Teachers Day: एमपी के दो शिक्षक जिन्होंने शिक्षा से बदली गांव की तस्वीर, राष्ट्रपति पुरस्कार से होंगे सम्मानित

ओमप्रकाश पाटीदार
मध्यप्रदेश के छोटे से जिले शाजापुर के रहने वाले ओमप्रकाश को 5 सितंबर शिक्षक दिवस के मौके पर राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इससे पहले उन्हें दो बार राज्य स्तरीय पुरस्कार भी मिल चुका है। 15 साल की नौकरी में उनके शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ठ प्रयासों के लिए उन्हें अब राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। उनसे पहले भी जिले के दो शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2022 के लिए देश के 46 शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार दिया जा रहा है, इसमें मध्यप्रदेश के दो शिक्षक शामिल हैं। ये प्रदेश के लिए गौरव की बात है।
कई बिंदुओं के आधार पर किया गया चयन
ओमप्रकाश पाटीदार 2006 से शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। अपने अब तक के कार्यकाल में वह शिक्षा के क्षेत्र में कई तरह से योगदान देकर बच्चों का भविष्य संवार रहे हैं। शिक्षा में आईटीसी का प्रयोग करने, जैव विविधता संरक्षण के लिए कार्य करने, बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करने सहित अन्य बिंदुओं के आधार पर उनका चयन राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए हुआ है। ओमप्रकाश पाटीदार 2007 से लगातार शिक्षक कांग्रेस एवं विज्ञान कांग्रेस में सम्मिलित हो रहे हैं। विज्ञान कांग्रेस में वे अपने विद्यार्थियों को भी कई बार ले जा चुके हैं। कोरोना काल में भी उन्होंने इस क्रम को नहीं छोड़ा और वर्चुअल रूप से इसका हिस्सा बने। आज उन्हें दिल्ली में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु सम्मानित करेंगी।
नीरज सक्सेना
रायसेन के शासकीय प्राथमिक शाला सालेगढ़ के शिक्षक नीरज सक्सेना का चयन भी राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए किया गया है। आदिवासी बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिए उन्होंने सराहनीय प्रयास किए हैं। जब नीरज सक्सेना ने स्कूल ज्वाइन किया था तब सिर्फ 10 बच्चे स्कूल आते थे। उन्होंने अपने स्वयं के खर्चे से स्कूल का रंग रोगन करा इसकी सूरत बदली। बच्चों को स्कूल लाने के लिए उन्होंने कई तरह के प्रयास किए। उनकी पहल का ही परिणाम है कि आज स्कूल में बच्चों की संख्या 10 से बढ़कर 130 हो गई है। नीरज सक्सेना बारिश के दिनों में कई बार बैलगाड़ी के जरिए स्कूल पहुंचे हैं। क्योंकि कच्चा रास्ता होने के चलते वाहन से जाना संभव नहीं था। बच्चों तक किताबें पहुंचाने के लिए भी वह बैलगाड़ी के जरिए किताबें लेकर स्कूल पहुंचे थे।