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पुष्पराजगढ़ में ‘भांजियों’ पर सिस्टम की मार: कन्या छात्रावास में 2 साल से लटका ताला, कई छात्राओं ने छोड़ी पढ़ाई, अधर में आदिवासी बेटियों का भविष्य, नौनिहालों को अंधकार में धकेल रहे जिम्मेदार ?

पुष्पराजगढ़। कोरोना संकट की भयावहता हर किसी को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, लेकिन हालात सुधरे और फिर जिंदगी पटरी पर उतर आई है. इन सबके बीच छात्रावासों का हाल बेहाल है. पुष्पराजगढ़ में इन दिनों यही हाल है. जिम्मेदारों की कोताही की वजह से विद्यार्थी हलाकान हैं. पिछले दो साल से हॉस्टल में ताला लटका है. छात्राओं को दूर पड़ने की वजह से पढ़ाई छोड़ना पड़ रहा है. स्कूलों में संख्या कम हो गई है. आदिवासी विभाग की लापरवाही के कारण शिवराज मामा के भांजियों से धोखा हो रहा है. उनके भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है. मासूमों की जिंदगी को अंधकार में धकेला जा रहा है.

आंख पर पट्टी बांध बैठे जिम्मेदार ?

ये कहानी पुष्पराजगढ़ के धुराधर पंचायत का. जहां पिछले दो साल से ताला लटका है. आदिवासी छात्रावास बंद होने के कारण छात्राओं को पढ़ाई में परेशानी हो रही है. उन्हें अपने गांवों से 15-20 से किमी की दूरी तय कर स्कूल पहुुंचना पड़ रहा है. इससे विद्यार्थियों के आर्थिक नुकसान के साथ समय भी बर्बाद हो रहा है. अभिभावकों में भारी आक्रोश है. आदिवासी छात्राओं के भविष्य से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है.

अधीक्षिका दो साल से लापता ?

धुराधर आदिवासी कन्या छात्रावास से अधीक्षिका पिछले दो साल से लापता है. स्कूल में छात्राओं की जानकारी के लिए कन्या छात्रावास में रहकर पढ़ रहीं बच्चियों के बारे में जानकारी लेने धुराधर स्कूल के हेडमास्टर श्रीकांत तिवारी से बातचीत की गई. इस दौरान उन्होंने कहा कि स्कूल में संख्या कम हो गई है. बहुत बच्चियां दूर होने के कारण स्कूल नहीं आ पा रही हैं. अभिभावक गरीब हैं, गरीब घर की बच्चियों को रहने के लिए व्यवस्था नहीं है, ऐसे में वह स्कूल नहीं आ पा रही हैं.

स्कूल में कम हो रही संख्या- हेडमास्टर

धुराधर स्कूल में पहली से लेकर आठवी तक की बच्चियां और बच्चे पढ़ते हैं, जिनकी संख्या करीब 150 है. जहां तीन टीचर पढ़ाते हैं. वहीं छात्रावास की बात करें तो यहां की अधीक्षिका समलिया नतराय है, जो पिछले दो साल से छात्रावास की ओर पलटकर नहीं देखी. छात्रावास की हालत दयनीय है. छात्रावास बेहाल पड़ा है. न अधिकारी कोई इधर मुड़कर देखे हैं, जिससे छात्रावास बंद पड़ा है.

अधिकारी इधर मुड़कर भी नहीं देखे- सरपंच

वहीं इस मामले में गांव के सरपंच दीनदयाल सिंह परस्ते से बातचीत की गई. इस दौरान उन्होंने कहा कि गांव में बने इस छात्रावास का कोई उपयोग नहीं हो रहा है. छात्राएं दूर-दूर से आती थीं, जिसकी वजह से आदिवासी कन्या छात्रावास खोला गया था, लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही तले आदिवासी बेटियों का भविष्य अंधेरे में है. अधिकारियों को कई बार सूचित कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है, जिससे अभिभावकों में आक्रोश है.

बड़े घोटाले की बू ?

बहरहाल, सरकार बच्चों के भविष्य के लिए लाखों करोड़ों पानी की तरह बहाती है, लेकिन जिम्मेदार उस रकम को डकार जा रहे हैं, जिसका जीता जागता नतीजा धुराधर आदिवासी कन्या छात्रावास है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यहां घपलेबाजी की वजह से छात्रावास पंद पड़ा है. अधिकारी जांच करने की बात कह कर आज तक इस ओर मुड़कर भी नहीं देखें हैं. न ही अधीक्षिका को बदले न किसी को जिम्मेदारी दिए हैं. ऐसे में सवाल विभाग पर खड़ा हो रहा है, कहीं आदिवासी बेटियों के हक पर डाका डालकर बड़ा घपला तो नहीं हो गया ?.

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