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Dussehra 2022: यहां दशानन की नाक काटे बिना नहीं होता दहन, इसके पीछे की वजह भी है रोचक

आज दशहरा है। देशभर में रावण रूपी अहंकार का दहन किया जाएगा। इसका उत्साह भी चरम पर है। लेकिन मध्य प्रदेश का एक गांव ऐसा भी है, जहां दशहरा पर्व छह महीने पहले मना लिया जाता है। यहां रावण के वध से पहले उसकी नाक काटने की परंपरा है। 

हम बात कर रहे हैं रतलाम जिले के चिकलाना गांव की। यहां का दशहरा कई मायनों में अलग है। यहां चैत्र नवरात्र के बाद दशहरा मनाया जाता है। यानी की अब से लगभग छह महीने पहले ही। यहां के लोग मिलजुलकर ये पर्व मनाते हैं। इसमें मुस्लिम समाज के लोग भी भागीदारी करते हैं। यहां रावण के पुतले का दहन करने से पहले प्रतीकात्मक रूप से भाले से नाक काटे जाने की परंपरा है। 

 

यहां रहने वाले लोगों से जब इसके पीछे की वजह पूछी तो वे बताते हैं कि प्रसिद्ध कहावत नाक कटना का मतलब है बदनामी होना। लिहाजा रावण की नाक काटे जाने की परंपरा के पीछे यह अहम संदेश छिपा है कि बुराई के प्रतीक की सार्वजनिक रूप से निंदा के जरिये उसके अहंकार को नष्ट करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। लोग ये भी बताते हैं कि रावण ने माता सीता का हरण किया था। इसी अपमान का बदला लेने के लिए अब यहां लोग रावण की नाक काट कर उसका अपमान करते हैं। 

चिकलाना गांव में इस परंपरा के पालन से जुड़े बैरागी परिवार का कहना है कि चैत्र नवरात्रि की यह परंपरा हमारे पुरखों के जमाने से निभाई जा रही है। इसलिए हम भी इसी का पालन कर रहे हैं। परंपरा के मुताबिक ही गांव के प्रतिष्ठित परिवार का व्यक्ति भाले से पहले रावण के पुतले की नाक पर वार करता है, यानी सांकेतिक रूप से उसकी नाक काट दी जाती है। शारदीय नवरात्र के बाद पड़ने वाले दशहरे पर हमारे गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। 

 

लोग बताते हैं कि परंपरा के तहत रावण दहन से पहले शोभायात्रा निकाली जाती है। ढोल बजते हैं। गांव के हनुमान मंदिर से चल समारोह निकलकर दशहरा मैदान तक जाता है। राम और रावण की सेनाओं के बीच वाकयुद्ध का रोचक स्वांग होता है। इस दौरान हनुमान की वेश-भूषा वाला व्यक्ति रावण की मूर्ति की नाभि पर गदा से तीन बार वार करते हुए सांकेतिक लंका दहन भी करता है। 

गांव के लोग बताते हैं कि पहले हमारे गांव को ये परंपरा औरों से अलग करती है। पहले हर साल रावण का पुतला बनाया जाता था, लेकिन पांच-छह साल पहले यहां 15 फीट ऊंची रावण की दस सिरों वाली स्थायी मूर्ति बनवा दी है। गांव में जिस जगह रावण की यह मूर्ति स्थित है, उसे दशहरा मैदान घोषित कर दिया गया है। यहीं हर साल परंपरा का निर्वाह किया जाता है। 

 

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