख भर के देखते हैं” को एक नए रूप में लोगों के सामने पेश किया है, जो दिल को छू रहा है.
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सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैंसुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैंसुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैंसुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैंसुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैंसुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैंसुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैंसुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैंसुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैंसुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आह भर के देखते हैंसुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैंसुना है आईना तमसाल है जबीं उसकी
जो सादा दिल हैं उसे बन सँवर के देखते हैंसुना है जब से हमाइल हैं उसकी गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल-ओ-गौहर के देखते हैंसुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उसकी कमर के देखते हैंसुना है उसके बदन के तराश ऐसे हैं
के फूल अपनी क़बायेँ कतर के देखते हैंवो सर-ओ-कद है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
के उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
बस एक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रहर्वान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
सुना है उसके शबिस्तान से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीन उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं
रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं
किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी-कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं
कहानियाँ हीं सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जायेँ
फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
फ़राज़ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं
जुदाइयां तो मुक़द्दर हैं फिर भी जाने सफ़र
कुछ और दूर ज़रा साथ चलके देखते हैं
रह-ए-वफ़ा में हरीफ़-ए-खुराम कोई तो हो
सो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं
तू सामने है तो फिर क्यों यकीं नहीं आता
यह बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं
ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफिल में
जो लालचों से तुझे, मुझे जल के देखते हैं
यह कुर्ब क्या है कि यकजाँ हुए न दूर रहे
हज़ार इक ही कालिब में ढल के देखते हैं
न तुझको मात हुई न मुझको मात हुई
सो अबके दोनों ही चालें बदल के देखते हैं
यह कौन है सर-ए-साहिल कि डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं
अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
बहुत दिनों से नहीं है कुछ उसकी ख़ैर ख़बर
चलो फ़राज़ को ऐ यार चल के देखते हैं – अहमद फ़राज़ / Ahmad Faraz