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चित्रकोट महोत्सव का शुभारंभ: भारत के ‘नियाग्रा’ तट पर उतरी आदिवासी संस्कृति, गौर सिंग, पुनेम सुंदरी ने मोहा मन

भारत की नियाग्रा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के जगदलपुर स्थित विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात के तट पर मंगलवार को तीन दिवसीय चित्रकोट महोत्सव का रंगारंग शुभारंभ हो गया है। पहले दिन ही तट किनारे बने मंच पर आदिवासी संस्कृति के विभिन्न रंग उतर गए। हंसी-ठहाकों के साथ गीत-संगीत की धुन ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। नारायणपुर के मांदरी नर्तक दल, जोड़ा तराई गीदम के पुनेम सुंदरी नर्तक दल, बस्तानार के गौर सिंग नर्तक, दरभा के लेजा परब नर्तक, लेकर के गेड़ी नर्तक, आंजर के ढोल नर्तक, नैननार के गौर सिंग नर्तक, कोमेडियन रविंद्र जानी ने मन मोह लिया। 



इससे पहले प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने मां सरस्वती, मां दंतेश्वरी और छत्तीसगढ़ महतारी की छायाचित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि, चित्रकोट और बस्तर एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं। देश-विदेश में लोग बस्तर को चित्रकोट जैसे अद्भुत जलप्रपात के कारण पहचानते हैं। चित्रकोट में आयोजित यह महोत्सव बस्तर की जनजातीय संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाने का एक सुनहरा अवसर है। कहा कि बस्तर की लोक संस्कृति सहज और सरल होने के साथ ही अत्यंत आकर्षक भी है, जिससे पूरे विश्व को परिचित कराने की आवश्यकता है। 


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सांसद  दीपक बैज ने कहा की  चित्रकोट महोत्सव में तीन दिनों तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही विभिन्न खेलकूद भी आयोजित किए जाएंगे। इसमें पूरे संभाग के प्रतिभागी शामिल होंगे। महोत्सव के माध्यम से हमारी लोक संस्कृति, परंपरा का प्रदर्शन किया जाएगा। इसके साथ ही यहां शासन द्वारा संचालित योजनाओं का प्रदर्शन भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां चित्रकोट के साथ तीरथगढ़, तामड़ा घूमर, मेंदरी घूमर, बीजाकसा, चित्रधारा, मंडवा जैसे कई जलप्रपात हैं। चित्रकोट इन सभी जलप्रपातों का सिरमौर है। 


सांसद ने कहा कि, पर्यटकों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए ही अब लामड़ागुड़ा में भी जिला प्रशासन द्वारा नया रिजॉर्ट तैयार किया गया है। जिसका संचालन स्थानीय महिलाएं कर रही हैं। बस्तर में पर्यटन के विकास का मूल उद्देश्य ही यह है कि स्थानीय युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार प्राप्त हो। संस्कृति के संरक्षण के लिए देवगुडी और घोटुलों के संरक्षण का कार्य भी छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किया जा रहा है। की अनेक जनजातीय संस्कृतियों का मिलन स्थल है। यहां महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर लगने वाले मेले में जहां अपने परिचितों और नाते रिश्तेदारों से मिलने का अवसर मिलता है। 


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